सुरक्षा की दृष्टि से चाकचौबंद मानी जाने वाली देश की राजधानी में लाल किले के पास हुए भीषण धमाके ने कई ज्वलंत सवालों को जन्म दिया है। सुरक्षा व्यवस्था के छिद्रों को पाटने की जरूरत के साथ चेताया है कि हमारी जरा सी चूक से आतंकवादियों को फिर से पांव जमाने का मौका मिल सकता है। अब जब मामले की जांच देश की शीर्ष खुफिया एजेंसियां कर रही हैं तो जांच के निष्कर्ष ही हकीकत बताएंगे। लेकिन धमाके का स्तर और उससे हुई जनधन की हानि चिंता बढ़ाने वाली है। निश्चित ही यह घटना एक बड़ी साजिश की ओर इशारा करती है। सवाल यह भी उठता है कि चाक-चौबंद सुरक्षा व्यवस्था के बीच अपराधी कैसे इतनी बड़ी मात्रा में ज्वलनशील पदार्थ संवेदनशील इलाके में ले जाने में सफल हुए। प्रारंभिक सूचनाओं के अनुसार जम्मू-कश्मीर के रास्ते उत्तर प्रदेश व हरियाणा तक फैले कश्मीरी डॉक्टरों के एक समूह ने घटना को अंजाम दिया। इस घटनाक्रम ने पूरे देश को चौंकाया कि समाज में दूसरे भगवान का दर्जा पाने वाले डॉक्टर कैसे लोगों के चिथड़े उड़ाने वाले कृत्य को अंजाम दे सकते हैं? उनकी उस शपथ का क्या हुआ जो डॉक्टर पढ़ाई पूरी करने के बाद लोगों की जीवन रक्षा के लिए लेते हैं? अब तक यह मान्यता रही है कि आतंकवादी संगठनों से वे लोग ही जुड़ते हैं, जो कम पढ़े-लिखे होते हैं और विध्वंसकारी ताकतों के बहकावे में आकर आतंकवाद की राह में उतर जाते हैं। लेकिन दुर्भाग्यपूर्ण ढंग से इस आतंक के स्लीपर सैल में डॉक्टरों के समूह का शामिल होना बेहद चिंता का विषय है। जो समाज के उस विश्वास को तोड़ता है कि डॉक्टर हमेशा जीवन देने वाला ही होता है। भविष्य में यह खतरनाक प्रवृत्ति अन्य व्हाइट क़ॉलर जॉब करने वाले समूह को भी घातक रास्ते पर ले जा सकती है। ऐसे में हमें लाल किले के निकट घटी घटना को गंभीरता से लेना चाहिए और आसन्न खतरे को महसूस भी करना चाहिए।
बहरहाल, लाल किले के निकट की घटना एक आतंकी साजिश थी या बड़ी साजिश को अंजाम देने निकले अपराधियों की चूक से समय से पहले घटी घटना, ये एनआईए की जांच से ही पता चल सकेगा। लेकिन जो क्षति घटनास्थल पर हुई है वह किसी आतंकी घटना से कम तो नहीं है। बहरहाल, राष्ट्रीय राजधानी में हुई घटना के चलते भविष्य के खतरे के मद्देनजर सभी दृष्टिकोणों से मामले की जांच की जानी चाहिए। शायद इसी कारण से दिल्ली पुलिस ने यूएपीए, विस्फोटक अधिनियम व अन्य कठोर धाराओं में मामला दर्ज करके जांच का दायरा बढ़ाया गया है। लेकिन इस घटनाक्रम के बाद सुरक्षा एजेंसियों की सतर्कता के प्रश्न भी हमारे सामने हैं कि कैसे अपराधी इतनी भारी मात्रा में विस्फोटक पदार्थ राजधानी में ले जाने में सफल हुए। जिसके चलते भविष्य में ऐसे हादसों की पुनरावृत्ति रोकने के लिये सभी जरूरी कदम उठाए जाने चाहिए। याद रहे कि अतीत में भी कई बार दिल्ली को आतंक से दहलाने की कोशिशें हुई हैं। हमें उन घटनाओं से भी सबक लेने की जरूरत है। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि आतंकवाद के मामले में जरा सी चूक भी व्यापक क्षति का सबब बन सकती है। देश को अस्थिर करने की किसी भी साजिश को विफल बनाने और आम लोगों का जीवन सुरक्षित बनाने के लिये सख्त कदम उठाने की जरूरत है। इस नये टेरर मॉड्यूल के मद्देनजर भी निगरानी का दायरा बढ़ाने की जरूरत है। पता लगाने की जरूरत है कि कैसे अपराधी इतनी बड़ी मात्रा में विस्फोटक पदार्थ वाया फरीदाबाद दिल्ली पहुंचाने में सक्षम बने। वैसे हाल के वर्षों में देश के भीतर आतंकी घटनाओं पर लगभग विराम लगा हुआ था, लेकिन हालिया घटना ने हमारी चिंताओं को बढ़ाया ही है। हमें आतंकवाद को बढ़ावा देने के हर प्रयास को सख्ती से कुचलने की जरूरत है। सजग और सतर्क खुफिया तंत्र इसमें निर्णायक भूमिका निभा सकता है। सरकार की कोशिश होनी चाहिए कि जांच के बाद दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई हो। साथ ही इस बात पर विचार करने की जरूरत है कि इस कांड में सीमा पार सक्रिय आतंकी संगठनों की भूमिका तो नहीं है। बिना बाहरी मदद के इतनी बड़ी साजिश को अंजाम देना सहज नहीं हो सकता। व्हाइट कॉलर आतंकी मॉड्यूल का पनपना हमारी गहरी चिंता का विषय भी होना चाहिए।

