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कारगिल पर स्वीकारोक्ति

विश्वास बहाली को अतिरेक प्रयासों की जरूरत
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जिस सच को भारत बार-बार दोहराता रहा है कि कारगिल युद्ध में पाक के सैनिकों की पूरी भूमिका रही है, उस सच को पाक सेना प्रमुख ने पच्चीस साल बाद स्वीकारा है। पाक की यह सफाई ऐसे वक्त में आई है जब भारत ने कारगिल विजय दिवस की 25वीं वर्षगांठ कुछ समय पहले ही मनायी है। बीते शुक्रवार को पाक के रक्षा और शहीद दिवस के मौके पर सेना प्रमुख जनरल सैयद आसिम मुनीर की स्वीकारोक्ति के गहरे निहितार्थ हैं। हालांकि, मुनीर ने गोलमोल तरीके से भारत व पाक के बीच हुए युद्धों समेत कारगिल में हजारों सैनिकों के मारे जाने की बाद कही। दरअसल, वर्ष 1999 के कारगिल संघर्ष को लेकर पाक के किसी शीर्ष सैन्य अधिकारी की पहली सार्वजनिक स्वीकारोक्ति है कि इस युद्ध में पाक सेना शामिल थी। अब तक पाक दलील देता रहा है कि कारगिल में कश्मीर के लिये लड़ने वाले लोग शामिल थे। हालांकि, इस साल की शुरुआत में पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने कारगिल का नाम लिये बिना यह स्वीकारा था कि इस्लामाबाद ने 1999 में हुए उस समझौते का उल्लंघन किया था, जिस पर उनके व तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के हस्ताक्षर थे। यह स्वीकार्य तथ्य है कि कारगिल हमले का दुस्साहस जनरल परवेज मुशर्रफ द्वारा रची साजिश के तहत ही हुआ है। दरअसल, पाकिस्तानी सेना ने बांग्लादेश युद्ध में मिली शर्मनाक हार का बदला लेने का असफल प्रयास ही किया था।

बहरहाल, पाक सेना प्रमुख की कारगिल युद्ध में सेना के शामिल होने की स्वीकारोक्ति के छिपे निहितार्थ भी हो सकते हैं। मगर प्रश्न टाइमिंग को लेकर है कि आखिर क्या वजह थी जो पाक ने यह तब स्वीकारा जब भारत कारगिल विजय के पच्चीस वर्ष पूरे होने पर जश्न मना चुका है। लेकिन स्पष्ट है कि पाकिस्तान में लोकतंत्र सेना के शिकंजे में पूरी तरह जकड़ा हुआ है। सत्ता पर काबिज शरीफ बंधुओं पर सेना का पूरा दबदबा है। वहीं मुखर पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान जेल की सलाखों के पीछे हैं। दरअसल, पाक दुनिया को यह दिखाने का प्रयास कर सकता है कि वह अपनी अतीत की भूलों को स्वीकार रहा है और अपनी ऐतिहासिक भूलों से सबक सीखने को उत्सुक है। तभी पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने इसी कार्यक्रम में कहा था कि पाक अपने सभी पड़ोसियों से बेहतर संबंध बनाना चाहता है। संभव है कि पाक अगले महीने इस्लामाबाद में होने वाली एससीओ बैठक के लिये माहौल बनाने का प्रयास कर रहा हो। जिसमें वह भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के भाग लेने की उम्मीद जता रहा है। लेकिन भारत पाक की बातों पर सहज विश्वास कर ले, उसका कोई तार्किक आधार नजर नहीं आता। दोनों देशों के बीच अविश्वास की खाई बीतों दिनों में लगातार चौड़ी होती रही है। खासकर पिछले दिनों जम्मू क्षेत्र में पाक प्रशिक्षित आतंकवादियों द्वारा भारतीय सैनिकों पर लगातार किए गए हमलों में उसकी भूमिका को लेकर। निश्चित रूप से जनरल मुनीर से एलओसी के पार आतंकी हमलों में पाकिस्तानी सेना की भूमिका को स्पष्ट करने के लिये कहा जाना चाहिए।

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