अवसाद से मुक्ति
अक्सर देखा जाता है कि परीक्षाओं के दौरान छात्र तनावग्रस्त हो जाते हैं। एक भय हावी हो जाता है, जिससे वे परीक्षाओं में बेहतर प्रदर्शन नहीं कर पाते। कुछ छात्र तो अक्सर खूब पढ़कर जाने के बावजूद परीक्षा के दौरान तनाव के चलते सब कुछ भूल जाते हैं। दरअसल, हमारा शैक्षिक परिवेश हाल के दिनों में बेहद प्रतिस्पर्धी हो चला है। मासूम बच्चों के सामने गला-काट स्पर्धा होती है। विडंबना यह है कि दुनिया में सबसे बड़ी आबादी वाले देश में रोजगार के अवसर जनसंख्या के अनुपात में नहीं बढ़े हैं, जिससे स्पर्धा और कठिन हो गई है। उच्च शिक्षण संस्थान में प्रवेश हो या फिर नौकरी के अवसर, वे प्रतियोगियों के मुकाबले बहुत कम होते हैं, जिसकी परिणति छात्रों में बढ़ते तनाव और कालांतर में उसके अवसाद में बदलने के रूप में होती है। यही वजह है कि स्कूल-कालेजों के परीक्षा परिणाम आने पर देश में आत्महत्या करने वाले छात्रों की सुर्खियां अखबारों में बनती हैं। सुखद है कि अब आईआईटी मद्रास के शोधकर्ताओं ने ऐसे शारीरिक संकेतकों का पता लगाया है, जिससे पता चल सकेगा कि किन छात्रों में परीक्षा के दौरान चिंता बढ़ने का जोखिम अधिक है। इस खोज को शिक्षा प्रणाली में तनाव प्रबंधन व प्रदर्शन सुधारने हेतु बड़े बदलाव की दिशा में महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है। हाल ही में यह शोध ‘बिहेवियरल ब्रेन रिसर्च’ में प्रकाशित हुआ है। इससे छात्रों के लिए व्यक्तिगत तनाव प्रबंधन योजना भी तैयार हो सकेगी।
यह वैज्ञानिक सत्य है कि किसी भी व्यक्ति में मस्तिष्क व हृदय के बीच संचार-तंत्र टूटने से तनाव पैदा होता है। ऐसे में आईआईटी मद्रास ने परीक्षा के तनाव को पहचानने के जो जैविक संकेत पहचाने हैं, वे आने वाले समय में परीक्षा तनाव प्रबंधन में मददगार साबित हो सकते हैं। कोशिश है कि अब एआई की मदद से छात्रों के तनाव जोखिम की पहचान की जा सके। दरअसल, नये शोध की मुख्य बातें दो शारीरिक संकेतों को जोड़ने में निहित हैं। फ्रंटल अल्फा एसिमिट्री यानी एफएए, जो कि भावनात्मक नियमन का मस्तिष्क आधारित संकेतक है। दूसरा हार्ट रेट वैरिएबिलिटी, जो हृदय के अनुकूलन नियंत्रण को मापता है। ये संकेत चिंताग्रस्त छात्रों की पहचान करने में मदद करते हैं। शोधार्थियों ने पाया कि जिन छात्रों में एफएए पैटर्न नकारात्मक होता है, उनमें तनाव से हृदय के संतुलन तंत्र की क्षमता कमजोर पड़ जाती है। दरअसल, परीक्षा को लेकर जो अधिक फिक्र है, वो हृदय की प्रतिक्रिया को भी बाधित करती है। परिणामस्वरूप वे अधिक तनाव में आ जाते हैं। शोध में इन तथ्यों को भी समझने का प्रयास हुआ कि कुछ छात्र परीक्षा के तनाव के बावजूद बेहतर प्रदर्शन करने में कैसे सफल हो जाते हैं। वहीं कुछ छात्र चिंताग्रस्त होकर परीक्षा में सफल नहीं हो पाते हैं। दरअसल, साल भर नियमित पढ़ाई न करने और परीक्षा सामने आने पर वे घबराहट में तनावग्रस्त हो जाते हैं। एनसीआरटी का एक अध्ययन बताता है कि देश में 81 फीसदी छात्र परीक्षा को लेकर तनाव में रहते हैं। उम्मीद है नया शोध का निष्कर्ष समस्या का कारगर समाधान करेगा।
