खनन माफिया से लोहा लेते हुए हरियाणा के एक जांबाज पुलिस अधिकारी की दर्दनाक मौत इन संगठित अपराधियों के दुस्साहस की बानगी ही दिखाती है। मंगलवार को अरावली की पहाड़ियों के करीब मेवात में तावड़ू इलाके में खनन की औचक जांच को पहुंचे डीएसपी सुरेंद्र सिंह बिश्नोई को डंपर से कुचलकर मार डाला गया। पचगांव में हुई घटना के बाद पुलिस प्रशासन हिल गया और भारी सुरक्षा बल को अपराधियों पर शिकंजा कसने को भेजा गया। मुठभेड़ की खबरें भी आई हैं। यहां सवाल यह भी है कि स्वयंसेवी संगठनों की सक्रियता, कोर्ट की सख्ती और एनजीटी के तमाम आदेशों के बावजूद सरकारें वक्त रहते सजग क्यों नहीं होती। क्यों हम बिना हादसों के सजग-सतर्क नहीं होते। क्यों इन अपराधियों को संरक्षण देने वाले राजनेताओं के खिलाफ कार्रवाई समय रहते नहीं होती। इसी बीच पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री के भानजे के खिलाफ अवैध खनन में संलिप्तता पर प्राथमिकी दर्ज होना खनन माफिया व राजनेताओं के अपवित्र गठबंधन को ही उजागर करता है। यहां सवाल यह भी है कि अवैध खनन पर कार्रवाई को गये डीएसपी को पर्याप्त सुरक्षाबल क्यों नहीं उपलब्ध कराया गया। यह जानते हुए कि विगत में कई राज्यों में ऐसी दुर्घटनाएं हो चुकी हैं। वर्ष 2015 में मध्य प्रदेश के नूराबाद इलाके में एक पुलिसकर्मी की हत्या डंपर से कुचलकर कर दी गई थी। वहीं मध्य प्रदेश के मुरैना में एक आईपीएस अधिकारी की खनन माफिया ने ट्रैक्टर ट्राली से कुचलकर हत्या कर दी थी। जब अरावली से सटे जिलों में लगातार अवैध खनन जारी है तो पर्याप्त सुरक्षा बलों के साथ ही छापे की कार्रवाई की जानी चाहिए। इसके लिये आधुनिक तकनीक का सहारा लिया जा सकता है। मसलन ड्रोन के जरिये निगरानी की जा सकती है तथा बड़े वाहनों पर इंटरनेट से जुड़े कैमरे लगाकर कंट्रोल रूम से निगाह रखी जा सकती है। लेकिन सत्ताधीश हादसों के बाद जागकर कहते हैं कि दोषियों को किसी भी कीमत पर बख्शा नहीं जायेगा।
बहरहाल, तंत्र की चूक के चलते हमने कुछ माह बाद सेवानिवृत्त होने वाले एक जिम्मेदार व साहसी पुलिस अधिकारी को खो दिया। सरकार ने उसे शहीद का दर्जा देने, एक करोड़ की राहत राशि व एक परिजन को सरकारी नौकरी देने की बात कही है। लेकिन सवाल तमाम बाकी हैं कि तावड़ू क्षेत्र में अरावली की पहाड़ियों पर बड़े पैमाने पर जारी अवैध खनन को रोकने के लिये जो स्पेशल टास्क फोर्स गठित की गई है, वह मौके पर डीएसपी के साथ क्यों नहीं थी। दरअसल, इस तरह के संगठित अपराधों का मुकाबला प्रशासन के विभिन्न विभागों के समन्वित प्रयासों से ही संभव हो सकता है क्योंकि यह कानून व्यवस्था से जुड़ा मामला भी है। वह भी तब जबकि खनन माफिया का डंपर अरावली इलाके पर लगातार आरी चला रहा है, जिसमें हजारों एकड़ भूमि तबाह हो चुकी है। दशकों से जारी अवैध खनन पर तंत्र की उदासीनता के चलते नकेल नहीं कसी जा सकी। बताते हैं कि पिछले दिनों नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल यानी एनजीटी में हरियाणा के अरावली से जुड़े इलाकों में करीब सोलह जगहों पर अवैध खनन की जानकारी दी गई थी। दरअसल, नूंह के अलावा फरीदाबाद व गुरुग्राम के इलाके में भी अवैध खनन होने के आरोप लगते रहे हैं। जो अरावली के प्राकृतिक संरक्षण क्षेत्र को भी तबाह कर रहे हैं। जिस बाबत मई में एनजीटी को अरावली बचाओ मूवमेंट की ओर से शिकायत की गई थी, उसमें कहा गया है कि अरावली पर्वत शृंखला की सुरक्षा के नाम पर महज औपचारिकताएं पूरी की जा रही हैं। यहां पर्याप्त संख्या में सुरक्षा से जुड़े लोगों की उपस्थिति नहीं है, जिसमें आसपास के गांवों के लोगों की भूमिका की ओर भी इशारा किया गया है। जिस पर एनजीटी ने इस बाबत कमेटी बनाने व सर्वे करने के निर्देश भी दिये थे। इस मामले में अब अगली सुनवाई अगस्त के अंतिम सप्ताह में होनी है। अरावली के पारिस्थितिकी संकट के बाबत न्यायालय भी बार-बार चिंताएं जता चुका है जो हमारे विकास के मॉडल पर भी एक प्रश्न चिन्ह है।