महामारी मोटापे की
देश में जिस तेजी से मोटापा और उससे जनित रोगों का दायरा बढ़ा है, उससे यह एक सार्वजनिक स्वास्थ्य आपात जैसी स्थिति बनती जा रही है। जिससे मोटापा जनित गैर संक्रामक रोगों में भी तेजी से वृद्धि हो रही है। एक हालिया अध्ययन में इंडियन जर्नल ऑफ मेडिकल रिसर्च व विश्व स्वास्थ्य संगठन ने खुलासा किया है कि साल 2025 तक भारत की वयस्क आबादी में मोटापे की दर 20 से 23 फीसदी तक जा पहुंची है। जबकि वर्ष 1990 में देश यह दर महज नौ से दस प्रतिशत ही थी। चिंता की बात यह है कि महज तीन दशक में मोटापा बढ़ने की यह दर दो गुना हो चुकी है। यही वजह है कि शहरों में आजकल हर चौथा व्यक्ति मोटापे का शिकार दिखायी देता है। दरअसल, देश में जैसे-जैसे आर्थिक समृद्धि आई तो हमारी खान-पान की आदतों में बदलाव आया है। हमारे भोजन में डिब्बाबंद खाद्य पदार्थ, अधिक शूगर वाले पेय पदार्थ और युवाओं में जंक फूड का उपभोग तेजी से बढ़ा है। सबसे चिंताजनक बात यह है कि खाद्य तेलों का उपयोग भी बहुत तेज गति से बढ़ा है। आर्थिक विकास से समृद्धि आई तो हमारा खानपान समृद्ध हुआ,लेकिन वहीं शारीरिक निष्क्रियता भी बढ़ी है। दरअसल, खाद्य तेलों का बेतहाशा उपयोग भी मोटापे की वजह बना है। देश में नब्बे के दशक में जहां प्रति व्यक्ति तेल की औसतन खपत साढ़े तीन से चार लीटर थी, जो अब करीब बीस लीटर सालाना हो गई है। यानी चिंताजनक स्थिति तक पहुंचकर पांच गुना हो गई है। अब मोटापे की समस्या से शहर ही नहीं, ग्रामीण जीवन भी प्रभावित हो रहा है। बीती सदी में ऐसा देखने में नहीं आता है। दरअसल, इस सदी की शुरुआत में आई आर्थिक समृद्धि ने न केवल हमारी खानपान की आदतें बदली, बल्कि वाहनों के अधिक उपयोग व आरामदायक जीवनशैली ने हमारी शारीरिक सक्रियता भी कम कर दी। जो मोटापे की एक बड़ी वजह बना।
देश में मोटापे की समस्या किस हद तक पहुंच चुकी है और उससे गैर संक्रामक रोग कितनी तेजी से बढ़ रहे हैं, उसको लेकर कई सार्वजनिक मंचों से प्रधानमंत्री देश को संबोधित कर चुके हैं। स्वतंत्रता दिवस पर उन्होंने देश में गति पकड़ते मोटापे पर गंभीर चिंता जतायी। विश्व स्वास्थ्य दिवस पर भी वे मोटापे से मुक्त जीवन के लिये लाइफ स्टाइल में बदलाव की बात कह चुके हैं। उन्होंने खाद्य तेलों के उपयोग में कमी लाने की भी बात कही। विश्व स्वास्थ्य संगठन भी कह चुका है कि पांच-छह सौ एमएल से अधिक खाद्य तेल का सेवन मोटापे, उच्च रक्तचाप, दिल के रोग और डायबिटीज के खतरे को बढ़ा सकता है। स्वास्थ्य विशेषज्ञ कह रहे हैं कि खानपान की आदतों में सुधार और शारीरिक सक्रियता बढ़ाने से हम मोटापा कम कर सकते हैं। नियमित व्यायाम व योग-प्राणायाम इसमें खासे मददगार हैं। यहां संकट हमारी जीवन शैली में आये बदलावों का भी है, जिसमें हम देर रात को अधिक गरिष्ठ भोजन करते हैं। देर से सोना और देर से जागना अब आम बात हो चली है। तेजी से होते शहरीकरण, आफिसों में देर तक काम करने, शारीरिक सक्रियता में कमी तथा देर रात तक सोशल मीडिया में उलझे रहने से भी नींद की कमी ने जीवन में तनाव को बढ़ाया है। यह तनाव हमारी खानपान की आदतों को बुरी तरह प्रभावित करके मोटापे को बढ़ाता है। यही वजह है कि एक बहुचर्चित मेडिकल पत्रिका ने चेताया है कि भारत में 2050 तक पैंतालीस करोड़ युवा मोटापे की चपेट में आ सकते हैं। इस समस्या का एक पहलू यह भी है कि सोशल मीडिया पर मोटापा कम करने के नीम-हकीमी नुस्खों की भरमार आई है। हर दूसरा आदमी मोटापा कम करने के तरीके बताता नजर आता है। जबकि चिकित्सीय दृष्टि ये तथ्य प्रमाणिक नहीं हैं। लेकिन फिर भी लोग आंख मूंदकर उस पर विश्वास करने लगते हैं। कुछ लोग जिम जाकर रातों-रात वजन घटाने का उपक्रम करके अपने शरीर से खिलवाड़ करने लगते हैं। वजन घटने में सावधानी की लंबी प्रक्रिया भी होती है। जल्दीबाजी के चक्कर में कई लोग अपनी जान से भी हाथ धो बैठते हैं।