अफगानिस्तान में तालिबान की वापसी के बाद क्षेत्रीय शांति व स्थिरता के लिये उत्पन्न चुनौतियों के बीच दिल्ली में संपन्न तीसरे क्षेत्रीय सुरक्षा संवाद में रूस व ईरान समेत आठ देशों की भागीदारी मुद्दे की गंभीरता को दर्शाती है। भारतीय राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल की अध्यक्षता में संपन्न बैठक का निष्कर्ष यह भी है कि भारत अफगानिस्तान के जनमानस की सहायता के लिये प्रतिबद्ध है लेकिन क्षेत्रीय शांति, सुरक्षा व स्थिरता प्राथमिकता हैं। भारत ने अपनी पुरानी मंशा को दर्शाने का प्रयास किया कि अफगानिस्तान पाक की तरह आतंकवाद की उर्वरा जमीन न बन जाये। इसके अलावा कट्टरवाद, आतंकवाद, पृथकतावाद के साथ नशे के कारोबार पर भी रोक लगे। बैठक में शामिल सभी देशों ने गंभीर मंथन के बाद भारतीय चिंताओं पर सहमति जताते हुए व्यापक सहयोग पर बल दिया। बहरहाल, आठ देशों के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकारों की बैठक का सफल आयोजन करके भारत यह संदेश देने में कामयाब रहा है कि भले ही उसने तालिबान सरकार को मान्यता नहीं दी है, लेकिन वह अफगान जनता के हितों के लिये प्रतिबद्ध है। उसे मानवीय त्रासदी से जूझते अफगान जनमानस की फिक्र है। इसके अलावा विश्व जनमत को यह बताने में भारत सफल रहा कि पाक, चीन व तालिबान के त्रिकोण के बावजूद भारत की भूमिका अफगानिस्तान में खत्म नहीं हुई है। तालिबान प्रवक्ता जबीउल्लाह मुजाहिद का यह कहना कि ऐसी बैठकों से अफगानिस्तान के मामले में बेहतर समझ बनाने में मदद मिलेगी, सकारात्मक प्रतिसाद को दर्शाता है। यद्यपि भारत ने इस बैठक में चीन व पाक को भी आमंत्रित किया था, लेकिन उन्होंने इसे नहीं स्वीकारा। इसके विपरीत पाक ने अफगान विदेशमंत्री की मौजूदगी में बृहस्पतिवार को आयोजित बैठक में चीन, रूस व अमेरिकी प्रतिनिधि को शामिल करके भारत के प्रयासों को नकारने का प्रयास किया। जो इस बात का प्रमाण है कि तालिबान के सत्ता में आने के बाद की स्थिति में पाक व चीन का गठजोड़ किस दिशा में बढ़ चुका है।
बहरहाल रूस, ईरान, उज्बेकिस्तान, किर्गिस्तान, ताजिकिस्तान, तुर्केमेनिस्तान और कजाकिस्तान के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकारों की सफल बैठक को भारतीय कूटनीतिक बढ़त के रूप में देखा जा सकता है। इन देशों द्वारा भारत की इस पहल में भागीदारी बताती है कि ये देश इस क्षेत्र की स्थिरता व शांति के लिये भारतीय प्रतिबद्धता को सकारात्मक प्रतिसाद दे रहे हैं। इन देशों ने भारत की इन चिंताओं से सहमति जतायी है कि अफगानिस्तान की धरती आतंकवाद, कट्टरतावाद और नशीले पदार्थों की तस्करी के लिये इस्तेमाल न हो। एनएसए अजीत डोभाल की अध्यक्षता में हुई बैठक के बाद जारी घोषणापत्र में बारह मुद्दों पर एक साथ मिलकर काम करने पर भी सहमति जतायी गई जो इस बात का परिचायक है कि सभी देश अफगानिस्तान में उत्पन्न चुनौतियों का सामना मिलकर करने को प्रतिबद्ध हैं। साथ ही दिल्ली संवाद में इस बात पर भी बल दिया गया कि भले ही तालिबान सरकार को दुनिया के किसी भी मुल्क ने मान्यता नहीं दी हो, लेकिन विश्व बिरादरी अफगानिस्तान के मानवीय संकट को टालने का प्रयास कर रही है। यह तथ्य किसी से छिपा नहीं है कि अफगानिस्तान से लाखों लोग पलायन कर चुके हैं और कर रहे हैं। वहीं दूसरी ओर देश की बड़ी आबादी ठंड के मौसम में भुखमरी जैसी स्थितियों का सामना कर रही है। ऐसे में पाक की भूमिका संकट को और बढ़ा रही है। तालिबान के सत्ता में आने के बावजूद आतंकी हमले जारी हैं और बेकसूर लोग शिकार बन रहे हैं। इतिहास गवाह है कि विगत में भारत ने अफगानिस्तान के विकास और मानव जीवन सुधारने के लिये अथक प्रयास किये हैं। जहां तक तालिबान सरकार को मान्यता देने का प्रश्न है तो दो दशक पहले भारत ने उसकी सरकार को मान्यता नहीं दी थी। जाहिर है जब तक अफगानिस्तान में समावेशी सरकार नहीं बनती, वह अपनी विभाजक सोच नहीं छोड़ता, महिलाओं के अधिकारों को मान्यता नहीं देता, उसे मान्यता देने का प्रश्न कहां उठता है। यदि तालिबान सरकार दिल्ली के क्षेत्रीय सुरक्षा संवाद को गंभीरता से लेगी तो भारत भी मानवीय मदद के लिये निश्चय ही हाथ बढ़ाएगा। जरूरी है कि वहां समावेशी सरकार सामने आए।