कक्षा में क्रूरता
निश्चय ही पानीपत की वह घटना किसी सभ्य समाज को शर्मसार करने वाली है, जिसमें एक सात साल के बच्चे को उसके शिक्षक ने सबक सिखाने के लिये कक्षा में उलटा लटका दिया। वाकई यह एक शर्मनाक घटना है, जिसका मानसिक आघात बच्चे के मन पर जीवनपर्यंत बना रह सकता है। यह घटना शहरी इलाके में घटित हुई है लेकिन देश के ग्रामीण व दूरदराज के इलाकों में ऐसे वाकये अपवाद नहीं हैं। गाहे-बगाहे ऐसी घटनाएं अखबारों की सुर्खियां बनती रहती हैं, जिसमें शिक्षक क्रूरता की हदें पार करते नजर आते हैं। विगत के दशकों में बच्चों के साथ स्कूलों में निर्मम व्यवहार एक परेशान करने वाले पैटर्न का हिस्सा रहा है। बताते हैं कि पानीपत की परेशान करने वाली घटना का कारण छात्र द्वारा कथित तौर पर होमवर्क न करना रहा है। जिसके चलते इस छात्र को यह अमानवीय सजा दी गई। एक वायरल हुए वीडियो में देखा जा रहा है कि यह बच्चा असहाय और सहमा लटका नजर आ रहा था। कक्षा के अन्य डरे सहपाठी उसे देख रहे थे। अंदाजा लगाना कठिन नहीं है कि इस घटना से बच्चे के मन-मस्तिष्क पर कितना बड़ा आघात पहुंचा होगा। जिससे शायद ही जीवनभर वह मुक्त हो पाए। इस वीडियो के वायरल होने के बाद समाज के विभिन्न वर्गों में व्यापक आक्रोश देखा गया। हालांकि, यह घटना बीते अगस्त माह की बतायी जा रही है, लेकिन इसका वीडियो देर से पिछले दिनों सामने आया। जिसको लेकर समाज में तल्ख प्रतिक्रिया देखी जा रही है। इसे वाकये को लेकर सवाल उठाए जा रहे हैं कि स्कूल प्रशासन ने मामले को क्यों दबाया? क्या स्थानीय प्रशासन को इसकी भनक नहीं लगी? वहीं दूसरी ओर सवाल यह भी उठाये जा रहे हैं कि अभिभावकों ने इस घटना के बाबत समय रहते शिकायत क्यों नहीं की? निश्चय ही ऐसे सभी सवालों के जवाब सामने आने चाहिए।
विडंबना यह है कि यह सिर्फ पानीपत की ही अकेली घटना नहीं है। सिर्फ सितंबर में ही देश के विभिन्न भागों से स्तब्ध करने वाली कई घटनाएं सामने आई हैं। ऐसी ही एक परेशान करने वाली घटना छत्तीसगढ़ में प्रकाश में आई है। जहां एक लड़की को सौ बार उठक-बैठक करने पर मजबूर किया गया। उसे तब तक पीटा गया जब तक वह चलने लायक रही। एक विचलित करने वाली घटना में नागपुर में कचरा साफ करने से इनकार करने पर कक्षा पांच की दो छात्राओं को डंडे से पीटा गया। इसी तरह विशाखापत्तनम में एक प्रधानाचार्य ने दो किशोरों को लोहे के स्केल से पीट कर प्रताड़ित किया। बिहार की एक घटना में छात्रों को सजा देने के लिये एक कमरे में बंद कर दिया गया। वहीं दूसरी ओर उत्तर प्रदेश की एक घटना में छात्र का कंधा ही टूट गया। ये घटनाएं संकेत दे रही हैं कि सुरक्षित बचपन का दावा कितना खोखला है। यूं तो छात्रों को प्रताड़ित करना कानून की दृष्टि से प्रतिबंधित है। शिक्षा का अधिकार अधिनियम की धारा 17 शारीरिक और मानसिक उत्पीड़न पर प्रतिबंध लगाती है। किशोर न्याय अधिनियम में बच्चों के साथ क्रूरता के लिये तीन साल तक की जेल की सजा का प्रावधान है। अगर चोट या गंभीर चोट पहुंचायी जाती है, तो आईपीसी की धाराओं में मुकदमा चलाने का प्रावधान है। फिर भी ऐसे कई मामलों में, निलंबन या बर्खास्तगी से आगे कार्रवाई शायद ही कभी आगे बढ़ती है। ऐसे मामलों में पुलिस कार्रवाई और गिरफ्तारियां तभी होती हैं, जब समाज में जनाक्रोश सीमाएं लांघने लगता है। ऐसे केस में दोष सिद्धि तो और भी दुर्लभ होती है। यह स्थिति उन लोगों का हौसला बढ़ाती है जो इस पुरानी मान्यता को मानते हैं कि डर से ही अनुशासन संभव होता है। वास्तव में ऐसे कृत्य बालमन पर गहरा आघात करते हैं। बचपन में अपमान और हिंसा के निशान सीखने, आत्मविश्वास और विश्वास को कमजोर करते हैं। वास्तव में अधिकारियों को ऐसे मामलों में जीरो टॉलरेंस दिखानी चाहिए। छात्रों से शारीरिक हिंसा के मामले में प्राथमिकी दर्ज कर तुरंत कार्रवाई, अपराधियों की बर्खास्तगी तथा स्कूल प्रबंधन की जवाबदेही तय होनी चाहिए।