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शहादत का स्मरण

शांति सैनिकों को श्रद्धांजलि एक सुधार

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भले ही श्रीलंकाई संकट के समाधान हेतु भारतीय शांति सेना को श्रीलंका भेजा जाना तत्कालीन सरकार का फैसला रहा हो, लेकिन वास्तव में भारतीय सैनिक राष्ट्र के हितों और सैन्य दायित्वों के लिये ही लड़े थे। इस फैसले का उद्देश्य श्रीलंकाई तमिलों के हितों की रक्षा और उनके न्यायसंगत पुनर्वास के लिये पहल करना भी रहा है। लेकिन यह भी एक हकीकत है कि भारतीय शांति सेना यानी आईपीकेएफ के पूर्व सैनिकों में इस बात को लेकर लंबे समय से रोष व्याप्त रहा है कि आईपीकेएफ सैनिकों के बलिदान को उचित सम्मान नहीं दिया गया। अब सरकार व सेना ने इस कमी को पूरा करने की दिशा में कम से कम एक पहल तो की है। सेना प्रमुख जनरल उपेंद्र द्विवेदी द्वारा राष्ट्रीय युद्ध स्मारक पर परमवीर चक्र विजेता मेजर रामास्वामी परमेश्वरन को उनके बलिदान दिवस पर श्रद्धांजलि अर्पित करना, इस दिशा में एक महत्वपूर्ण क्षण था। देश के रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने भी इस बाबत श्रद्धांजलि संदेश प्रेषित किया है। भले ही शीर्ष अधिकारियों द्वारा की गई यह पहल एक प्रतीकात्मक सुधार हो, लेकिन यह सही दिशा में उठाया गया सार्थक कदम है। हालांकि देर से ही सही, ये प्रयास श्रीलंका में ऑपरेशन पवन के दौरान शहीद हुए 1,171 भारतीय सैनिकों को उचित सम्मान देने में रही एक कमी को दूर करने का प्रयास कहा जा सकता है। यहां यह उल्लेखनीय है कि इस युद्ध में करीब तीन हजार से ज्यादा सैनिक घायल भी हुए थे। इससे पूर्व कई वीर सैनिकों को वीरता पदक से सम्मानित भी किया जा चुका है। लेकिन एक टीस के साथ कहा जाता रहा है कि यह अकसर भुला दिया जाने वाला युद्ध रहा है। यहां यह भी उल्लेखनीय है कि कोलंबो में भारतीय शांति रक्षक सेना और पलाली में 10-पैरा के शहीदों के लिये स्मारक का निर्माण किया गया था। यह विडंबना ही है कि आईपीकेएफ के पूर्व सैनिक, शहीदों की विधवाएं और उनके परिजन राष्ट्रीय युद्ध स्मारक पर निजी स्तर पर स्मरणोत्सव आयोजित करते रहे हैं। निश्चित ही देश के हितों के लिये चलाये गए किसी भी सैन्य अभियान में शहीद हुए सैनिकों को सामान्य युद्ध में शहीद हुए सैनिकों की तरह पर्याप्त सम्मान मिलना चाहिए।

दरअसल, ऑपरेशन पवन में शहीद हुए सैनिकों के परिजन और युद्ध में भाग लेने वाले जवान भी उन्हें पर्याप्त सम्मान दिए जाने की आस लंबे समय से रखते रहे हैं। वर्षों से उनकी मांग रही है कि साल 1971 में बांग्लादेश के मुक्ति संग्राम और वर्ष 1999 में हुए कारगिल युद्ध के शहीदों की याद में मनाये जाने वाले खास दिनों की तरह ‘ऑपरेशन पवन’ की याद में भी एक विशेष दिन की घोषणा की जानी चाहिए। वहीं दूसरी ओर शहीद सैनिकों के परिजनों की एक टीस उन्हें दशकों से सालती रही है। चूंकि ऑपरेशन पवन में शहीद हुए कई सैनिकों का अंतिम संस्कार या दफनाने की प्रक्रिया विदेशी धरती पर पूरी हुई थी, इसलिए उनके परिजन शहीद सैनिकों के अवशेषों को वापस भारत लाने की नीति को सुव्यवस्थित करने की मांग करते रहे हैं। वे एक ऐसे आयोग के गठन की भी मांग करते रहे हैं जो शहीद सैनिकों के पार्थिव अवशेष को वापस भारत लाने की नीति को तार्किक बना सके। उनकी मांग रही है कि उन अवशेषों को भारत लाकर आईपीकेएफ का एक स्मारक बनाकर, उसमें सम्मान के साथ स्थानांतरित किया जाना चाहिए। निस्संदेह, किसी भी देश के वीर शहीदों के स्मारक सामूहिक स्मृति के प्रतीक होते हैं। निश्चित रूप से राष्ट्रीय युद्ध स्मारक सशस्त्र बलों द्वारा दिए गए बलिदान के लिये एक सम्मान और स्मरण स्थल के रूप में चिरस्थायी श्रद्धांजलि के रूप में होते हैं। निर्विवाद रूप से इस बहुप्रतीक्षित मांग को हकीकत में बदलने के लिये चाहे कितनी भी जटिलताएं क्यों न हो, सैनिकों के पराक्रम और बलिदान को कम करके आंकने का कोई बहाना नहीं होना चाहिए। यदि हम वीर सैनिकों के बलिदान को समुचित सम्मान देते हैं तो इससे तमाम सैनिकों का मनोबल बढ़ेगा। इस दिशा में अविलंब सार्थक पहल किया जाना वक्त की जरूरत ही है।

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