मेहनत की कमाई में सेंध
कैसी विडंबना है कि भोले-भाले लोगों से छल करके खून-पसीने से हासिल जीवनभर की पूंजी ऑनलाइन डकैती में लूट ली जाती है। जिसकी वापसी के लिए तंत्र की कोई जवाबदेही और कानून-व्यवस्था से कोई गारंटी सुनिश्चित नहीं है। जब तंत्र लगातार ऑनलाइन सेवाओं के उपयोग के लिये प्रेरित करता है तो उसे जनधन की सुरक्षा की गारंटी भी सुनिश्चित करनी चाहिए। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो यानी एनसीआरबी द्वारा जारी हालिया आंकड़े इस संकटपूर्ण स्थिति का खुलासा करते हैं। एनसीआरबी की रिपोर्ट खुलासा करती है कि वर्ष 2023 में साइबर क्राइम की घटनाओं में 31.2 प्रतिशत की तेज वृद्धि देखी गई है। जिसके आने वाले वर्षों में और अधिक होने की आशंका जतायी जा रही है। जो इस बात का प्रमाण है कि ऑनलाइन धोखाधड़ी से निबटना अब दिन-प्रतिदिन मुश्किल होता जा रहा है। निश्चित रूप से साइबर क्राइम से जुड़े अपराधों के आंकड़े जुटाने की एनसीआरबी की पहल महत्वपूर्ण है, जो इस संकट से निबटने की अंतर्दृष्टि प्रदान करती है। लेकिन महत्वपूर्ण यह है कि हम इन अपराधों से निबटने के लिये कैसे रणनीति बनाते हैं। साथ ही आम लोगों को जागरूक करने की जरूरत है कि कैसे वे साइबर अपराधियों के संजाल में फंसने से बच सकते हैं। यूं तो डेटा सुरक्षा के लिये तमाम दिशा-निर्देश सरकार के विभिन्न संगठनों की तरफ से दिए जाते हैं, लेकिन आज भी पुरानी पीढ़ी के तमाम लोग ऐसे हैं जो ऑनलाइन सुविधाओं के उपयोग को लेकर पर्याप्त रूप से साक्षर नहीं होते। ऐसे में लोगों को जागरूक करना जरूरी है कि दैनिक जीवन में ऑनलाइन सेवाओं का उपयोग करते हुए अपने गोपनीय डेटा की सुरक्षा कैसे करें। लेकिन विडंबना यह है कि साइबर अपराधी नित नए तौर-तरीकों से लोगों को लूटने लगते हैं। कुछ समय पहले साइबर लुटेरों ने स्पूफिंग तकनीक से लोगों को शिकार बनाना शुरू किया। वे सोशल मीडिया अकाउंट में घुसपैठ करके धन की उगाही करने लगते। व्यक्ति को संकट में दिखाकर उसके रिश्तेदारों से धन ऐंठने लगते।
विडंबना यह है कि साइबर ठगी की तकनीक उपभोक्ताओं के मोबाइल नंबरों और ई-मेल खातों तक भी पहुंच गई। दरअसल, कभी हैकिंग, तो कभी स्पूफिंग के कपटपूर्ण छल का मकसद लोगों की जमा-पूंजी को निशाना बनाना ही रहा है। दरअसल, जब तक लोग ठगी के इन तौर-तरीकों को समझ पाते, साइबर ठग नई तकनीक के सहारे लोगों को भ्रमित कर चूना लगाने की नई कोशिश में लग जाते हैं। ऐसे में साइबर अपराधों के बढ़ते मामलों के बीच सवाल उठता है कि हमारा तंत्र इन घटनाओं में पर प्रभावी रोक लगाने में कामयाब क्यों नहीं हो पाता। आखिर फोन व कंप्यूटर में मजबूत एंटी वायरस और इंटरनेट सुरक्षा सॉफ्टवेयर क्यों कामयाब नहीं होते। आखिर क्यों साइबर घुसपैठ के खिलाफ प्रभावी कार्रवाई नहीं हो पाती। इन पर रोक के लिये कोई कारगर व्यवस्था व मैकेनिज्म क्यों नहीं बन पा रहा है। दूरसंचार नियामक ट्राई की अपनी सीमाएं हैं। संकट यह भी है कि ज्यादातर साइबर अपराध की घटनाएं प्रॉक्सी यानी छद्म सर्वर या फिर वीपीएन यानी वर्चुअल प्राइवेट नेटवर्क के जरिये अंजाम दी जाती हैं। ज्यादातर अपराध भारत के बाहर से संचालित होते हैं। यही वजह है कि जालसाज विदेश में बैठकर भी भारत के अपराधियों की मदद से धोखाधड़ी का नेटवर्क बना लते हैं। इससे वे भारतीय नागरिकों को चपत लगाने में सफल हो जाते हैं। निस्संदेह, ऐसे मामलों में व्यक्तिगत सावधानी और सजगता-सतर्कता मददगार साबित हो सकती है। खासकर इंटरनेट बैंकिंग का प्रयोग करते वक्त अतिरिक्त सावधानी से ऐसी धोखाधड़ी से बचा जा सकता है। लोगों को याद रखना चाहिए कि कभी बैंक का कोई अधिकारी खाताधारक से निजी व गोपनीय जानकारी नहीं पूछता है। वो कभी फोन व ई-मेल से ऐसी जानकारी नहीं मांगता है। इसलिए जरूरी है कि यदि कोई व्यक्ति बैंक खाते की सुरक्षा से जुड़े पासवर्ड,पिन, सीवीवी तथा खाता नंबर की जानकारी मेल या फोन से मांगता है तो उसे नजरअंदाज करना चाहिए। ऐसी ही सावधानी हाऊस अरेस्ट के मामलों में भी बरतनी चाहिए। साथ ही असली-नकली वेबसाइट की सावधानी से जांच करनी चाहिए।