इस सदी के ढाई दशक में बाल मृत्यु दर घटने को दुनिया की सबसे बड़ी उपलब्धि बताया गया था, लेकिन अब इस सदी में पहली बार बाल मृत्यु दर में वृद्धि की आशंका जतायी जा रही है। गेट्स फाउंडेशन की रिपोर्ट बताती है दुनिया भले ही अमीर हो गई है लेकिन गरीब देशों के बच्चों पर होने वाला खर्च घटा दिया गया है। रिपोर्ट के अनुसार, धनी देशों द्वारा वैश्विक स्वास्थ्य खर्च पर 27 फीसदी की कटौती की गई है। जिससे इस वर्ष दो लाख अतिरिक्त बच्चों की मौत की आशंका जतायी जा रही है। दरअसल, ये मौतें उन बीमारियों से हो सकती हैं, जिन्हें अमीर देशों से मिलने वाली मदद से होने वाले टीकाकरण और बुनियादी इलाज से टाला जा सकता था। स्वास्थ्य विशेषज्ञ चिंतित हैं कि जिस समय दुनिया में संपत्ति सबसे तेजी से बढ़ रही है, उस समय गरीब देशों के बच्चों पर स्वास्थ्य खर्च का घट जाना दुर्भाग्यपूर्ण ही है। आशंका जतायी जा रही है कि यदि स्वास्थ्य सहायता में तीस प्रतिशत की कटौती हो जाती है तो वर्ष 2045 तक 1.6 करोड़ अतिरिक्त बच्चों की मौत हो सकती है। विडंबना देखिए कि इस आसन्न संकट को नजरअंदाज करके विकसित देश अपने रक्षा व आंतरिक खर्च को बढ़ाने पर जोर दे रहे हैं। जबकि अमीर देशों द्वारा गरीब मुल्कों के बच्चों के स्वास्थ्य के लिये दिया जाने वाला पैसा उनके बजट के एक फीसदी से भी कम है। गेट्स फाउंडेशन का विश्व के अमीर देशों से आग्रह है कि वे दुर्लभ संसाधनों को उन स्थानों पर लक्षित करें, जहां वे सबसे अधिक जीवन बचा सकते हैं। दरअसल, संकट में वे बच्चे हैं, जो अपना पांचवां जन्मदिन मनाने से पहले ही मृत्यु का ग्रास बन जाते हैं। इस संकट बढ़ने से दशकों से हासिल वैश्विक प्रगति बेकार हो जाएगी। निस्संदेह, दुनिया में कहीं भी पैदा हुए बच्चे को जीवित रहने और फलने-फूलने का अवसर मिलना चाहिए।
दरअसल, गेट्स फाउंडेशन की गोलकीपर्स रिपोर्ट और वाशिंगटन यूनिवर्सिटी के इंस्टीट्यूट फॉर हेल्थ मैट्रिक्स एंड इवैल्यूएशन ने बताया कि 2024 में, 4.6 मिलियन बच्चों की पांचवें जन्मदिन से पहले मौत हो गई थी। आशंका है कि आर्थिक मदद में कटौती से इस वर्ष इस संख्या में दो लाख की वृद्धि से इसके बढ़कर 4.8 मिलियन बच्चों तक पहुंचने की आशंका है। जिसकी मूल वजह स्वास्थ्य के लिये वैश्विक मदद में आई बड़ी गिरावट है। इस वर्ष सहायता निधि में भारी कटौती के अलावा गरीब देशों के बढ़ते कर्ज, कमजोर स्वास्थ्य सिस्टम के चलते मलेरिया, एचआईवी और पोलियो जैसी बीमारियों के विरुद्ध हासिल उपलब्धियों को खोने का जोखिम बढ़ सकता है। हालिया रिपोर्ट बताती है कैसे प्रमाणित समाधानों और अगली पीढ़ी के नवाचारों में लक्षित निवेश से सीमित बजट में लाखों बच्चों का जीवन बचाया जा सकता है। निस्संदेह, गरीब मुल्कों के ये बच्चे सुरक्षित जीवन पाने के हकदार हैं। गेट्स फाउंडेशन के अध्यक्ष बिल गेट्स कहते हैं विश्व में गरीब मुल्कों के बच्चों के स्वास्थ्य रक्षा के लिये वित्तीय संसाधन बढ़ाने व वर्तमान सिस्टम में सुधार हेतु दक्षता बढ़ाने की जरूरत है। हमें कम संसाधनों में अधिक काम करना होगा। यदि ऐसा नहीं होता तो हमारी पीढ़ी के दामन पर दाग लगेगा कि मानव इतिहास में सबसे उन्नत विज्ञान और नवाचार की पहुंच के बावजूद हम लाखों बच्चों का जीवन बचाने के लिये धन नहीं जुटा पाए। हम सही प्राथमिकताएं और प्रतिबद्धताएं तय करके तथा उच्च प्रभाव वाले समाधानों में निवेश करके बाल मृत्यु दर वृद्धि को रोक सकते हैं। यदि ऐसा होता है तो हम वर्ष 2045 तक कई मिलियन बच्चों को जीवित रहने में मदद कर सकते हैं। इसके लिये जरूरी होगा कि हम विदेशी मदद का अधिकतम उपयोग करते हुए प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल, नियमित टीकाकरण, गुणवत्ता के टीके और डेटा के नये उपयोग पर अधिक ध्यान दें। निस्संदेह, इन बीमारियों से लड़ने के लिये वैश्विक प्रतिबद्धता को जारी रखने की जरूरत है। गेट्स फाउंडेशन का मानना है कि अगली पीढ़ी के नवाचारों के विकास में निवेश से हम बच्चों में होने वाले मलेरिया और निमोनिया जैसे कुछ घातक रोगों को हमेशा के लिये खत्म कर सकते हैं।

