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आत्मनिर्भरता की उड़ान

स्वदेशी विमान निर्माण से सेना को संबल
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अक्सर कहा जाता रहा है कि भारतीय सेना के युद्धक व मालवाहक विमान पुराने पड़ चुके हैं। निस्संदेह, वायुसेना व सेना को इसकी कीमत भी चुकानी पड़ती थी। लेकिन यह सुखद है कि देश में पहली बार एक स्वदेशी निजी कंपनी आत्मनिर्भर भारत अभियान को संबल देकर देश में सेना के लिये युद्धक ‍विमानों का निर्माण करेगी। जब वडोदरा में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनके स्पेनिश समकक्ष पेद्रो सांचेज ने टाटा एअरक्राफ्ट कॉम्प्लेक्स में इस महत्वाकांक्षी परियोजना की बुनियाद रखी, तो निश्चय ही भारत एक नये युग में प्रवेश कर रहा था। पहली बार कोई निजी कंपनी विमान निर्माण के क्षेत्र में कदम रख रही थी। वह भी देश का भरोसेमंद और एअर इंडिया का उद्धार करने वाला टाटा समूह का उपक्रम। निश्चित ही हम ‘मेक इन इंडिया’ के संकल्प को हकीकत बनता देख रहे हैं। साथ ही हम उस दाग को धोने की तरफ भी आगे बढ़े हैं कि जिसके बाबत कहा जाता है कि भारत दुनिया के सबसे बड़े हथियार खरीददार देशों में शुमार है। उल्लेखनीय है कि टाटा एडवांस सिस्टम्स लिमिटेड और स्पेन की एअरबस के संयुक्त उपक्रम में 40 सी-295 विमानों का निर्माण होगा। यह भी कि स्पेन व भारत के मध्य कुल 56 विमानों को लेकर समझौता हुआ था, जिसमें 16 तैयार विमान स्पेन से भारत को मिलने हैं। दरअसल, सी-295 विमान सैनिकों, साजो-सामान तथा हथियारों काे लाने-ले जाने में खासा मददगार होता है। साथ ही यह छोटी हवाई पट्टी व दुर्गम इलाकों से भी उड़ान भर सकता है। यह अच्छी बात है कि बीते कुछ वर्षों में भारत सरकार ने उन्नत एवं तकनीकी क्षेत्रों में उत्पादन बढ़ाने को अपनी प्राथमिकता बनाया है। जिसमें रक्षा उत्पादों, इलेक्ट्रॉनिक्स उपकरणों, इलेक्ट्रिक वाहनों, ग्रीन हाइड्रोजन तथा सेमीकंडक्टर का उत्पादन शामिल है। अपने इस अभियान में सरकार ने न केवल विदेशी निवेश को आमंत्रित किया बल्कि देश के निजी क्षेत्र को भरपूर संसाधन व पर्याप्त मौके उपलब्ध कराए हैं। तय मानिये कि आने वाले वाले वर्षों में इसके सकारात्मक परिणाम मिलेंगे।

निश्चित रूप से केंद्र सरकार की ऐसी कोशिशों से जहां हम रक्षा उत्पादन के क्षेत्रों में आत्मनिर्भर होंगे, वहीं इससेे देश में रोजगार के अवसर भी बढ़ेंगे। ऐसा करके हम न केवल अपने दुर्लभ विदेशी मुद्रा भंडार को बढ़ा सकते हैं बल्कि इन उत्पादों के निर्यात की दौड़ में भी शामिल हो सकते हैं। यकीनी तौर पर देश की अर्थव्यवस्था को भी इससे बड़ा संबल मिलेगा। बहरहाल, यह तय है कि भारतीय सेना में सी-295 विमानों के शामिल होने से हम पुराने रूसी विमानों के जोखिम से भी बच सकेंगे। साथ ही सामरिक क्षेत्र में यह देश की बढ़त भी होगी। वहीं देश में रोजगार के मौके भी बढ़ेंगे। कहा जा रहा है कि देश में सी-295 की निर्माण परियोजना से तीन हजार प्रत्यक्ष और 15 हजार परोक्ष रोजगार के अवसर सृजित होंगे। इसके अलावा बड़ोदरा व उसके आसपास के इलाके की आर्थिकी को नई गति भी मिलेगी। वहीं इन विमानों में उपयोग होने वाले स्वदेशी कल-पुर्जों से भी विभिन्न आय के साधन विकसित होंगे। विगत के अनुभव रहे हैं कि भारत के मुश्किल वक्त में हथियारों की आपूर्ति में विदेशी सरकारों ने मदद करने में आनाकानी की थी। लेकिन बहुत संभव है कि सी-295 परियोजना की सफलता के बाद भारत रक्षा उत्पादों के निर्यात में भागीदारी कर सकेगा। संभावना यह भी कि कालांतर देश में ऐसी विशिष्ट उत्पादों के निर्माण की संस्कृति विकसित हो, जो न केवल देश को हथियार उत्पादन में आत्मनिर्भर बनाये, बल्कि भारत की तीनों सेनाओं का मनोबल भी ऊंचा करे। अंतत: देश के समक्ष उत्पन्न किसी भी रक्षा चुनौती का सेनाएं भी तत्परता से मुकाबला कर सकेंगी। वैसे भी किसी देश की सेना की क्षमता का मूल्यांकन उसकी वायुसेना की ताकत व आधुनिक युद्धक विमानों की उपलब्धता से ही होता है। समय के साथ कदमताल करते हुए आज किसी सेना की ताकत का मूल्यांकन आधुनिक तकनीक व साजो-सामान की उपलब्धता पर ही निर्भर करता है। भारत इस दिशा में लगातार बढ़ रहा है। निस्संदेह, यह हमारी संप्रभुता को अक्षुण्ण बनाएगा।

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