Tribune
PT
About the Dainik Tribune Code Of Ethics Advertise with us Classifieds Download App
search-icon-img
Advertisement

आज़ादी है अनमोल

इसे अक्षुण्ण रखना हरेक का दायित्व
  • fb
  • twitter
  • whatsapp
  • whatsapp
Advertisement

आज पूरा देश स्वतंत्रता का उत्सव उल्लास व उत्साह से मना रहा है। इस आजादी के लिये लाखों लोगों ने त्याग-बलिदान किया। हम आज जो स्वतंत्रता की खुली हवा में सांस ले रहे हैं, वह अनमोल है। जिसकी रक्षा करना हर भारतीय का पहला कर्तव्य है। हमारी उदासीनता और राजनीतिक-सामाजिक विद्रूपताओं की अनदेखी की कीमत हमें ही चुकानी पड़ती है। हाल के दिनों में हमारे पड़ोसी देशों में लोकतंत्र की उत्कट अभिलाषा और रक्त रंजित संघर्ष लोकतांत्रिक मूल्यों की वास्तविक कीमत को दर्शाते हैं। बांग्लादेश, श्रीलंका और पाकिस्तान में लोग अपनी लोकतांत्रिक आजादी के लिए सड़कों पर उतरे और निरंकुश सत्ता का प्रतिकार किया। भारत में भी विपक्ष गाहे-बगाहे लोकतांत्रिक मूल्यों की लक्ष्मण रेखा के अतिक्रमण की बात करता है। निश्चित रूप से लोकतंत्र सत्ता पक्ष और विपक्ष के सामंजस्य और तालमेल से ही चलता है। जनता ने जहां सत्तापक्ष को सुशासन का दायित्व दिया है, वहीं विपक्ष को लोकतंत्र का सजग प्रहारी बनाया है। यदि विपक्ष जनहित के लिये आवाज उठाता है तो उस पर ध्यान दिया जाना चाहिए। लेकिन राजनीतिक स्वार्थों के लिये महज विरोध के लिए विरोध करना भी अनुचित ही कहा जाएगा। विपक्ष का दायित्व है कि वह जनता को सजग करे और लोकतांत्रिक मूल्यों के प्रति सचेत करे। वहीं राजनीतिक दलों को उन विभाजनकारी मुद्दों से परहेज करना चाहिए जो समाज में विघटन को बढ़ावा दें। हम 21वीं सदी में रह रहे हैं। यदि अब भी राजनीतिक दल जात-पांत और सांप्रदायिकता की राजनीति को बढ़ावा देते हैं तो यह लोकतंत्र के लिये शुभ संकेत कदापि नहीं कहा जा सकता। सदियों पहले देशकाल व परिस्थिति के चलते जो जाति व्यवस्था अस्तित्व में आई थी, उसे आज राजनीतिक हथियार के रूप में इस्तेमाल करना देश को पीछे धकेलने के समान है। कमोबेेश यही स्थिति संप्रदायों की राजनीति करने वालों को लेकर भी कही जा सकती है। आज हर नागरिक का पहला दायित्व प्रगतिशील सोच के साथ देश को आगे बढ़ाना होना चाहिए।

किसी भी लोकतंत्र में समाज के अंतिम व्यक्ति को न्याय दिलाना पहली प्राथमिकता होती है। निस्संदेह, देश ने 1947 में राजनीतिक आजादी हासिल की थी। अकसर कहा जाता है कि आजादी के बाद हमारी लड़ाई देश में आर्थिक आजादी और सामाजिक न्याय हासिल करने के लिये होनी चाहिए। लेकिन यह भी हकीकत है कि आजादी के सात दशक बाद भी हम आर्थिक आजादी व सामाजिक न्याय के लक्ष्य हासिल नहीं कर पाये। देश में तेजी से बढ़ती अमीर-गरीब की खाई बड़ी चिंता का विषय है। दुनिया में सबसे ज्यादा युवाओं के देश भारत में बेरोजगारी की ऊंची दर नीति-नियंताओं की विफलता को दर्शाती है। कैसी विडंबना है कि रोजगार की तलाश में विदेशों में भटक रहे युवाओं को दलालों ने रूस-यूक्रेन युद्ध में झोंक दिया है। हर हाथ को काम न मिले यह हमारे सत्ताधीशों की विफलता ही कही जाएगी। वहीं दूसरी ओर हम अपने मौलिक अधिकारों की तो बात करते हैं लेकिन अपने मौलिक कर्तव्यों की बात भूल जाते हैं। यह शिक्षा स्कूल-कॉलेजों से ही दी जानी चाहिए ताकि युवा जागरूक व जिम्मेदार बनें। निस्संदेह, समय के साथ देश में साक्षरता का स्तर बढ़ा है। सवाल है कि वे लोग कौन हैं जो चुनाव के दौरान छोटे-छोटे प्रलोभनों के लिये अपना वोट बेच देते हैं। वे कौन हैं जो देश की प्रगति के बजाय जाति-धर्म के आधार पर वोट देते हैं। कौन हैं जो क्षेत्रवाद को अपने मताधिकार से बढ़ावा देते हैं। कौन हैं जो चुनावी प्रक्रिया के दौरान मुफ्त की रेवड़ियों को अपना लक्ष्य बनाते हैं। निस्संदेह, सेवाओं व वस्तुओं का यह प्रलोभन हमारी व्यवस्था को पंगु बनाता है। हमारा राष्ट्रवाद का जज्बा जापान जैसा ऊंचे दर्जे का होना चाहिए। भारतीय लोकतंत्र के सामने यक्ष प्रश्न है कि कौन जनप्रतिनिधि संस्थाओं में अनेक अपराधियों को चुनकर भेजता है? सत्ता में अपराधियों की भागीदारी लोकतांत्रिक व मानवीय अधिकारों का अतिक्रमण ही करती है। यदि हम सजग, सतर्क और सचेत रहेंगे तो दागी जनप्रतिनिधि संस्थाओं में नहीं पहुंच सकते हैं। आज हम आजादी की हवा में सांस ले रहे हैं, लेकिन इस आजादी को अक्षुण्ण बनाये रखने को त्याग-तपस्या की आज भी जरूरत है।

Advertisement

Advertisement
×