गर्मी से मुकाबला
ऐसे वक्त में जब भारत के अनेक हिस्सों में तेज गर्मी से पारा उछल रहा है, तपिश से बचने के लिये बिजली की मांग में अप्रत्याशित वृद्धि स्वाभाविक बात है। आम आदमी से लेकर खास आदमी तक गर्मी की तपिश से बचने के लिये कूलर से लेकर एसी तक का भरपूर इस्तेमाल करता है। हाल के दिनों में घरों, कार्यालयों, होटलों व मॉल तक में एसी का उपयोग बेतहाशा बढ़ा है। जिसके चलते गर्मियों के पीक सीजन में बिजली की खपत चरम पर पहुंच जाती है। ऐसे वक्त में केंद्र सरकार ने एयर कंडीशनर यानी एसी की पहचान बिजली की बढ़ती खपत के लिये जिम्मेदार खलनायक के रूप में की है। केंद्र सरकार योजना बना रही है कि घरों,होटलों व कार्यालयों में बीस डिग्री से अट्ठाइस डिग्री सेल्सियस के बीच इस्तेमाल होने वाले इस उपकरण की कूलिंग रेंज को मानकीकृत किया जाए। नए दिशा-निर्देश लागू होने के बाद एसी निर्माताओं को बीस डिग्री से कम तापमान पर कूलिंग प्रदान करने वाले एसी बनाने से रोक दिया जाएगा। केंद्रीय बिजली मंत्री मनोहर लाल खट्टर के अनुसार केंद्र सरकार की यह पहल बिजली बचाने और भारत की बढ़ती ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने के प्रयासों का हिस्सा है। इस बात में दो राय नहीं कि गर्मियों की तपिश से बचने के लिये लोग अपने एसी को बहुत कम तापमान पर चलाते हैं। इस प्रवृत्ति का बिजली ग्रिड पर दबाव बहुत अधिक बढ़ जाता है। निश्चित रूप से इसके चलते बिजली कटौती की संभावना भी बहुत अधिक बढ़ जाती है। लेकिन इस संकट का अकेला मुख्य समाधान एसी को बेहद कम तापमान पर चलाया जाना ही नहीं है। इसके अलावा अन्य कारक भी हैं। यह भी एक हकीकत है कि सरकारी व निजी कार्यालयों में एसी का उपयोग काफी लंबे समय तक अंधाधुंध ढंग से किया जाता है। यहां इसके उपयोग में किफायत बरतने की दिशा में भी कदम उठाने की जरूरत है।
निस्संदेह, ऊर्जा मंत्रालय का ऊर्जा नियामक ब्यूरो, बिजली खपत कम करने वाले उपकरणों के उपयोग को बढ़ावा देता है। लेकिन जब गर्मी रिकॉर्ड तोड़ती बढ़ रही है तो तापमान बढ़ने पर बिजली की खपत अनिवार्य रूप से बढ़ने लगती है। लेकिन इसका एकमात्र कारण एसी का बढ़ता उपयोग ही नहीं है। हमें खुद से सवाल पूछने की जरूरत है कि हमारे शहर इतने गर्म क्यों हो रहे हैं? हम इस बढ़ते तापमान से नागरिकों को राहत क्यों नहीं दे पा रहे हैं। अंधाधुंध-अवैज्ञानिक तरीके से हो रहे निर्माण कार्य भी इसमें कम दोषी नहीं हैं। हमने चारों तरफ कंक्रीट के जंगल तो बना दिए लेकिन शहरों में हरियाली का दायरा लगातार सिमटता जा रहा है। जिससे हवा का प्राकृतिक प्रवाह भी बाधित हो रहा है। विकास के नाम पर जो सैकड़ों वर्ष पुराने पेड़ काटे जाते हैं, उसकी क्षतिपूर्ति नये पेड़ लगाकर नहीं की जाती है। हम घरों को प्राकृतिक रूप से ठंडा बनाये रखने वाली भवन निर्माण तकनीक नहीं अपना रहे हैं। यदि उष्मारोधी भवन निर्माण सामग्री को बढ़ावा दिया जाए तो लोगों को कम बिजली खपत से भी राहत मिल सकती है। हमारी जीवनशैली बिजली की खपत को लगातार बढ़ा रही है। यदि हमारे देश में सार्वजनिक परिवहन प्रणाली को बढ़ावा दिया जाए तो सड़कों पर निजी वाहनों का उपयोग कम होने से वाहनों के गर्मी बढ़ाने वाले उत्सर्जन को कम किया जा सकता है। हमें भवन निर्माण में छतों को ठंडा रखने वाली तकनीक के उपयोग को बढ़ावा देना चाहिए। ऐसी सामग्री या सिस्टम का उपयोग किया जाना चाहिए जो पारंपरिक छत की तुलना में ताप बढ़ाने वाली सूरज की रोशनी को परावर्तित कर सके। इन उपायों से हम ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन को भी कम करने का प्रयास कर सकते हैं। इसके अलावा शहरी क्षेत्रों में हरियाली को बढ़ाकर और पारंपरिक जल निकायों को पुनर्जीवित करके हम तापमान को कम करने का प्रयास भी कर सकते हैं। सरकार और समाज की साझा जिम्मेदारी एक बड़े बदलाव की वाहक बन सकती है। स्थानीय निकाय, निजी क्षेत्र की संस्थाएं व गैर सरकारी संगठन निर्णायक भूमिका निभा सकते हैं।