अजीब विडंबना ही है कि देश-दुनिया में रह-रहकर सामने आ रहे कोरोना संक्रमण के मामलों के बावजूद हम मान बैठे हैं कि कोरोना वायरस वापस वुहान लौट गया है। बचाव के एहतियाती उपाय मास्क, सुरक्षित दूरी व बार-बार हाथ धोने को बीते दिनों की बात बना चुके हैं। इसके बावजूद कि दुनिया के कई देश संक्रमण की गंभीर चुनौती से जूझ रहे हैं। कई राज्यों में कोरोना संक्रमितों की संख्या में आने वाला उछाल इससे जुड़ी चिंता को दर्शाता रहता है। लेकिन फिर भी, देश में वैक्सीन की उपलब्धता के बावजूद लोग एहतियाती खुराक लेने में कोताही बरत रहे हैं। वैसे तो देश में इस साल दस जनवरी से बूस्टर डोज लगाने की शुरुआत हो चुकी थी। मकसद था कि यदि वैक्सीन से प्राप्त इम्युनिटी में कमी आती है और कोई नया वायरस आये तो बचाव हो सकता है। देश में साठ साल से अधिक के लोगों व अग्रिम पंक्ति के कोरोना योद्धाओं को यह डोज मुफ्त लगायी जा रही थी। देश में साठ साल से अधिक के करीब पच्चीस फीसदी लोग बूस्टर डोज लगवा चुके हैं। बताया जाता है कि बूस्टर डोज लगाने में देश की रफ्तार दुनिया में काफी धीमी है। लेकिन 18 से 59 साल के लोगों ने बूस्टर डोज को गंभीरता से नहीं लिया। देश में केवल एक फीसदी के करीब इस आयु वर्ग के लोगों ने ही एहतियाती खुराक ली। जो कि बेहद चिंता की बात इसलिए है कि सेहत से जुड़े मामलों में हम कितने गंभीर हैं। वह भी तब जब अमेरिका की प्रतिष्ठित टाइम मैग्जीन कह रही है कि भारत में एक नया वायरस सामने आया है जो हमारी प्राकृतिक व वैक्सीन से हासिल रोग प्रतिरोधक क्षमता को पछाड़ रहा है। दरअसल, अब तक 18 से 59 आयु वर्ग को मामूली कीमत चुकाकर बूस्टर डोज मिल रही थी, जिसके चलते लोगों ने इसको लेकर गंभीरता नहीं दिखायी। यही वजह है कि केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने अब आजादी के 75 साल पूरे होने पर 75 दिनों का विशेष अभियान चलाकर इस आयुवर्ग को मुफ्त बूस्टर डोज देने का फैसला लिया है।
उम्मीद की जानी चाहिए कि देश का लक्षित आयुवर्ग इस अवसर का लाभ उठायेगा और खुद व देश को सुरक्षा कवच प्रदान करेगा। सरकार की भी कोशिश है कि आजादी के अमृतकाल में 75 दिन तक लोगों के घर-घर जाकर टीकाकरण अभियान में भाग लेने की अपील की जाये। निश्चित रूप से यदि लोग सहयोग करेंगे तो कोरोना संक्रमण के खिलाफ उनके शरीर में एंटीबॉडी क्षमता बढ़ जायेगी। हमें नये वायरस बीए.2.75 की चुनौती को भी ध्यान में रखना चाहिए, जो भारत में कई जगह पाया गया है। दरअसल कोरोना वायरस का यही वेरिएंट ब्रिटेन, जर्मनी, कनाडा और ऑस्ट्रेलिया में पाया गया है। जिसके बारे में चेताया जा रहा है कि इसे इंसान की प्राकृतिक रोग प्रतिरोधक क्षमता नहीं रोक पा रही है। जिससे दुनियाभर के वैज्ञानिकों की चिंता बढ़ी हुई है। ऐसे में विश्वास किया जाना चाहिए कि बूस्टर डोज लगाने का कुछ फायदा जरूर होगा। हो सकता है कि नई चुनौती को देखते हुए ही केंद्र सरकार ने 18 से 59 साल के आयुवर्ग के लिये बूस्टर डोज मुफ्त में लगाने का फैसला किया हो। हमें एक जिम्मेदार नागरिक का व्यवहार करते हुए बूस्टर डोज अभियान का हिस्सा बनना चाहिए। साथ ही संक्रमण से बचाव के परंपरागत एहतियाती उपायों पर गंभीर व्यवहार करना चाहिए। नागरिकों को इस बात का अहसास होना चाहिए कि कोरोना वायरस कहीं जाने वाला नहीं है, हमें इसके साथ जीने का सलीका सीखना होगा। अपने अनुकूल वातावरण पाकर यह कमजोर रोग प्रतिरोधक क्षमता वाले लोगों को अपना शिकार बनाता रहेगा। कालांतर अन्य मौसमी रोगों की तरह यह भी अपना असर दिखाता रहेगा। बहुत संभव है कि निकट भविष्य में कारगर दवाइयां उपलब्ध होने के बाद इस पर काबू पाया जा सकेगा। तब तक हमारी सावधानी और सतर्कता ही इसका उपचार होगा। बहुत संभव है कि बूस्टर डोज लगाने वाले लोगों को कोरोना से संक्रमित होने के बावजूद ज्यादा परेशानी न हो, अस्पताल जाने की नौबत न आये।