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बाड़बंदी पर विवाद

सवालों में घिरे बांग्लादेश के मंसूबे
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गत वर्ष अगस्त में तत्कालीन प्रधानमंत्री शेख हसीना के अपदस्थ होने के बाद बांग्लादेश की कार्यवाहक सरकार के दौरान भारत विरोधी रवैये में कमी नहीं आ रही है। लगातार भारत विरोधी मुहिम व अल्पसंख्यक हिंदुओं पर हमले के बाद अब नया विवाद दोनों देशों की सीमा पर बाड़ लगाने को लेकर पैदा किया जा रहा है। जबकि इस मुद्दे पर दोनों देशों के बीच पहले ही सहमति बन चुकी थी। बड़े हिस्से पर पहले ही बाड़बंदी हो चुकी है। लेकिन टकराव मोल लेने को तैयार बैठे बांग्लादेश के हुकमरान विवाद के नये-नये मुद्दे तलाश रहे हैं। बीते रविवार बांग्लादेश के विदेश मंत्रालय ने ढाका में भारत के उच्चायुक्त प्रणय वर्मा को तलब किया। कयास लगाये जा रहे हैं कि बांग्लादेश ये हरकतें किसी तीसरे देश के इशारे पर कर रहा है। उल्लेखनीय है कि भारत-बांग्लादेश के बीच 4156 किलोमीटर लंबी सीमा में से 3271 किलोमीटर पर कंटीले तार की बाड़ लग चुकी है और अब 885 किलोमीटर सीमा पर बाड़ लगना शेष है। अवैध घुसपैठियों, अपराधियों और चरमपंथियों की रोकथाम हेतु सीमा पर बाड़ लगाना भारत का अधिकार है। मामले का निस्तारण बांग्लादेश को समझदारी से करना चाहिए। दरअसल, बांग्लादेश की कार्यवाहक सरकार पुराने मुद्दे उछाल कर विवाद को हवा दे रही है। ऐसे वक्त में जब पाक से उसकी नजदीकियां लगातार बढ़ी हैं और वहां पाक सेना के अधिकारियों की सक्रियता देखी गई है, भारत को अपनी सुरक्षा चिंताओं के लिये कदम उठाने ही चाहिए। अब तक पंजाब, जम्मू-कश्मीर व नेपाल के रास्ते आतंकवादियों को भारत भेजने की कोशिश पाक करता रहा है। इस आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता कि वह बांग्लादेश से लगी भारत की खुली सीमा का दुरुपयोग न करे। निश्चित रूप से पिछले दिनों बांग्लादेश से रिश्तों में जिस तरह से अविश्वास उपजा है, उसके चलते भारत अपनी सुरक्षा चिंताओं को नजरअंदाज नहीं कर सकता।

यहां उल्लेखनीय है कि बाड़बंदी के भारत के फैसले को व्यापकता में देखने की जरूरत है। यह बात भी ध्यान रखने काबिल है कि दोनों देशों में सीमा पर बाड़ लगाने को लेकर विगत में एक राय बनी हुई है। बीएसएफ और बॉर्डर गार्ड बांग्लादेश यानी बीजीबी में कई बार बातचीत के बाद इस मुद्दे पर सहमति बन चुकी है। लेकिन बांग्लादेश भारत की सदाशयता के बावजूद टकराव के मूड में नजर आता है। ऐसा ही रवैया उसका अल्पसंख्यकों की सुरक्षा को लेकर भी रहा है, जिस बारे में वह अब दलील दे रहा है कि हालिया हिंसक घटनाएं सांप्रदायिक नहीं बल्कि राजनीतिक कारणों से हुई हैं। बल्कि अंतरिम सरकार के प्रमुख भारतीय मीडिया पर घटनाओं को बढ़ा-चढ़ाकर बताने का आरोप लगाते हैं। ऐसे वक्त में जब बांग्लादेश की कार्यवाहक सरकार ने पाकिस्तानियों का बांग्लादेश में प्रवेश आसान कर दिया है तो पाक के बांग्लादेश को भारत विरोधी प्लेटफॉर्म के रूप में इस्तेमाल करने की आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता। यह हकीकत है कि पाक का जन्म ही भारत विरोधी मानसिकता से हुआ है। ऐसे में अतीत से सबक लेते हुए भारत को अपनी सीमाओं की सुरक्षा को लेकर किसी तरह की चूक नहीं करनी चाहिए। किसी भी तरह की ढिलाई भारतीय सुरक्षा पर भारी पड़ सकती है। भारत की उदारता को बांग्लादेश हमारी कमजोरी न मान ले, इसलिए उसे बताना जरूरी है कि भारत से टकराव की कीमत उसे भविष्य में चुकानी पड़ सकती है। यह भी कि संबंधों में यह कसैलापन लंबे समय तक नहीं चल सकता। उसकी यह कटुता उसके लिये ही कालांतर घातक साबित हो सकती है। यह विडंबना ही है कि नोबेल पुरस्कार से सम्मानित अंतरिम सरकार के प्रमुख मोहम्मद यूनुस से क्षेत्र में शांति व सद्भाव की जो उम्मीदें थी, उसमें उन्होंने कट्टरपंथियों की लाइन लेकर निराश ही किया है। उनकी सरकार लगातार अड़ियल व बदमिजाजी का रुख अपनाए हुए है। इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है कि दोनों देशों के संबंध बिगाड़ने में पर्दे के पीछे पाकिस्तान की भूमिका हो। जिस बांग्लादेश को पाकिस्तानी क्रूरता से मुक्त कराकर एक स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में भारत ने तमाम कुर्बानियों के बाद जन्म दिया, उसका यह रवैया दुर्भाग्यपूर्ण ही कहा जाएगा।

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