जैसे-जैसे हमारे जीवन में ऑनलाइन सुविधाओं का विस्तार हुआ, डेटा सुरक्षा और व्यक्ति की निजता की सुरक्षा के लिये सख्त कानून की आवश्यकता शिद्दत से महसूस की गई। खासकर पिछले कुछ वर्षों में धोखाधड़ी और डेटा के दुरुपयोग की घटनाएं लगातार बढ़ती रही हैं। सरकार ने अब इस दिशा में पहला कदम बढ़ा दिया है। केंद्रीय मंत्रिमंडल ने डिजिटल व्यक्तिगत डेटा संरक्षण विधेयक को मंजूरी दे दी है। जिससे मानसून सत्र में विधेयक के संसद में पेश किये जाने का रास्ता साफ हो गया है। दरअसल, सरकार के भीतर और बाहर संगठनों से व्यापक विचार-विमर्श के बाद विधेयक के मसौदे को मंजूरी दी गई है। उल्लेखनीय है कि प्रस्तावित कानून को लेकर कई उतार-चढ़ाव देखने को मिले हैं। दरअसल, केंद्र सरकार ने दिसंबर, 2019 में व्यक्तिगत डेटा संरक्षण विधेयक लोकसभा में पेश किया था और तुरंत एक संयुक्त संसदीय समिति को भेज दिया था। पैनल को अपनी रिपोर्ट पेश करने में करीब दो साल लग गये। जिसमें समिति ने सिफारिश की थी कि किसी भी प्रावधान के आवेदन में सरकारी एजेंसी द्वारा व्यक्तिगत डेटा के उपयोग से जुड़ी छूट को लेकर पर्याप्त सुरक्षा उपाय निर्धारित किये जाने चाहिए। जिससे निजी डेटा के दुरुपयोग की आशंका को टाला जा सके। अंतत: अगस्त, 2022 में पुराने विधेयक को वापस ले लिया गया और तीन महीने बाद सरकार ने डिजिटल व्यक्तिगत डेटा संरक्षण विधेयक का मसौदा जारी किया। फिर सार्वजनिक रूप से परामर्श आरंभ किया। मसौदे को लेकर तल्ख प्रतिक्रिया सामने आई क्योंकि इसमें केंद्र द्वारा अधिसूचित संस्थाओं को नागरिकों का डेटा एकत्र करने और उसके उपयोग के उद्देश्य के बारे में स्पष्टीकरण देने से छूट दी गई थी। दरअसल, जरूरत इस बात की है कि लोगों को आश्वस्त किया जाये कि नवीनतम मसौदे में सरकारी एजेंसियों को पूर्ण छूट नहीं दी गई है। साथ ही विधेयक में मानदंडों के उल्लंघन से जुर्माने के दायरे में उन्हें भी आना होगा।
बताया जा रहा है कि डिजिटल डेटा संरक्षण कानून निजी तथा सरकारी संस्थाओं पर समान रूप से भी लागू होगा। अब आईटी कंपनियों को यह जानकारी साझा करनी होगी कि वे नागरिकों की कौन सी सूचनाएं अथवा आंकड़े जुटा रही हैं और कितना संग्रहण कर रही हैं तथा कितना किसी अन्य के साथ साझा कर रही हैं। यह इसलिये भी जरूरी है कि पिछले कुछ वर्षों में नागरिकों के आधार कार्ड व पैन कार्ड से संबंधित डेटा चोरी होने, साझा करने तथा लीक करने के मामले लगातार प्रकाश में आते रहे हैं। संदेह की सुई देशी-विदेशी कंपनियों की तरफ घूमती रही है। सख्त कानून के अभाव में सरकार भी कार्रवाई करने में असहाय नजर आती रही है। इतना ही नहीं, कई सुविधा प्रदाता कंपनियों के सर्वर तक विदेशों में स्थित होते हैं। ऐसे में इस आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता कि विदेशों में रखे डेटा का दुरुपयोग नहीं होगा। वहीं दूसरी ओर आम उपभोक्ता जब कोई एप डाउनलोड करता है तो हमारी निजी जानकारी तक पहुंचने की अनुमति मांगी जाती है। हमारे फोन पर लगातार आने वाली व्यावसायिक कॉल इस बात का संकेत हैं कि हमारे फोन नंबर विभिन्न व्यावसायिक कंपनियों को बेचे गये हैं। निस्संदेह, अब डेटा संरक्षण कानून बनने के बाद इन कंपनियों को जवाबदेह बनाने में मदद मिलेगी। उम्मीद है इससे उनकी कार्यशैली में पारदर्शिता आएगी। दरअसल, हमारे देश में उपभोक्ताओं की निजता व डेटा सुरक्षा के लिये पहल करने में बहुत देर हुई है। विकसित देशों ने बहुत पहले ही अपने नागरिकों के हितों के संरक्षण की दिशा में कदम उठा लिये थे। जिसके चलते आईटी कंपनियां नागरिकों के डेटा के दुरुपयोग के बार में कोई कदम नहीं उठा सकती क्योंकि इसको लेकर कड़े प्रावधानों के चलते उन्हें भारी मुआवजा देने के लिये बाध्य किया जाता है। विश्वास है कि सरकार नये डेटा सुरक्षा विधेयक में पर्याप्त सुरक्षा प्रावधानों को सुनिश्चित करेगी। ताकि भविष्य में लोगों की सहमति के बिना उनके डेटा का दुरुपयोग न किया जा सके। सरकार को समझना ही चाहिए कि लोगों की निजी सूचनाएं देश की बहुमूल्य संपदा है, जिसका संरक्षण प्राथमिकता के आधार पर हो।