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बिजली को झटका

चोरी व कुप्रबंधन पर अंकुश जरूरी
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जिस राज्य में उपभोक्ताओं को मुफ्त बिजली दी जा रही हो, वहां बिजली चोरी का चिंताजनक स्थिति तक पहुंच जाना, निश्चित ही गंभीर मसला है। पंजाब राज्य विद्युत निगम लिमिटेड को यदि वर्ष 2024-25 में दो हजार करोड़ रुपये से अधिक का नुकसान हुआ है तो उसकी बड़ी वजह पंजाब में बिजली चोरी का बेहद गंभीर स्थिति को पार कर जाना है। ये नुकसान प्रतिदिन के हिसाब से 5.5 करोड़ रुपये बैठता है। इससे भी अधिक चौंकाने वाली बात तो यह है कि यह नुकसान सिस्टम की विफलता या प्राकृतिक आपदाओं के कारण नहीं हुआ है बल्कि जानबूझ कर सुनियोजित तरीके से की जा रही बिजली चोरी की वजह से हुआ है। राज्य में घाटे में चल रहे लगभग 77 फीसदी फीडर सीमावर्ती और पश्चिमी क्षेत्रों में स्थापित हैं, जिनमें पट्टी, भिखीविंड, अजनाला और जीरा जैसे डिवीजन शामिल हैं, जिनमें से कई संगठित बिजली चोरी के लिए कुख्यात हैं। भूमिगत कुंडी कनेक्शन से लेकर मीटर से छेड़छाड़ और पिलर बॉक्स को निष्क्रिय करके चोरी करना एक आम तरीका बन गया है। आरोप है कि ये चोरी आमतौर पर राजनीतिक व धार्मिक संस्थाओं के संरक्षण में होती है। दरअसल, इस विडंबना को नजरअंदाज करना मुश्किल है कि जबकि लोगों को पहले ही छह सौ यूनिट तक सब्सिडी वाली यानी कि मुफ्त बिजली का लाभ उठाने का मौका मिल रहा है, लेकिन इसके बावजूद बिजली चोरी की प्रवृत्ति कम नहीं हो रही है। दरअसल, पंजाब राज्य विद्युत निगम लिमिटेड का संकट यहीं खत्म नहीं हो जाता। पीएसपीसीएल कुप्रबंधन व व्यवस्थागत संकटों से भी गंभीर रूप से जूझ रहा है। पंजाब राज्य विद्युत निगम लिमिटेड कर्मचारियों की भारी कमी की चुनौतियों से जूझ रहा है। बिजली विभाग में 4900 से अधिक लाइनमैनों के पद स्वीकृत हैं, लेकिन फिलहाल केवल 1313 लाइनमैन काम कर रहे हैं। अकेले लुधियाना में ही जूनियर इंजीनियर के आधे पद खाली हैं। बिजली चोरी रोकने तथा बेहतर व्यवस्था के लिये कर्मचारी भर्ती अभियान को गति दी जानी चाहिए।

दरअसल, पीएसपीसीएल में पर्याप्त कर्मचारी न होने के कारण विभागीय कार्यक्षमता बुरी तरह से प्रभावित है। जब भी किसी इलाके में विद्युत आपूर्ति व्यवस्था में किसी तरह का व्यवधान उत्पन्न होता है तो तत्काल कार्रवाई बिजली बहाल करने के लिये नहीं हो पाती। फलत: लंबे समय तक बिजली गुल रहने से लोगों की नाराजगी लगातार बढ़ती है। विभाग में पक्के मुलाजिमों की नियुक्ति न होने पर कम वेतन पाने वाले संविदा कर्मचारियों के जरिये व्यवस्था बनाने की कोशिश होती है। जिसके चलते संविदा कर्मचारियों द्वारा अकसर आंदोलन किया जाता है। वे खुद को पक्का करने की मांग करते रहते हैं। उनका आरोप होता है कि कम वेतन देकर उनसे ज्यादा काम कराया जाता है। जानकार मानते हैं कि सिर्फ संविदा कर्मचारियों पर अत्याधिक निर्भरता केवल तदर्थवाद को ही बढ़ाएगी। हालांकि, नियामक आयोग ने इस गड़बड़ी को भी चिन्हित किया है। लेकिन इससे ही समस्या का समाधान संभव नहीं है, संकट के निराकरण को गंभीर प्रयासों की जरूरत महसूस की जा रही है। इस समस्या का व्यापक स्तर पर समाधान तभी संभव है जब राज्य के नेतृत्व द्वारा इच्छा-शक्ति को दर्शाया जाएगा। समय की मांग है कि भारी घाटे वाले फीडरों में वित्तीय प्रबंधन के लिये लक्षित कार्रवाई की जाए। साथ ही लोगों को ईमानदारी से बिजली के उपयोग के लिये प्रोत्साहित किया जाए। उम्मीद की जानी चाहिए कि छेड़छाड़ न किये जा सकने वाले स्मार्ट मीटर लगाने से बिजली चोरी की घटनाओं पर अंकुश लग सकेगा। इस दिशा में उठाए गए कदम समस्या का वास्तविक निस्तारण करने वाले होने चाहिए। साथ ही बिजली चोरी रोकने के लिये सख्त दंड का भी प्रावधान किया जाना जरूरी है। बिजली चोरी में लिप्त लोगों की पहचान होने पर उन्हें दंडित किया जाना जरूरी है। साथ ही ऐसे लोगों को मुफ्त बिजली पाने की योजना का लाभ उठाने के अधिकार से भी वंचित किया जाना चाहिए। दरअसल, सख्त व पारदर्शी दंड व्यवस्था ही चोरी की प्रवृत्ति पर अंकुश लगा सकती है। पीएसपीसीएल को अधिक नुकसान नहीं उठाना चाहिए, जबकि पंजाब पहले ही कर्ज का बोझ उठाने वाले राज्यों में दूसरे स्थान पर है।

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