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जानलेवा ब्रेक

हाईवे पर गति संग मति भी रहे दुरुस्त
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देश में जब तेजी से हाई-वे बने तो लगा कि अब आम आदमी की यात्रा सुगम व सुरक्षित होगी। तब सफर में लोगों के घंटों बचने लगे। यात्रियों के पेट्रोल व डीजल की खपत कम हुई। विडंबना यह है कि कालांतर वाहनों की गति सीमाएं तोड़ने लगी। बेलगाम गति दुर्घटनाओं का सबब बनी। वे खबरें विचलित करती हैं जब पूरे के पूरे परिवार सड़क दुर्घटनाओं की भेंट चढ़ जाते हैं। निस्संदेह, जब व्यक्ति निर्धारित सीमा से अधिक की गति से वाहन चलाता है तो विषम परिस्थितियों में अचानक ब्रेक लगाना ही पड़ता है। ऐसे में पीछे से नियंत्रित गति में चलने वाले वाहन चालक भी सड़क दुर्घटनाओं की चपेट में आ जाते हैं। अकसर बेकसूर लोग दूसरों की गलती की कीमत चुकाते हैं। ऐसी ही दुर्घटनाओं के परिप्रेक्ष्य में सुप्रीम कोर्ट का महत्वपूर्ण फैसला आया है। कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि यदि हाई-वे पर कोई वाहन चालक अचानक ब्रेक लगाता है तो दुर्घटना की स्थिति में इसे लापरवाही माना जाएगा। अदालत ने माना कि हाई-वे पर वाहनों का तेज गति से चलना स्वाभाविक है, लेकिन यदि कोई चालक अचानक वाहन रोकता है तो उसकी जिम्मेदारी बनती है कि वह ब्रेक मारने से पहले पीछे आने वाले वाहन चालकों को चेतावनी या कोई संकेत दे। उल्लेखनीय है कि यह फैसला वर्ष 2017 में कोयंबटूर में एक इंजीनियरिंग छात्र के साथ हुए हादसे के बाबत आया है, जिसमें उसे अपनी टांग गंवानी पड़ी। दरअसल, उसकी मोटरसाइकिल अचानक रोकी गई एक कार से टकरा गई थी। इस टक्कर में उसके नीचे गिरने पर पीछे से आ रही बस ने उसके पैर को कुचल डाला। कोर्ट ने कार चालक की इस दलील को तार्किक नहीं माना कि उसे पत्नी के अस्वस्थ होने के कारण कार अचानक रोकनी पड़ी। अदालत का मानना था कि उसने भले ही किसी भी परिस्थिति में कार रोकी,लेकिन उसे पीछे से आने वाले वाहन चालकों को संकेत या चेतावनी जरूर देनी चाहिए थी, ताकि इस हादसे को टाला जा सकता।

अदालत ने कहा कि यदि इस मामले में आधी गलती कार चालक की है तो बीस-बीस फीसदी गलती अपील करने वाले व बस चालक की भी है। कोर्ट ने अपील करने वाले को अगले वाहन से पर्याप्त दूरी न रखने व लाइसेंस न होने का दोषी माना। फलत: उसके मुआवजे में बीस फीसदी की कटौती की। दरअसल, हाई-वे पर होने वाले तमाम हादसों में वाहनों की निर्धारित सीमा से अधिक गति को मुख्य कारण बताया जा रहा है। ‘हाई-वे रोड सेफ्टी रिपोर्ट 2021’ के अनुसार दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति यह है कि राजमार्गों पर होने वाली दुर्घटनाओं में 74 फीसदी हादसे वाहनों की निर्धारित गति सीमा से अधिक पर वाहन चलाने की वजह से होते हैं। जिसके चलते राजमार्गों में सुरक्षा मानकों को ताक पर रख दिया जाता है। निस्संदेह, हमने यूरोपीय स्टाइल के हाई-वे तो बना दिए मगर चालकों को नियम-कानूनों के पालन के लिये जागरूक नहीं कर पाये। यही वजह है कि दुर्भाग्य से देश की सड़कों में हर तीन मिनट में एक बेगुनाह व्यक्ति की मौत हो जाती है। जाहिर है, दोष सड़कों का नहीं बल्कि चालकों के व्यवहार में अराजकता का है। जरूरी है कि वाहन चालकों को नियमों का पालन करने तथा गति सीमा नियंत्रित रखने हेतु प्रेरित किया जाए। तभी दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा सड़क नेटवर्क दुर्घटनाओं के लिये निरापद बन सकेगा। निस्संदेह, सड़क निर्माण में भी कई बार तकनीकी खामियां पायी जाती हैं। पदयात्रियों व जानवरों के हाई-वे पर आ जाने से वाहन चालकों को ब्रेक लगाने को मजबूर होना पड़ता है। लेकिन कोर्ट के निर्देश के अनुरूप ही पीछे आने वाले वाहन चालकों को इसका संकेत देना जरूरी है। साथ ही तकनीकी व गुणवत्ता की दृष्टि से दोषपूर्ण सड़क बनाने वालों की जवाबदेही भी तय करना जरूरी है। निश्चित रूप से सुप्रीम कोर्ट ने नजीर का फैसला दिया है, जो वाहन चालकों की जवाबदेही सुनिश्चित करता है। साथ ही पीछे आने वाले वाहन चालकों को आगे के वाहन से सुरक्षित दूरी बनाकर चलना होगा, ताकि अचानक ब्रेक लगने की स्थिति में वे खुद का और पीछे आने वाले वाहनों का बचाव कर सकें।

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