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दुनिया की दिवाली

यूनेस्को ने विश्व धरोहर किया घोषित

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इसमें दो राय नहीं कि हमारी अमूर्त विरासतें प्राचीन और आधुनिक सभ्यता के बीच पुल का काम करती हैं। यह महज एक स्मृति नहीं, वरन एक निरंतर बहती जीवंत विस्तारित नदी की भांति है। इसी आलोक में दिवाली को यूनेस्को द्वारा विश्व धरोहर घोषित किया जाना हर भारतीय के लिये गर्व व सुकून का विषय है। निस्संदेह, दिवाली हमारी सनातन संस्कृति व सभ्यता की आत्मा रही है। प्रकृति के अहसासों के अनुरूप अंधेरे के खिलाफ उजाले की जंग की प्रतीक। समाज में समता का संदेश की गरीब के घर भी भरपूर रोशनी पहुंचे। किसी भी समाज में कुम्हार, मूर्तिकार,खील बताशे वाले से लेकर व्यापारी के घर तक लक्ष्मी पहुंचे। उल्लेखनीय है कि दिवाली को यह स्थान मिलने से पहले कुंभ मेले समेत देश की 15 धरोहरें इस सूची में शामिल हैं। बता दें कि इस वर्ष 19 अक्तूबर को दीपोत्सव पर अयोध्या में सरयू की राम पैड़ी पर जब 26.17 लाख दीये जलाये गए थे तो इस उपलब्धि का प्रकाश पूरी दुनिया में फैला था। गिनीज बुक आफ विश्व रिकॉर्ड में आयोजन दर्ज हुआ था। इस के बाद ही संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक तथा सांस्कृतिक संगठन यानी यूनेस्को ने अमूर्त विश्व धरोहर सूची में दिवाली को शामिल किया है। इससे पहले कुंभ मेला, वैदिक मंत्रोच्चार, रामलीला,छाऊ नृत्य, दुर्गा पूजा आदि इस सूची में शामिल है। उल्लेखनीय है कि भारत यूनेस्को की इंटर-गवर्नमेंटल कमेटी फॉर इंटैन्जिबल हेरिटेज की बीसवीं बैठक की दिल्ली में मेजबानी कर रहा है, जो 13 दिसंबर को समाप्त होगी। दिवाली को संस्कृति और प्रकृति से जुड़ा मानकर देश के विभिन्न भागों में दस दिसंबर को दीपावली समारोह आयोजित करने का भी फैसला लिया गया था। मकसद यही था कि ताकि विश्व के सामने इस पर्व को मजबूत सांस्कृतिक पहचान के रूप में पेश किया जा सके। निस्संदेह, दिवाली न केवल संस्कृति-प्रकृति से जुड़ी है बल्कि ज्ञान व सनातन धर्म की भी पर्याय है। निस्संदेह, इस घोषणा से इस पर्व को वैश्विक मान्यता मिल सकेगी।

दरअसल, यूनेस्को ऐसी सांस्कृतिक व पारंपरिक चीजों को इस सूची में शामिल करता है जो मूर्त रूप में तो नहीं होती, मगर किसी समाज में उसकी व्यापक मान्यता होती है। वास्तव में, यूनेस्को के ऐसे प्रयासों का मकसद यही रहा है कि आने वाले समय में दुनिया की महत्वपूर्ण सांस्कृति धरोहरें सुरक्षित रहें। जिससे भविष्य की पीढ़ियों को इसका लाभ मिल सके। दरअसल, इस घोषणा के बाद भारत दीपावली के निहितार्थ अंधकार से प्रकाश की ओर जाने के संदेश को पूरी दुनिया को दे सकेगा। इस बार की सूची में दुनिया की जीवित परंपराओं, सामाजिक प्रथाओं, त्योहारों, लोककला व परंपारिक ज्ञान प्रणालियों को सुरक्षित रखने वाली दुनिया की बीस अमूर्त विरासतों को इस सूची में जगह दी गई। कई पीढ़ियों से सहेजी गई विरासत को नई पीढ़ी तक पहुंचाने का एक सार्थक प्रयास है यूनेस्को की पहल। निस्संदेह, ये धरोहरें विश्व के विभिन्न समुदायों की पहचान का हिस्सा हैं। सही मायनों में वैश्वीकरण के दौर में सांस्कृतिक विविधत को अक्षुण्ण बनाये रखने में मददगार साबित होंगी। निश्चय ही भारतीय संस्कृति की अमिट धरोहर वाले पर्व दीपावली का विश्व धरोहर की सूची में शामिल होना भारतीयों के लिये गर्व की बात है। जिसकी बानगी दिल्ली व देश के अन्य भागों में दूसरी दिवाली मनाने के रूप में नजर आई। निश्चय ही इस फैसले से भारतीय सांस्कृतिक पहचान को वैश्विक स्तर पर नई मान्यता मिलेगी। दुनिया इस पर्व की भावनात्मकता के इतर इसकी आध्यात्मिकता व सामाजिक समरसता के संदेश से रूबरू हो सकेगी। निस्संदेह, यह पर्व भारतीय संस्कृति और लोकाचार से गहरे तक जुड़ा है। अब हमारी भी जिम्मेदारी यह सुनिश्चित करना है कि दीपावली हमेशा समृद्ध विरासत बनी रहे। दुनिया में उजाले की अंधेरे पर जीत का संदेश निरंतर जाता रहे। जो शाश्वत मानवीय मूल्यों की रक्षा का संदेश भी है। विश्वास किया जाना चाहिए कि भारत की इस अमूर्त सांस्कृतिक विरासत के गहरे संदेश का पूरी दुनिया अंगीकार कर सकेगी।

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