‘साथी’ पर अविश्वास
हाल ही में केंद्र सरकार ने निर्देश दिए थे कि आगामी वर्ष मार्च से हर नये स्मार्टफोन में ‘संचार साथी’ ऐप पहले इंस्टॉल करना अनिवार्य होगा। दूसरी ओर पुराने स्मार्ट फोनों में इसे सॉफ्टवेयर अपडेट द्वारा भेजा जाएगा। जिसको लेकर विपक्ष ने तीखी प्रतिक्रिया दी और शीतकालीन सत्र में इसे बड़ा मुद्दा बनाया। विपक्ष का कहना था कि इससे निजता का उल्लंघन होगा और व्यक्ति के जीवन में सरकारी हस्तक्षेप बढ़ जाएगा। विपक्ष ने इसे संवैधानिक अधिकारों का अतिक्रमण व नागरिकों की निगरानी करने वाला टूल बताया। इस बहस के बीच विपक्ष को नया मुद्दा मिलते देख केंद्र सरकार ने अनिवार्य तौर पर ऐप प्री-इंस्टॉल करने का अपना फैसला वापस ले लिया। दरअसल, सरकार का कहना था कि डिजिटल होती दुनिया में लगातार बढ़ते साइबर अपराधों से नागरिकों को सुरक्षा देने के मकसद से यह पहल की गई थी। उसका कहना था कि लगातार जटिल होते साइबर अपराधों पर अंकुश लगाने के लिये ऐसी पहल अपरिहार्य है। लेकिन विपक्ष का आरोप था कि साइबर अपराधों के खिलाफ सुरक्षा के नाम पर सरकारी हस्तक्षेप से नई तरह की असुरक्षा पैदा हो सकती है। बताया जाता है कि सरकार ने स्मार्टफोन में साइबर सुरक्षा ऐप इस तरह इंस्टाल करने को कहा था ताकि उसे डिलीट या अक्षम न किया जा सके। केंद्र की दलील थी कि यह ऐप उपभोक्ता को धोखाधड़ी वाले फोन और संदेशों की रिपोर्ट लिखवाने में मदद करता। साथ ही चोरी किए गए मोबाइल की बरामदगी आसान हो पाती। लेकिन निजी डेटा सुरक्षा व इसकी कार्यप्रणाली को लेकर सवाल उठाए गए, जिसके चलते इसका विरोध हुआ। वैसे सर्च इंजन में पहले से मौजूद इस ऐप को देश के लाखों लोग पहले ही स्वेच्छा से डाउनलोड कर चुके हैं। लेकिन इसको अनिवार्य रूप से इंस्टॉल करने के आदेश के बाद विरोध के स्वर उभरने लगे। जिसके बाद विपक्ष ने आरोप लगाया कि इसके जरिये व्यक्ति की निजता का अतिक्रमण करके उसके जीवन में ताक-झांक की जा सकती है।
हालांकि, विरोध के सुर मुखर होने के बाद सरकार की ओर से स्पष्टीकरण आया कि यह निर्णय वैकल्पिक है और कोई व्यक्ति इस ऐप को इच्छानुसार डिलीट कर सकता है। निस्संदेह, निजता हमारा मौलिक अधिकार है। ऐसे में किसी ऐप की अनिवार्यता से व्यक्ति की गोपनीयता में खलल पड़ने की आशंका जतायी जाने लगी। पिछले दिनों सरकार ने व्हाट्स ऐप व टेलीग्राम आदि कम्युनिकेशन ऐप्स संचालक कंपनियों से कहा था कि वे अपनी सेवा को मोबाइल के सिम कार्ड से जोड़कर रखें। ताकि सिम के बिना इन ऐप का दुरुपयोग न हो सके। जिसको लेकर टेलि-कम्युनिकेशन कंपनियों ने सकारात्मक प्रतिसाद दिया था। निस्संदेह, निजता का अधिकार देश में मौलिक अधिकार के रूप में मौजूद है। शीर्ष अदालत ने भी अपने एक निर्णय के जरिये स्पष्ट किया था कि जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता संविधान के अनुच्छेद 21 में ‘राइट टू प्राइवेसी’ में भी निहित है। जिसके अंतर्गत मोबाइल, इंटरनेट व डिजिटल जानकारियां भी शामिल हैं। ऐसे में राष्ट्रीय सुरक्षा के मुद्दों से इतर व्यक्ति को अपनी डिजिटल संप्रभुता की सुरक्षा का हक है। यही वजह है कि विगत में सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया था कि मोबाइल व निजी कंपनियां उपभोक्ता से आधार कार्ड नहीं मांग सकती। इस फैसले को तब निजता की रक्षा की दिशा में महत्वपूर्ण कदम माना गया था। यही वजह है कि ‘संचार साथी’ की अनिवार्यता के बाद निजता व व्यक्ति के डेटा में सरकारी दखल को लेकर सवाल उठने लगे। निस्संदेह, आज के डिजिटल युग में व्यक्ति का डेटा बेहद महत्वपूर्ण है। जिसकी हर कीमत पर सुरक्षा की जानी चाहिए। वहीं इसके साथ ही इस बात की भी पड़ताल होनी चाहिए कि कहीं कुछ अन्य ऐप हमारे डेटा में तो सेंध नहीं लगा रहे हैं? सरकार को इससे उपभोक्ता की सुरक्षा करनी होगी। वहीं तर्क दिया जा रहा है कि संचार साथी ऐप को अनिवार्य करने के बजाय आम लोगों को नई तकनीक और इसके इस्तेमाल के लिये सतर्क करने को देशव्यापी जागरूकता अभियान चलाया जाना चाहिए। साथ ही इसके लिये आम जनता को प्रशिक्षण भी दिया जाना चाहिए। जिससे तकनीक के जरिये साइबर अपराधियों पर अंकुश लगाने की मुहिम को गति दी जा सके।
