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यूनुस से उम्मीदें

बांग्लादेश को पटरी पर लाने की चुनौती

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शेख हसीना के नाटकीय ढंग से बांग्लादेश छोड़ने के बाद अराजकता व हिंसा का जो तांडव चलता रहा है, उसके बीच अंतरिम सरकार के मुखिया की जिम्मेदारी नोबेल पुरस्कार विजेता मुहम्मद यूनुस को मिलना नई उम्मीदें जगाता है। यह आने वाला वक्त बताएगा कि 84 वर्षीय नोबेल पुरस्कार विजेता यूनुस निर्विवाद लोकप्रियता के बावजूद अराजक बांग्लादेश को कितनी जल्दी सामान्य बना पाते हैं। निश्चित रूप से उथल-पुथल से गुजरते देश में स्थिरता लाना एक कठिन चुनौती होगी। लेकिन यह भी एक हकीकत है कि विश्वविख्यात अर्थशास्त्री और गैर-राजनीतिक पृष्ठभूमि वाले यूनुस मौजूदा हालात में एक बेहद विश्वसनीय विकल्प के रूप में सामने आए हैं। यहां तक कि हसीना सरकार के खिलाफ आंदोलनरत छात्र नेताओं ने ही उनके नाम की सिफारिश इस जिम्मेदारी के लिये की थी। यह अच्छी बात है कि उन्होंने कहा कि देश मे हिंसा व अशांति रहने से यह दूसरी आजादी निरर्थक साबित हो सकती है। वहीं उन्होंने भारत से बेहतर रिश्तों की भी जरूरत बतायी है। साथ ही उन्होंने आंदोलनकारियों को लगातार जारी हिंसा के क्षेत्रीय प्रभावों को लेकर भी चेताया है। जाहिर है यूनुस की प्राथमिकता तात्कालिक रूप से सामान्य स्थिति की बहाली, कानून और व्यवस्था में सुधार सुनिश्चित करने तथा कमजोर व अल्पसंख्यक समूहों की सुरक्षा तय करना होगी। बांग्लादेश तथा विश्व में मिले सम्मान व विश्वास से अर्जित अधिकार का वे कितने प्रभावशाली ढंग से उपयोग अराजकता समाप्त करने में कर पाते हैं, इसी बात पर उनकी सफलता निर्भर करेगी। निस्संदेह, बांग्लादेश में निरंकुश शासन से उपजे असंतोष ने सत्ता परिवर्तन का मार्ग प्रशस्त किया है। अब यूनुस जैसे प्रगतिशाली व उदार व्यक्ति के हाथ में कमोबेश सत्ता की बागडोर आना निश्चित रूप से भारत के भी हित में होगा। उम्मीद की जानी चाहिए कि भारत सरकार भी इस रचनात्मक परिवर्तन के प्रति सकारात्मक रुख दिखाएगी। जाहिर है आने वाले दिनों में उनका नेतृत्व ही तय कर सकेगा कि बांग्लादेश कट्टरपंथियों व सेना के चंगुल से मुक्त होकर एक नई शुरुआत की ओर बढ़ सकेगा।

निश्चित रूप से एक कार्यवाहक सरकार के मुखिया के रूप में यूनुस से बांग्लादेश के लोकतांत्रिक संस्थानों में सुधार, स्वतंत्र व निष्पक्ष चुनाव की आकांक्षा को पूरा करने, नेताओं को जवाबदेह बनाने, प्रतिशोध की राजनीति की समाप्ति, सेना व चरमपंथियों की निरंकुशता पर अंकुश लगाने की उम्मीद की जा रही है। यह तथ्य किसी से छिपा नहीं कि हसीना सरकार के कार्यकाल में यूनुस को राजनीतिक प्रतिशोध का सामना करना पड़ा। उन्होंने सौ से अधिक मुकदमों का सामना किया। यही वजह है कि उन्हें आंदोलनकारियों ने मार्गदर्शक बनाने पर जोर दिया था। बहरहाल, फिलहाल, भारत की गंभीर चिंताएं अपने नागरिकों व बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों की सुरक्षा तक ही सीमित नहीं हैं। बल्कि यह भी हकीकत है कि बांग्लादेश में लंबे समय तक अस्थिरता भी हमारे लिये चिंता की बात होगी। ऐसे में बांग्लादेश में अंतरिम सरकार से सहयोग करना भारत की प्राथमिकता होनी चाहिए। यह अच्छी बात है कि भारत विरोधी राजनीतिक दलों, सेना व कट्टरपंथियों के दबाव के बावजूद उन्होंने भारत के साथ रिश्ते सुधारने पर बल दिया है। निश्चित रूप से नेतृत्वहीनता जैसी स्थिति वाले देश में अंतरिम सरकार का बनना एक सकारात्मक संकेत कहा जा सकता है। अब ये आने वाला वक्त बताएगा कि यूनुस कितनी जल्दी देश को उथल-पुथल से निकालकर उसे सामान्य स्थितियों की ओर ले जा सकते हैं। उम्मीद की जानी चाहिए कि नोबेल पुरस्कार विजेता यूनुस व्यापक विश्वसनीयता के बूते अपने देश में अमन-चैन कायम कर पाएंगे। अपने आर्थिक मॉडल से गरीबों को गरीबी के दलदल से निकालने वाले मुहम्मद यूनुस की रचनात्मक पहल ने उन्हें देश में व्यापक जनाधार दिया है। इतना ही नहीं दुनिया के सौ से अधिक देशों में उनके मॉडल पर आधारित ग्रामीण बैंकिंग प्रणाली का अनुकरण किया जा रहा है। विश्वास किया जाना चाहिए कि प्रगतिशील सोच वाले यूनुस के प्रयासों से बांग्लादेश अपनी तेज आर्थिक विकास दर को फिर से हासिल कर सकेगा। हालांकि, देखना होगा कि सेना, राष्ट्रपति, कट्टरपंथी रुझान वाले राजनीतिक दलों व जमात से मुकाबला करते हुए मुहम्मद यूनुस कैसे दबाव मुक्त हो पाते हैं।

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