शायद ही कोई दिन ऐसा जाता होगा जब कोई बुजुर्ग या आम लोग साइबर ठगी के शिकार न हुए हों। पिछले दिनों महाराष्ट्र में एक सेवानिवृत्त जज भी डिजिटल अरेस्ट स्कैम के शिकार हो गए। पिछले सप्ताह ऐसा ही एक अन्य दुखद मामला पुणे से सामने आया जब साइबरों ठगों ने एक 82 वर्षीय सेवानिवृत्त अधिकारी को डिजिटल हाउस अरेस्ट स्कैम में फंसाकर 1.19 करोड़ लूट लिए। कई दिन के मानसिक उत्पीड़न व आर्थिक क्षति से टूट गए वृद्ध की आखिर सदमे से मौत हो गई। यह विचारणीय पहलू है कि कैसे पढ़े-लिखे लोग साइबर ठगों की साजिश की गिरफ्त में आ जाते हैं। वैसे आम आदमी को साइबर ठगों व फर्जी फोन कॉल्स से बचाने के लिये पुख्ता व्यवस्था होना बेहद जरूरी है। आम लोगों की सुविधा व सुरक्षा के लिये सरकार के प्रयासों के बाद अब दूरसंचार विभाग ने मार्च 2026 में ऐसी व्यवस्था लागू करने के तैयारी की, जिसमें बिना ट्रू-कॉलर के खुद मोबाइल अवांछित फोन के प्रति सजग करेगा। नियामक संस्था ट्राई ने इस प्रस्ताव पर सहमति जतायी है। यह विडंबना ही कि जैसे-जैसे नई तकनीक आम आदमी के जीवन में सुविधा लाती है, वहीं असामाजिक तत्व उसे लूट-खसोट का हथियार बनाने में आगे निकल जाते हैं। देश में इंटरनेट सेवाओं के विस्तार और मोबाइल फोन की संख्या में अप्रत्याशित वृद्धि के साथ ही साइबर अपराधों में खासी तेजी आई है। जरा सी चूक होने पर लाखों लोग, साइबर धोखाधड़ी में अपने जीवनभर की पूंजी कुछ ही क्षणों में गवां देते हैं। अपराधियों का संजाल इतना विस्तृत व रहस्यमय है कि प्रवर्तन एजेंसियां जब तक उन तक पहुंचती हैं, पैसा विदेशों में ट्रांसफर हो जाता है। इस संकट का एक पहलू अनजान नंबरों से आने वाली फोन कॉल्स होती हैं, जिसके जरिये अपराधी लोगों को भ्रमित कर जीवन की जमा पूंजी लूट लेते हैं। दरअसल, संचार क्रांति के चलते तमाम सेवाएं ऑनलाइन उपलब्ध हुई हैं, लेकिन इस सुविधा के साथ पुरानी पीढ़ी साम्य नहीं बैठा पाती है।
अब इसी चुनौती को दूर करने के लिये दूरसंचार विभाग आम उपभोक्ता को ऐसी सुविधा देने जा रहा है, जिसमें फोन करने वाले को पहचाना जा सकेगा। फोन पर कॉल करने वाले व्यक्ति का नाम लिखा नजर आएगा। फिर व्यक्ति अपनी सुविधा अनुसार फोन कॉल्स लेना तय कर सकता है। दूरसंचार नियामक ट्राई की मंजूरी के बाद इस दिशा में तेजी से काम हो रहा है। हालांकि, फोन करने वाले व्यक्ति की जानकारी जुटाने के कई ऐप अभी भी मौजूद हैं, लेकिन उनका उपयोग कुछ ही लोग कर पाते हैं। वैसे ऐसा निश्चित रूप से नहीं कहा जा सकता कि ऐप द्वारा दी जाने वाली सूचना सटीक है। ऐसे में यदि दूरसंचार विभाग की कोशिश सिरे चढ़ती है तो इससे करोड़ों उपभोक्ताओं को सुरक्षा कवच मिल पाएगा। पहले इस सुविधा का लेना मांग पर आधारित था, लेकिन बाद में तय किया गया कि यह सुविधा प्रत्येक मोबाइल उपयोगकर्ता को उपलब्ध करायी जाएगी। विश्वास किया जा रहा है कि अगले साल मार्च तक पूरे देश में यह सुविधा उपलब्ध हो जाएगी। जानकारों का मानना है कि इस सुविधा से किसी सीमा तक मोबाइल के जरिये धोखाधड़ी करने वाले अपराधियों पर नकेल कसी जा सकेगी। मोबाइल उपयोगकर्ता की सजगता इसमें मददगार हो सकेगी। स्क्रीन पर अनजान नंबर व नाम देखने के बाद मोबाइलधारक फोन कॉल्स को उठाने से बच सकता है। वैसे इसके साथ ही देश में डिजिटल साक्षरता की दिशा में व्यापक पहल करने की जरूरत है। विभिन्न सूचना माध्यमों के जरिये लोगों को सजग-सतर्क किए जाने की आवश्यकता है। शहरों से लेकर ग्राम पंचायतों तक जनजागरण अभियान चलाकर लोगों को बताया जाना चाहिए कि बैंक, सीबीआई, कोर्ट या अन्य प्रवर्तन एजेंसियां कभी फोन करके उनके बैंक खाते या अन्य मामलों की जानकारी नहीं मांगती हैं। ऐसे फर्जी कॉल्स की प्रमाणिकता की पुष्टि करने के लिये हेल्पलाइन सुविधाओं में विस्तार करने की भी जरूरत है। देश में मोबाइल नेटवर्क उपलब्ध कराने वाली कंपनियों को भी बाध्य किया जाना चाहिए कि वे उपयोगकर्ताओं को शिक्षित करके संदिग्ध फोन नंबरों के प्रति सचेत करें।

