Tribune
PT
Subscribe To Print Edition About the Dainik Tribune Code Of Ethics Advertise with us Classifieds Download App
search-icon-img
Advertisement

आग से न खेलें

ध्रुवीकरण समरसता के लिये घातक

  • fb
  • twitter
  • whatsapp
  • whatsapp
Advertisement

देश में आम चुनाव के लिये भले अभी काफी समय बाकी है लेकिन फिजाओं में स्वार्थपूर्ण राजनीति की विषैली हवा घुलने लगी है। राजनीतिक दलों के ध्रुवीकरण के साथ ही देश में सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की कुत्सित कोशिशें भी तेज होने लगी हैं। विपक्ष सत्तापक्ष पर अतिशय में आक्रामक है। विरोध के तल्ख तेवरों में देश की संसद में कामकाज लगभग ठप सा है। मणिपुर की शर्मनाक घटनाओं से देश आहत है। शीर्ष अदालत से लेकर देश की संसद तक मणिपुर की घटनाओं की गूंज है। जैसा कि हर बड़े चुनाव से पहले वातावरण विषाक्त व आक्रामक होता है, वही मंजर फिर उभर आया है। हर घटनाक्रम का सांप्रदायिक एंगल उभारा जा रहा है। जयपुर से मुंबई जा रही एक ट्रेन में रेलवे प्रोटेक्शन फोर्स के जवान ने फायरिंग करके एक असिस्टेंट सब इंस्पेक्टर समेत तीन यात्रियों की हत्या कर दी। पहले तो इस घटना को विभागीय असंतोष की परिणति बताया गया। फिर कहा गया कि आरपीएफ जवान की मानसिक स्थिति ठीक नहीं थी। कालांतर इस बाबत वायरल वीडियो में इसे राजनीतिक निष्ठा और सांप्रदायिक विद्वेष की परिणति बताया गया। कुछ अल्पसंख्यक नेताओं ने इस प्रवृत्ति को घातक बताते हुए सत्तारूढ़ दल के उस विमर्श को दोषी बताया जो समाज में विभाजनकारी सोच को प्रश्रय देता है। निश्चय ही यह घटना बेहद चिंता का विषय है कि जिन सुरक्षा बलों पर लोगों की सुरक्षा की जिम्मेदारी है वे देश के राजनीतिक विमर्श में लिप्त होकर कैसे अपने दायित्वों से विमुख होते हैं। जो हथियार उन्हें लोगों की सुरक्षा के लिये दिया गया है, उससे वे कैसे किसी की जान ले सकते हैं। यदि कथित रूप से उस जवान की मानसिक स्थिति ठीक नहीं थी, तो क्यों उसे सुरक्षा का गुरुत्तर दायित्व दिया गया था? इस तरह के घटनाक्रम विपक्षी राजनीतिक दलों के उन आरोपों को बल देते हैं जिसमें वे सत्तारूढ़ दल के विभाजनकारी विमर्श से ध्रुवीकरण की राजनीति को प्रश्रय देने की बात कहते रहे हैं।

इस बीच नूंह की हिंसा ने देश को विचलित किया है। एक धार्मिक यात्रा के दौरान पथराव और आगजनी के बाद स्थिति चिंताजनक बनी। पुलिस थाने व धार्मिक स्थलों पर हमले हुए और बड़ी संख्या में वाहनों व अन्य संपत्ति को आग के हवाले किया। दुर्भाग्य से इस हिंसा में कुछ मौतें भी हुई हैं। कालांतर इस हिंसा की तपिश ने आसपास के इलाकों के साथ ही गुरुग्राम तक को अपनी चपेट में लिया। सवाल ये भी है कि सांप्रदायिक रूप से संवेदनशील इलाके में पर्याप्त सुरक्षा के अभाव में धार्मिक जुलूस को निकाले जाने की अनुमति की तार्किकता क्या है? ऐसा नहीं है कि यह घटना सिर्फ स्वत:स्फूर्त ही थी। इस इलाके में पिछले कुछ समय में कई ऐसी घटनाएं हुई हैं जिसने सांप्रदायिक ध्रुवीकरण को हवा दी। वातावरण में व्याप्त इस तनाव व गुस्से को राज्य की खुफिया एजेंसियों और पुलिस को महसूस करना चाहिए था। निस्संदेह, इस तरह की किसी भी सांप्रदायिक हिंसा से किसी का भला नहीं होता। आग में धू-धूकर जलते वाहन व संपत्ति किसी न किसी की जीवनभर की पूंजी को स्वाह करती है। इस आग में सांप्रदायिक सौहार्द भी स्वाह होता है। राजनीतिक हितों के लिये किसी भी तरह की सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की कोशिश दशकों से संजोकर रखी गयी सामाजिक समरसता को भी पलीता लगाती है। पुलिस-प्रशासन की विफलता कहीं न कहीं कांग्रेस समेत कतिपय विपक्षी दलों के उस आरोप को बल देती है कि घटनाक्रम ध्रुवीकरण की कवायद का हिस्सा है। निश्चय ही किसी भी तरह की हिंसा व बवाल देश के विकास को ही अवरुद्ध करता है। समाज के उस अंतिम व्यक्ति की रोजी-रोटी से भी खेलता है, जो रोज कुआं खोदकर पानी पीता है। निस्संदेह, यह घटनाक्रम दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के हित में नहीं है। शेष दुनिया में भी इसका अच्छा संदेश नहीं जाता। वहीं हमारी विकास यात्रा को भी अवरुद्ध करता है, क्योंकि विदेशी निवेशक इस तरह की सामाजिक अशांति को सुगम कारोबार की राह में बड़ी बाधा मानते हैं। देश के राजनेताओं को बहुसंख्यक या अल्पसंख्यक ध्रुवीकरण की कोशिशों से बाज आना चाहिए।

Advertisement

Advertisement
Advertisement
×