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मारक महंगाई

मुद्रास्फीति से ब्याज दर कटौती की उम्मीदें घटी
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केंद्रीय बैंक व सरकार की तमाम कोशिशों के बावजूद, देश में खाद्य पदार्थों की बढ़ती कीमतों के चलते खुदरा मुद्रास्फीति पिछले चौदह महीनों की ऊंचाई पर जा पहुंची हैं। राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय यानी एनएसओ की ओर से मंगलवार को जारी आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार खुदरा महंगाई दर भारतीय रिजर्व बैंक के छह फीसदी के संतोषजनक स्तर से ऊपर निकल गई है। आंकड़ों के अनुसार अक्तूबर में खुदरा मुद्रास्फीति 6.21 प्रतिशत रही। ऐसे में खुदरा महंगाई के आरबीआई द्वारा निर्धारित संतोषजनक स्तर से ऊपर निकल जाने से इस साल दिसंबर में ब्याज दरों में कटौती की उम्मीदें कमोबेश धाराशाई हो गई हैं। दरअसल, खुदरा महंगाई में यह वृद्धि सब्जियों,फलों, वसायुक्त वस्तुओं व तेलों की कीमतों में तेजी की वजह से हुई है। जो कि भारत की खाद्य आपूर्ति शृंखला में व्याप्त गहरी संरचनात्मक चुनौतियों का खुलासा करती है। साथ ही स्थिति में सुधार के लिये अविलंब सरकारी हस्तक्षेप की जरूरत को बताती है। निश्चित रूप से अक्तबूर की खाद्य मुद्रास्फीति दर का इस साल सबसे अधिक 10.87 फीसदी होना नीति-नियंताओं के लिये चिंता का विषय होना चाहिए। वहीं दूसरी ओर यह बढ़ती महंगाई एक महत्वपूर्ण संकेत भी देती है कि अस्थिर खाद्य कीमतें देश की संपूर्ण आर्थिक स्थिरता को कैसे बाधित कर सकती है। विशेष रूप से टमाटर और तेल जैसी वस्तुओं की कीमतों में बढ़ोतरी, कुछ प्रमुख वस्तुओं और आयात की जाने वाली चीजों पर देश की निर्भरता हमारी कमजोरी को ही दर्शाती हैं। इसमें दो राय नहीं कि हर साल वर्षा ऋतु में सब्जी उत्पादक राज्यों में अतिवृष्टि, बाढ़ आदि के कारण उत्पादन व आपूर्ति में बाधा उत्पन्न हो जाती है। वहीं अनियमित और ज्यादा बारिश से सब्जी व फलों को होने वाले नुकसान ने बता दिया है कि जलवायु परिवर्तन के घातक प्रभावों ने हमारे दरवाजे पर दस्तक दे दी है। जिसकी आशंका हम कई वर्षों से जताते भी रहे हैं। अब इस चुनौती का युद्ध स्तर पर मुकाबला करने की जरूरत है।

बहरहाल, हमें गंभीरता से विचार करना होगा कि ग्लोबल वार्मिंग प्रभावों से सब्जियों के उत्पादन व आपूर्ति को कैसे सुरक्षित करें। ऐसे वक्त में जब कृषि उत्पादन पर जलवायु परिवर्तन का सीधा प्रभाव नजर आया है, हमें मौसम के चरम में बेहतर उत्पादन देने वाली सब्जियों व अन्य फसलों की उन्नत किस्में तैयार करनी होंगी। साथ ही बेहतर भंडारण सुविधाएं जुटानी होंगी। जिससे बिचौलियों की मुनाफाखोरी पर अंकुश लगाकर कृत्रिम महंगाई को रोका जा सकेगा। हम व्यावहारिक आयात रणनीति को अपनाते हुए सब्जियों व फलों के आपूर्ति पक्ष को मजबूत करें। कालांतर ये प्रयास खाद्य मुद्रास्फीति पर अंकुश लगाने में मददगार होंगे। हमें औद्योगिक उत्पादन में भी तेजी लाने की जरूरत है ताकि लोगों की आय बढ़ने से क्रय शक्ति में इजाफा हो। हालांकि, सितंबर में औद्योगिक उत्पादन में तीन फीसदी की वृद्धि दर्ज की गई है, लेकिन यह आकांक्षाओं के अनुरूप नहीं है। दरअसल, कम वृद्धि उच्च मुद्रास्फीति के कारण उत्पन्न होने वाले आर्थिक दबाव को कम करने में सहायक नहीं हो सकती है। वहीं औद्योगिक उत्पादन सूचकांक में यह मामूली वृद्धि हमारी अर्थव्यवस्था में सुस्ती को बताती है। निस्संदेह, मुद्रास्फीति में कमी किए बिना सुधार की गति को बनाये रखने में मुश्किल है। ऐसे में केंद्रीय बैंक द्वारा ब्याज दरों में कटौती की संभावना कम होने से उपभोक्ता मांग कम हो सकती है। कालांतर इसका असर निवेश पर भी पड़ सकता है। निश्चित रूप से तीव्र आर्थिक विकास के लिये मुद्रास्फीति के दबावों से उबरने की आवश्यकता है। इसके लिये कृषि उत्पादन व औद्योगिक प्रदर्शन में तेजी लाने की भी जरूरत महसूस की जा रही है। वहीं दूसरी ओर वैश्विक अर्थव्यवस्था में अनिश्चितताओं के बीच सरकार को घरेलू उत्पादन क्षमताओं में वृद्धि करने के प्रयास करने चाहिए। जिससे हमें आपूर्ति शृंखला को अनुकूल बनाने में मदद मिल सके। साथ ही खाद्य सुरक्षा को सुनिश्चित करना भी जरूरी है। बहरहाल, दीर्घकालीन आर्थिक स्थिरता के लिये जरूरी है कि देश बार-बार मुद्रास्फीति में होने वाली बढ़ोतरी को रोकने के लिये कृषि सुधारों को प्राथमिकता दे। जिससे कमजोर आय वर्ग के परिवारों को बढ़ती कीमतों के दबाव से राहत मिल सके।

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