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पारदर्शी हो लोकतंत्र

सूचना के अधिकार पर न लगें बंदिशें
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सुप्रीम कोर्ट।
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हाल ही में केंद्र सरकार ने चुनाव नियमों में बदलाव करते हुए सीसीटीवी कैमरा,वेबकास्टिंग फुटेज और उम्मीदवारों की वीडियो रिकॉर्डिंग जैसे कतिपय इलेक्ट्रानिक दस्तावेजों के सार्वजनिक निरीक्षण पर रोक लगा दी है। केंद्र सरकार का कहना है कि चुनाव आयोग की सिफारिश पर यह कदम उठाया गया। चुनाव संचालन नियम 1961 के नियम 93 में यह संशोधन किया गया। दलील दी गई कि इलेक्ट्राॅनिक दस्तावेजों का दुरुपयोग रोकने के लिये यह कार्रवाई की गई। उल्लेखनीय है कि हरियाणा विधानसभा चुनाव संबंधी रिकॉर्ड को सार्वजनिक करने के लिये वकील महमूद प्राचा ने पंजाब व हरियाणा हाईकोर्ट में याचिका डाली थी। जिसके बाद हाईकोर्ट ने चुनाव आयोग को हरियाणा विधानसभा चुनाव से संबंधित आवश्यक दस्तावेजों की प्रतियां याचिकाकर्ता को उपलब्ध कराने को कहा था। दरअसल, प्राचा ने हरियाणा विधानसभा चुनाव के दौरान चुनाव संचालन से संबधित वीडियोग्राफी, सीसीटीवी कैमरा फुटेज और फॉर्म 17-सी की प्रतियों की मांग याचिका के जरिये की थी। हालांकि, चुनाव एजेंट की नियुक्ति, नामांकन फार्म, परिणाम व चुनाव खाता विवरण जैसे दस्तावेजों का उल्लेख चुनाव संचालन नियमों में किया गया है। मगर दूसरी ओर आदर्श आचार संहिता अवधि के दौरान सीसीटीवी कैमरा फुटेज, वेबकास्टिंग फुटेज और उम्मीदवारों की वीडियो रिकॉर्डिंग जैसे इलेक्ट्राॅनिक दस्तावेज इसके दायरे में नहीं आते। सरकार के द्वारा हालिया संशोधन इस बात की पुष्टि करता है कि केवल नियमों में उल्लेखित कागजात ही सार्वजनिक निरीक्षण के लिये उपलब्ध हो सकेंगे। वहीं दूसरी ओर कांग्रेस ने चुनाव आयोग पर पारदर्शिता की अवहेलना का आरोप लगाया है। साथ ही सरकार के फैसले को चुनौती देने की बात कही है।

दरअसल, चुनाव आयोग के अधिकारियों का कहना है कि मतदान केंद्रों के अंदर सीसीटीवी कैमरे की फुटेज के दुरुपयोग से मतदान की गोपनीयता प्रभावित हो सकती है। दलील दी गई है कि इस फुटेज का इस्तेमाल एआई का उपयोग करके फर्जी विमर्श गढ़ने के लिये किया जा सकता है। लेकिन सवाल यह है कि लोकतांत्रिक शुचिता के लिये पारदर्शिता को क्यों नजरअंदाज किया जाना चाहिए। दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र की जीवंतता इसी बात में है कि नागरिकों के सूचना अधिकार का अतिक्रमण किसी भी तरह से न हो सके। निस्संदेह, इस चिंता से इनकार नहीं किया जा सकता है कि कृत्रिम बुद्धिमत्ता के जरिये तथ्यों से खिलवाड़ संभव है। बहुत संभव है अपनी सुविधा के लिये कतिपय राजनीतिक दल नये विमर्श गढ़ सकें। लेकिन इसके बावजूद आम नागरिकों को उस चुनावी प्रक्रिया को जानने का हक है जिसके जरिये सरकार बनती है। निस्संदेह, किसी भी लोकतंत्र की विश्वसनीयता उसकी पारदर्शी चुनावी प्रक्रिया पर निर्भर करती है। कतिपय सुरक्षा चिंताओं के नाम पर पारदर्शिता का अतिक्रमण नहीं किया जा सकता। वहीं दूसरी ओर विपक्ष की मांगों को भी नजरअंदाज नहीं किया जाना चाहिए। सजग-सतर्क विपक्ष लोकतंत्र की सफलता के लिये अनिवार्य शर्त भी है। ऐसे में एआई के खतरे के नाम पर हर सूचना के अधिकार पर पहरा नहीं बैठाया जा सकता। वहीं ऐसे निर्णयों में विपक्ष की भागीदारी जरूरी है ताकि सत्तारूढ़ दल पर निरंकुश व्यवहार का आरोप न लग सके।

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