राजग के सबसे पुराने सहयोगी अकाली दल ने आखिरकार 22 साल बाद गठबंधन से खुद को अलग कर लिया। केंद्र सरकार द्वारा संसद में पारित कृषि सुधार बिलों के पारित होने से पंजाब में आये उबाल के बाद इस अलगाव के संकेत सामने आ रहे थे। राजग सरकार में शामिल अकाली दल के कोटे से केंद्रीय खाद्य और प्रसंस्करण मंत्री हरसिमरत कौर बादल के इस्तीफे के बाद इसके संकेत मिलने भी लगे थे। वैसे पार्टी की तरफ से शिअद को मनाने के कुछ खास प्रयास भी नहीं हुए। पिछले कुछ दिनों से जिस तरह शिरोमणि अकाली दल के अध्यक्ष सुखबीर बादल केंद्र सरकार पर हमलावर हो रहे थे, उससे अलगाव के आसार बन रहे थे। दरअसल, शिअद के लिये आगे कुआं और पीछे खाई वाली स्थिति पैदा हो गई थी। पिछले विधानसभा चुनाव में सत्ता से बाहर होने के बाद अकाली दल के जनाधार में कमी साफ नजर आ रही थी। दूसरी ओर राज्य के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरेंद्र सिंह ने किसानों के आंदोलन को खुला समर्थन देकर केंद्र को सीधे इनके निशाने पर ला दिया। जाहिरा बात है कि पंजाब में राजग का घटक होने के नाते दबाव शिअद पर ही आना था। वैसे भी कृषि प्रधान पंजाब में ग्रामीण पृष्ठभूमि में दखल रखने वाले शिअद का मुख्य वोट बैंक किसान ही रहा है। ऐसे में पंजाब में किसान संगठनों के तल्ख विरोध को देखते हुए अकाली दल बचाव की मुद्रा में नजर आ रहा था। उसने गठबंधन को तिलांजलि देकर पार्टी की साख बचाने की कोशिश ही की है।
वैसे भी पिछले विधानसभा चुनाव के बाद दोनों दलों के रिश्तों में पहले जैसी गर्मजोशी नजर नहीं आ रही थी। दोनों दलों के तल्ख मतभेद गाहे-बगाहे सतह पर आ ही जाते थे। हालांकि, वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव में दोनों दलों का चुनाव-पूर्व गठबंधन था, लेकिन शिअद नेतृत्व की घटती लोकप्रियता तथा पार्टी से दिग्गज नेताओं की विदाई राज्य भाजपा को असहज कर रही थी। इस चुनाव में सबसे ज्यादा नुकसान भाजपा को ही हुआ था। उसका वोट बैंक भी गिरा और मात्र तीन प्रत्याशी ही विधानसभा तक पहुंच पाये। दरअसल, पंजाब की राजनीति के तीसरे कोण आप ने भाजपा के शहरी वोट बैंक पर अब सेंध लगा दी है। पार्टी को लग रहा था कि अकाली दल की घटती लोकप्रियता के चलते राज्य में पार्टी को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की राष्ट्रव्यापी लोकप्रियता का लाभ नहीं मिल रहा है, जिसके चलते दोनों दलों के संबंध सहज नहीं रहे। यहां तक कि जब देश में नागरिक संशोधन कानून के खिलाफ विपक्ष ने विरोध तेज किया तो शिअद विपक्षी दलों के साथ खड़ा नजर आया। अब शिअद को वर्ष 2022 में होने वाले विधानसभा चुनाव की चिंता भी सताने लगी है। पंजाब में किसान आंदोलन के समर्थन में जिस तरह कांग्रेस व आम आदमी पार्टी मुखर हुई हैं, शिअद खुद को अलग-थलग महसूस कर रहा था। बहरहाल, आने वाला वक्त बतायेगा कि इस अलगाव का कितना लाभ शिरोमणि अकाली दल को मिलता है। अगला चुनाव भाजपा के लिये भी बेहद मुश्किल होने वाला है।