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जबरन वापसी

अवैध प्रवास रोकने पर गंभीर पहल हो
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यह विडंबना ही है कि पूरे विश्व को लोकतांत्रिक मूल्यों, मानव अधिकारों व आदर्श जीवन मूल्यों की नसीहत देने वाले अमेरिका ने विभिन्न देशों के कथित अवैध प्रवासियों को उनके देश भेजने की कार्रवाई को बलपूर्वक अंजाम दिया है। सुनहरे सपनों की आस में घर-खेत दांव पर लगाकर व एजेंटों को लाखों रुपये देकर अमेरिका पहुंचे युवाओं ने सपने में नहीं सोचा होगा कि उन्हें अपराधियों की तरह वापस उनके देश भेजा जाएगा। ये हमारे नीति-नियंताओं की विफलता ही है कि हमारी युवा शक्ति दुनिया के विभिन्न देशों में लुट-पिटकर अपमानजनक स्थितियों का सामना कर रही है। कभी उन्हें पूर्वी एशिया के देशों में साइबर अपराधी बंधक बनाकर ऑनलाइन धोखाधड़ी को अंजाम देते हैं, तो कभी उन्हें धोखे से बिचौलिए रूसी सेना में भर्ती करवा देते हैं। कभी उन्हें इस्राइल-हमास के भयावह युद्धग्रस्त इलाके में काम की तलाश में पहुंचा दिया जाता है। लाखों भारतवंशियों ने अपनी मेधा व पसीने से अमेरिका की प्रतिष्ठा पर चार-चांद लगाए हैं। अंतरिक्ष में इतिहास रचने वाली कल्पना चावला से लेकर भारतवंशी कमला हैरिस, जिन्होंने अपनी प्रतिभा से अमेरिका में उपराष्ट्रपति पद तक हासिल किया। यह विडंबना ही है कि मूलत: प्रवासियों द्वारा बसाये देश अमेरिका में आज सेना के बल पर बेहतर भविष्य की तलाश में आए प्रवासियों को खदेड़ा जा रहा है। मैक्सिको की सीमा पर दीवार खड़ी करके सेना तैनात की जा रही है। यह विडंबना ही कि प्रधानमंत्री मोदी की वाशिंगटन यात्रा से कुछ दिन पहले एक अमेरिकी सैन्य विमान से दो सौ से अधिक कथित अवैध भारतीय प्रवासियों को जबरन वापस भारत लाया गया है। निश्चित रूप से संकीर्णतावादी सोच का पक्षधर ट्रंप प्रशासन दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था वाले देश भारत के साथ वैसा व्यवहार नहीं कर सकता जैसा कि वह अल साल्वाडोर, ग्वाटेमाला, होंडुरास, पेरू के प्रवासियों के साथ कर रहा है। हालांकि, एक अध्ययन में दावा किया गया है कि भारत, अमेरिका में गए सर्वाधिक अवैध अप्रवासियों वाले देशों में शुमार है।

निश्चित रूप से प्रधानमंत्री की अमेरिका यात्रा से पूर्व जबरन की गई ‘निर्वासन उड़ान’ विसंगतियों व विडंबनाओं की ही घोतक है। हालांकि, भारत ने कूटनीतिक प्रयासों से अवैध अप्रवासन पर समयानुकूल निर्णय लेकर दोनों देशों में संबंध सामान्य बनाने का प्रयास किया। दरअसल, अमेरिका की हालिया यात्रा के दौरान विदेश मंत्री एस जयशंकर ने जमीनी स्तर पर बेहतर कूटनीतिक प्रयास किये। उन्होंने ट्रंप प्रशासन को इस बात को लेकर आश्वस्त किया कि भारत अपने भटके हुए नागरिकों की वैध वापसी के लिये तैयार है। निस्संदेह, भारत ने समझदारी से टकराव टालने का सार्थक प्रयास किया ताकि मोदी-ट्रंप की मुलाकात से पहले दोनों देशों के संबंधों में कड़वाहट न घुले। निश्चय ही तुनक मिजाज ट्रंप व उनके प्रशासन से इस मुद्दे पर अड़ने में कोई समझदारी भी नहीं थी। ऐसी ही स्थिति पर कोलम्बिया के राष्ट्रपति गुस्तावो पेट्रो द्वारा अपने प्रवासी नागरिकों से भरे अमेरिकी सेना के जहाज को न उतरने देने की घोषणा करके अपने लिए अपमानजनक स्थितियां पैदा कर दी थी। पहले उन्होंने निर्वासित लोगों को ले जाने वाली सैन्य उड़ानों को स्वीकार करने से मना कर दिया था। लेकिन फिर राष्ट्रपति ट्रंप द्वारा कोलंबिया पर टैरिफ और प्रतिबंध लगाने की धमकी के बाद उन्होंने यू-टर्न ले लिया। अब वही कोलंबिया के राष्ट्रपति प्रवासियों से तुरंत घर आने और ‘सामाजिक संपदा’ के निर्माण में योगदान का अनुरोध कर रहे हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या भारत के पास अमेरिका से निर्वासन के लिये चिन्हित अपने करीब अट्ठारह हजार कथित अवैध प्रवासी नागरिकों के पुनर्वास को लेकर कोई योजना है? सरकार कैसे सुनिश्चित करेगी कि भविष्य में ये लोग फिर किसी आप्रवासन का दुस्साहस नहीं करेंगे? निश्चित रूप से समय की मांग है कि बेईमान ट्रैवल एजेंटों के खिलाफ राष्ट्रव्यापी कार्रवाई की जाए, जो युवाओं को सुनहरे सपने दिखाकर अवैध रूप से अमेरिका व अन्य देशों में भेजते हैं। निस्संदेह, विकसित भारत का सपना दूर की कौड़ी है, लेकिन सबसे पहली प्राथमिकता देश की युवा शक्ति को कुशल बनाने तथा रोजगार के आकर्षक अवसर पैदा करना होनी चाहिए। वहीं दूसरी ओर प्रधानमंत्री की अमेरिका यात्रा के दौरान कानूनी प्रवासन को सुव्यवस्थित करने का एजेंडा सर्वोपरि होना चाहिए।

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