किसान हित पहले
देश को धीरे-धीरे समझ आने लगा है कि भारतीय कृषि व डेरी क्षेत्र में अमेरिकी उत्पाद खपाने के लिये ही डोनाल्ड ट्रंप टैरिफ आंतक फैला रहे हैं। यही वजह है कि पहले संयम दिखाने के बाद भारत ने निरंकुश ट्रंप सरकार को चेता दिया है कि भारतीय किसानों व दुग्ध उत्पादकों के हितों की बलि नहीं दी जा सकती। हमारे लिये यह देश की एक बड़ी कृषि व डेरी उद्योग से जुड़ी आबादी के जीवन-यापन का भी प्रश्न है। अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ट्रंप द्वारा अतार्किक टैरिफ बढ़ाने पर कड़ी प्रतिक्रिया दी है। साथ ही उन्होंने देश के किसानों को आश्वस्त किया है कि उनके हितों से किसी भी कीमत पर समझौता नहीं किया जाएगा। भारत में हरित क्रांति के सूत्रधार,प्रसिद्ध कृषि वैज्ञानिक एमएस स्वामीनाथन की जन्म शताब्दी के मौके पर उनका यह बयान और महत्वपूर्ण व प्रासंगिक हो जाता है। कृतज्ञ राष्ट्र स्वीकार करता है कि स्वामीनाथन के हरित क्रांति में योगदान से भारत खाद्यान्न की कमी से उबरकर आज खाद्यान्न अधिशेष वाला राष्ट्र बन गया है। बहरहाल, यह तय हो गया है कि भारत वाशिंगटन के उन मंसूबों पर पानी फेरने के लिये खड़ा हो गया है, जिनके तहत अमेरिका मक्का, सोयाबीन, सेब, बादाम और इथेनॉल जैसे उत्पादों से कम टैरिफ के साथ भारत के बाजार को पाटना चाहता है। निस्संदेह, भारतीय अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण योगदान देने वाले तीन प्रमुख क्षेत्रों कृषि, डेरी फार्मिंग और मत्स्य पालन से जुड़े करोड़ों लोगों की अजीविका की रक्षा करने के लिये प्रधानमंत्री की प्रतिबद्धता सराहनीय है। हालांकि, इस दृढ़ संकल्प की परीक्षा ट्रंप शासन द्वारा ली जाएगी। जो भारत द्वारा रूस से सस्ती दरों पर कच्चा तेल खरीदने के मुद्दे को लेकर लगातार दबाव बना रहा है। यह तथ्य किसी से छिपा नहीं है कि भारतीय राजनीति में किसान उत्पादक व उपभोक्ता से इतर बड़ा राजनीतिक घटक भी है। ऐसे में जाहिर है कि प्रधानमंत्री मोदी कृषक समुदाय को किसी भी कीमत पर नाराज नहीं करना चाहेंगे।
इसमें दो राय नहीं कि विगत में भी किसान असंतोष को राजनीतिक हथियार बनाने में विपक्ष ने कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी थी। खासकर केंद्र सरकार ने तीन केंद्रीय कृषि कानूनों के खिलाफ वर्ष 2020-21 में दिल्ली की सीमाओं पर साल भर चले किसान आंदोलन से कड़वा सबक सीखा है। किसान लंबे समय तक अपनी मांगों को लेकर डटे रहे थे। जिसके बाद अंतत: इन विवादास्पद कानूनों को निरस्त कर दिया गया था। इस बीच आंदोलन में किसानों ने अपने अनेक साथियों को खोया था। दरअसल, आंदोलनकारी किसानों की एक मुख्य मांग- विभिन्न कृषि उत्पादों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य को कानूनी गारंटी देने की थी। कृषि संगठनों के साथ लंबी चली कई दौर की बातचीत के बावजूद एमएसपी मुद्दे पर गतिरोध कायम है। आज अमेरिकी दबाव का सामना करने के लिये विभिन्न हितधारकों को एकजुट होने की आवश्यकता है। बहरहाल, अमेरिका के खतरनाक मंसूबे अब उजागर होने लगे हैं। वह भारत के बाजार को अपने डेरी उत्पादों के लिये डंपिंग ग्राउंड बनाने पर आमादा है। निस्संदेह, डोनाल्ड ट्रंप के हमले का सामना करने के लिये भारतीय कृषि बाजार को अधिक लचीला और लाभदायक बनाने की जरूरत महसूस की जा रही है। वहीं दूसरी ओर भारतीय किसानों पर बढ़ता भारी कर्ज भी एक चिंताजनक स्थिति है। खासकर देश की खाद्य सुरक्षा में महत्वपूर्ण योगदान देने वाले राज्य पंजाब और हरियाणा में। साथ ही केंद्र सरकार को किसानों की आय बढ़ाने वाले उपायों पर ध्यान देने की सख्त जरूरत है। सही मायनों में भारतीय कृषि में उन आमूल-चूल परिवर्तनों की आवश्यकता है जो न केवल किसान की आय बढ़ाएं बल्कि कृषि उत्पादों को विश्व बाजार की चुनौतियों से मुकाबला करने में भी सक्षम बनायें। एक सौ चालीस करोड़ आबादी वाला देश भारत दुनिया में सबसे ज्यादा जनसंख्या वाला देश है। इस आबादी की खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करना भी देश की प्राथमिकता होनी चाहिए। ऐसे में हरित क्रांति के जनक एम.एस. स्वामीनाथन को सच्ची श्रद्धांजलि यही होगी कि हम हर हालात में मेहनतकश अन्नदाता को पूरे दिल से समर्थन दें।