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राहतकारी जीएसटी

सावधानीपूर्वक क्रियान्वयन से मिलेगी राहत
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जीएसटी काउंसिल की 56वीं बैठक के बाद घोषित जीएसटी की नई दरें 22 सितंबर से लागू करने करने की घोषणा की गई है। जिसमें अब 12 व 28 फीसदी के दो स्लैब को खत्म करके सिर्फ 5 व 18 फीसदी कर दिया गया है। कहा जा रहा है कि यह सरकार की ओर से आर्थिक सुधारों की कड़ी में एक नई पहल है, जिससे जीएसटी को तार्किक बनाने व आम जनता को महंगाई से राहत देने का प्रयास है। वहीं दूसरी ओर विलासिता आदि वस्तुओं के लिये चालीस फीसदी का एक नया स्लैब जोड़ा गया है। विपक्ष इसे देर से उठाया गया कदम बता रहा है, तो सरकार आर्थिक सुधार की दिशा में बड़ा कदम। वहीं कुछ अर्थशास्त्री इस कदम को ट्रंप के टैरिफ वॉर के परिप्रेक्ष्य में उठाया गया सुरक्षात्मक कदम मानते हैं। जिससे घरेलू खपत को बढ़ाकर निर्यात घाटे को कम किया जा सके। वहीं कुछ लोग इसे नवरात्र में दिवाली से पहले सरकार का तोहफा बता रहे हैं। माना जा रहा है कि सरकार की सोच है कि आर्थिक सुधारों के जरिये घरेलू उपभोग व निवेश को बढ़ाया जाए। निस्संदेह, इससे भारतीय अर्थव्यवस्था का विस्तार होगा। यही वजह है कि कुछ अर्थशास्त्री जीएसटी दरों को घटाने को साहसी व दूरदर्शी कदम बताते हैं, जो उपभोक्ता के उपभोग को बढ़ाएगा। उल्लेखनीय है कि सरकार ने एक जुलाई 2017 को पूरे देश में जीएसटी लागू किया था। उसके बाद समय-समय पर विभिन्न उत्पादों की दरों में परिवर्तन किए जाते रहे हैं। लेकिन इसके बावजूद विपक्षी दलों द्वारा शासित सरकारें कई उत्पादों पर जीएसटी दरें तार्किक बनाने की मांग करती रही हैं। जिसमें पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने स्वास्थ्य बीमा पर जीएसटी दर घटाने की मांग की थी। इतना ही नहीं, कुछ उद्योगों, विभिन्न औद्योगिक क्षेत्रों व जन-स्वास्थ्य से जुड़ी वस्तुओं के उत्पादकों द्वारा जीएसटी कम करने की मांग की जाती रही है। इसी तरह किसान संगठन भी कृषि उत्पादों पर कर कम करने की मांग करते रहे हैं।

वहीं दूसरी ओर जीएसटी दरों में बदलाव की टाइमिंग को लेकर सवाल उठाते रहे हैं। उनका मानना है कि इसकी पृष्ठभूमि में ट्रंप के टैरिफों को कम करने की कवायद भी है ताकि घरेलू उपभोग बढ़ाया जा सके और सस्ते निर्यात को बढ़ावा मिल सके। कालांतर इससे देश की अर्थव्यवस्था को गति मिल सकेगी। इसका संकेत प्रधानमंत्री ने पंद्रह अगस्त को लाल किले से संबोधन में भी दिया था। वहीं आगामी वर्ष मार्च में राज्यों को राहत देने वाले कम्पंसेशन सेस की समाप्ति से पहले राज्यों को राहत देने के लिये भी यह कदम उठाया गया हो सकता है। निस्संदेह, इस कदम से सरकारी खजाने में जीएसटी कम आएगा, लेकिन आर्थिक विशेषज्ञ मानते हैं कि विलासिता की वस्तुओं पर चालीस फीसदी का जीएसटी सरकार के घाटे की पूर्ति में किसी हद तक मदद करेगा। फिर भी कहा जा रहा है कि सरकार को अड़तालीस हजार करोड़ का नुकसान हो सकता है, लेकिन चीजें सस्ती होने पर उपभोग वृद्धि से सरकार को राहत मिल सकती है। वहीं कहा जा रहा है कि असंगठित क्षेत्र को जीएसटी कटौती दर का लाभ नहीं मिलेगा। अर्थशास्त्री लंबे समय से मांग करते रहे हैं कि देश में सबसे ज्यादा रोजगार देने वाले असंगठित क्षेत्र को आर्थिक सुधारों का लाभ दिया जाना चाहिए। बहरहाल, इतना तय है कि जीएसटी दरों में कमी से उपभोक्ता मांग में वृद्धि होगी तो अर्थव्यवस्था को गति मिलेगी। आम आदमी कम पैसे में ज्यादा सामान खरीद पाएगा। वैसे यहां यह बात महत्वपूर्ण है कि इस बदलाव से वास्तव में आम उपभोक्ता को कितना फायदा होता है। यह इस बात पर निर्भर करेगा कि उद्योग कर कटौती का लाभ उपभोक्ता तक कैसे पहुंचाते हैं। साथ ही नियामक कितनी सतर्कता से अनुपालन सुनिश्चित करते हैं। निस्संदेह यह सही दिशा में उठाया गया एक कदम है। लेकिन यह कितना लाभ आम आदमी को पहुंचाएगा, इस बात पर निर्भर करेगा कि सुधार को कितनी निरंतरता और पारदर्शिता के साथ लागू किया जाता है।

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