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उम्मीदों की चिप

भारत चला आत्मनिर्भर-तरक्की की राह
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भारत ने टेक क्रांति की तरफ बढ़ते हुए पहला पूर्णत: स्वदेशी 32-बिट माइक्रोप्रोसेसर विकसित कर लिया है। इसरो की सेमीकंडक्टर लैब इस कामयाबी की साक्षी बनी है। पहली मेड इन इंडिया चिप का उत्पादन गुजरात के साणंद स्थित पायलट प्लांट से शुरू होगा। केंद्र की इस महत्वाकांक्षी परियोजना के अंतर्गत 18 अरब डॉलर से ज्यादा के कुल निवेश वाली दस सेमीकंडक्टर परियोजनाएं देश में चल रही हैं। जिनमें से एक पंजाब के मोहाली में स्थित है। इस कड़ी प्रतिस्पर्धा वाले चिप क्षेत्र में भारत की यह दस्तक उत्साह जगाने वाली है। भारत इस क्षेत्र में एक प्रमुख वैश्विक खिलाड़ी बनने के लिये उत्सुक है। तभी सेमीकॉन इंडिया-2025 के उद्घाटन अवसर पर प्रधानमंत्री ने कहा कि वह दिन दूर नहीं है जब भारत की सबसे छोटी चिप दुनिया में बड़े बदलाव की नींव रखेगी। हालांकि, इस राह में अभी कई चुनौतियां हैं, लेकिन उम्मीद है कि छह सौ अरब डॉलर वाले वैश्विक सेमीकंडक्टर उद्योग में भारत की हिस्सेदारी आने वाले वर्षों में 45 से 50 अरब डॉलर की हो सकती है। फिलहाल आधुनिक समय की इस जादुई चिप के उत्पादन में ताइवान, दक्षिण कोरिया, जापान, चीन और अमेरिका जैसे देशों का वर्चस्व है। यहां तक कि छोटा-सा देश ताइवान दुनिया के लगभग साठ फीसदी से ज्यादा सेमीकंडक्टर का उत्पादन कर रहा है। जिसमें करीब नब्बे फीसदी उन्नत सेमीकंडक्टर शामिल हैं। दरअसल, कोविड संकट के बाद आधुनिक तकनीक व उन्नत उपकरणों में इसकी महत्वपूर्ण भूमिका के चलते इस क्षेत्र में वैश्विक स्तर पर होड़ पैदा हो गई है। निस्संदेह, भारत को चिप उत्पादन क्षेत्र में एक दिग्गज देश बनने के लिए निरंतर निवेश, अनुसंधान-विकास और विनिर्माण की आवश्यकता होगी। हाल ही में प्रधानमंत्री की जापान यात्रा से उम्मीद जगी है कि वह वैश्विक सेमीकंडक्टर डिजाइन पारिस्थितिकीय तंत्र विकसित करने में भारत के लिये मददगार साबित हो सकता है। यह सुखद ही है कि भारत में चिप उत्पादन परियोजनाओं में जापानी निवेश बढ़ रहा है।

निश्चय ही भारत यदि अनुसंधान-विकास व व्यापार सुगमता की स्थितियां निर्मित कर लेता है तो हमारी सेमीकंडक्टर आयात के लिये दूसरे देशों पर निर्भरता कम हो सकती है। इससे हम वैश्विक दबाव से मुक्त होकर अपनी आपूर्ति शृंखला को मजबूत बना सकते हैं। सेमीकंडक्टर क्षेत्र में सफलता हासिल करने की दिशा में भारत का एक सशक्त पक्ष यह भी है कि दुनिया के लगभग बीस फीसदी चिप डिजाइन इंजीनियर भारत में हैं। दरअसल, इलेक्ट्रॉनिक्स व आईटी क्षेत्र में कामयाबी के लिये भारत सरकार ने सेमीकंडक्टर परियोजना के रूप में एक महत्वाकांक्षी लक्ष्य रखा है। सरकार बड़ी घरेलू कंपनियों को संबल देने के लिये डिजाइन लिंक्ड इंसेंटिव यानी डीएलआई के तहत दिए जा रहे लाभ के विस्तार के साथ ही, इसके तहत दिये जाने वाले अनुदान को बढ़ाने पर गंभीरता से विचार कर रही है। जिसके तहत महत्वपूर्ण सेमीकंडक्टर उत्पादन परियोजनाओं के लिये केंद्र व राज्यों से प्रोत्साहन के रूप में परियोजना की कुल लागत का सत्तर फीसदी मिलना जारी रह सकता है। इस योजना के तहत केंद्र सरकार पचास फीसदी पूंजीगत सहायता दे रही है। वहीं राज्य सरकारें कुल परियोजना लागत का बीस फीसदी प्रोत्साहन दे रही हैं। इस महत्वाकांक्षी परियोजना को भारत में गेम चेंजर टेक क्रांति माना जा रहा है। सेमीकॉन इंडिया 2025 के उद्घाटन मौके पर प्रधानमंत्री ने कहा भी कि सरकार इस मिशन और उसको तैयार करने से जुड़ी डीएलआई योजना के अगले फेज पर काम कर रही है। निश्चित रूप से केंद्र के प्रयासों से भारत चिप उत्पादन के वैश्विक महत्वाकांक्षी अभियान की दौड़ में तेजी से आगे बढ़ सकता है। दरअसल, डिजिटल डिवाइसों का मस्तिष्क कहा जाने वाला सेमीकंडक्टर कंप्यूटर, मोबाइल,राउटर, कार, सैटलाइट जैसे उन्नत डिजिटल डिवाइस तैयार करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इन उपकरणों की कार्यकुशलता उन्नत चिप की ताकत पर निर्भर करती है। साधारण शब्दों में कहें चिप पतली सिलिकॉन वेफर पर बने लाखों-करोड़ों ट्रांजिस्टरों का संजाल है। जो कंप्यूट करने, मेमोरी प्रबंधन व सिग्नल प्रोसेस करके डिवाइस को उन्नत बनाती है। उम्मीद है कि भारत का स्वेदशी चिप इस साल के आखिर तक बाजार में आ सकेगी। जिसका असर जियोपॉलिटिक्स पर तो होगा ही, नये रोजगार सृजन का वातावरण भी बनेगा।

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