Tribune
PT
About the Dainik Tribune Code Of Ethics Advertise with us Classifieds Download App
search-icon-img
Advertisement

बदहाली की शिक्षा

व्यवस्थागत त्रास झेलते हरियाणा के स्कूल
  • fb
  • twitter
  • whatsapp
  • whatsapp
Advertisement

हरियाणा के सरकारी स्कूल जिस बदहाली से गुजर रहे हैं उसका निष्कर्ष यही है कि ये स्कूल बीमार भविष्य के कारखाने साबित हो सकते हैं। हरियाणा के प्राथमिक शिक्षा विभाग द्वारा हाल में किए गए युक्तीकरण के प्रयासों से राज्य में सार्वजनिक शिक्षा की निराशाजनक स्थिति ही उजागर हुई है। सबसे अधिक चौंकाने वाली बात यह है कि राज्य में 487 सरकारी प्राथमिक विद्यालय बिना किसी शिक्षक के संचालित किए जा रहे हैं। वहीं दूसरी ओर विडंबना यह है कि करीब 294 स्कूलों में कोई छात्र नामांकित नहीं है। निश्चय की छात्रों के मोहभंग के कारणों को समझना कठिन नहीं है। निश्चित रूप से यदि प्राथमिक शिक्षा की यह तस्वीर है तो माध्यमिक और उच्च शिक्षा की स्थिति और भी खराब हो सकती है। विडंबना यह भी है कि शिक्षा व्यवस्था को युक्तिसंगत बनाने की कवायद में शिक्षकों की बड़ी कमी के बावजूद पांच हजार से अधिक शिक्षकों के पद समाप्त हो गए हैं। हालांकि, छात्र-शिक्षक अनुपात 28:1 प्रबंधनीय लग सकता है, लेकिन जमीनी हकीकत इससे कहीं ज्यादा खराब है। लगभग 16,500 से अधिक टीजीटी और 11,341 पीजीटी शिक्षकों के पद खाली पड़े हैं। इतना ही नहीं राज्य के विश्वविद्यालय और कालेज भी शिक्षकों की भारी कमी से जूझ रहे हैं। यहां तक कि सरकारी कॉलेजों में भी व्याख्याताओं के लगभग आधी पद खाली हैं। इसे विडंबना ही कहा जाएगा कि राज्य में योग्य बेरोजगारों की बड़ी संख्या के बावजूद ये पद खाली पड़े हैं। जो व्यवस्थागत खामियों की ओर ही इशारा करते हैं। विसंगति यह भी है कि बजटीय उपेक्षा ने समस्या को और बढ़ा दिया है। पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय ने पिछले साल एक संबंधित मामले में एक याचिका पर सुनवाई करते हुए आवंटित बजट का समय रहते उपयोग न कर पाने के कारण शिक्षा निधि में 10,675 करोड़ रुपये वापस लौटने का उल्लेख किया था। जो शिक्षा विभाग की उदासीनता की ही तस्वीर ही उकेरता है।

ऐसे में सवाल उठना स्वाभाविक है कि एक ओर वित्तीय संसाधनों की कमी की बात कही जाती है और दूसरी ओर शिक्षा निधि में उपयोग न किए गए धन को लौटाने की बात सामने आ रही है। जाहिरा तौर पर यदि आवंटित धन का प्रभावी ढंग से उपयोग नहीं किया जा रहा है तो नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति के तहत शिक्षा व्यवस्था को मजबूत करने का दावा निरर्थक ही साबित होगा। कमोवेश शिक्षा की गुणवत्ता को लेकर भी सवाल उठाये जाते रहे हैं। कहा जा रहा है कि हरियाणा के सरकारी स्कूलों के छात्रों का अंकगणितीय ज्ञान और साक्षरता का कौशल पंजाब व पड़ोसी राज्य हिमाचल से कमतर ही है। हाल में जारी वार्षिक शिक्षा स्थिति रिपोर्ट यानी एएसईआर 2024 एक गंभीर स्थिति को ही उजागर करती है। वार्षिक स्थिति रिपोर्ट में उजागर हुआ है कि ग्रामीण स्कूलों में कक्षा आठवीं तक के केवल 43.1 प्रतिशत छात्र ही गणित में भाग की गणनाएं कर सकते हैं। जो कि वर्ष 2022 में 49.5 प्रतिशत से कम ही है। जबकि दूसरी ओर पंजाब के स्कूलों के छात्र 58 फीसदी के साथ सबसे आगे हैं। उसके बाद हिमाचल प्रदेश 44 प्रतिशत के साथ दूसरे स्थान पर है। वहीं दूसरी ओर पढ़ने का कौशल भी उतना ही चिंताजनक है। ऐसे में शिक्षा क्षेत्र गिरावट का ट्रेंड ही नजर आएगा। जाहिर है इससे छात्रों का ही नुकसान होगा। दरअसल, शिक्षा व्यवस्था की गंभीर खामियों को संबोधित करने की जरूरत है। निस्संदेह, सरकारी स्कूलों में समाज के कमजोर वर्ग के बच्चों की ही अधिकता होती है। समाज के वंचित वर्ग के छात्र भी बड़ी संख्या में इन स्कूलों में दाखिले लेते हैं। उनकी पारिवारिक स्थिति कुछ ऐसी होती है कि अभिभावक की छात्रों के उन्नयन में आपेक्षित भूमिका नहीं हो पाती। ऐसे में शिक्षकों की जवाबदेही तय करने की जरूरत तो है ही, साथ ही शिक्षा विभाग को भी व्यवस्थागत विसंगतियों को दूर करने के लिये गंभीर प्रयास करने की जरूरत है। सरकार को भी शिक्षक-छात्र अनुपात को न्यायसंगत बनाने की दिशा में युद्ध स्तर पर प्रयास करने चाहिए। उन कारणों की भी पड़ताल हो जिनकी वजह से छात्रों का सरकारी स्कूलों में प्रदर्शन निराशाजनक बना हुआ है।

Advertisement

Advertisement
×