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बुल्डोजर न्याय

आसान नहीं कोर्ट के सवालों का जवाब देना

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निस्संदेह, नूंह और गुरुग्राम की हिंसक घटनाओं को समाज, राज्य व देश हित में कदापि स्वीकार नहीं किया जा सकता। किसी भी समाज में संप्रदाय के आधार पर हुई हिंसा में जन-धन की हानि उसकी प्रतिष्ठा व प्रगतिशीलता पर सवाल खड़े करती है। ऐसा इसलिये भी है क्योंकि किसी तरह की सांप्रदायिक हिंसा का शिकार ऐसे लोगों को बनाया जाता है, जिनका घटनाक्रम से सीधा कोई संबंध नहीं होता। लेकिन हिंसा प्रभावित क्षेत्रों में पुलिस-प्रशासन की कार्रवाई पर यदि सवाल उठें तो यह भी चिंता की बात कही जानी चाहिए। हिंसा प्रभावित नूंह में कथित रूप से दंगे में भूमिका निभाने वाले कुछ लोगों के खिलाफ बुल्डोजर कार्रवाई को लेकर पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय की तल्ख टिप्पणी को इसी आलोक में देखा जाना चाहिए। अदालत ने पूछा है कि संप्रदाय विशेष के लोगों के खिलाफ कार्रवाई का तार्किक औचित्य क्या है? क्या कानून व्यवस्था बनाये रखने की आड़ में समुदाय विशेष की इमारतों को निशाना बनाया गया है? क्या प्रशासनिक अधिकारी कानून द्वारा स्थापित प्रक्रिया का पालन कर रहे हैं? इतना ही नहीं, अदालत ने राज्य सरकार को एक हलफनामा पेश करने का निर्देश भी दिया है, जिसमें उल्लेख किया जाए कि पिछले दो सप्ताह में नूंह और गुरुग्राम में कितनी इमारतें गिराई गई हैं? क्या इमारतों को गिराने से पहले कोई नोटिस जारी किया गया था? उल्लेखनीय है कि गत 31 जुलाई को एक धार्मिक जुलूस को भीड़ द्वारा निशाना बनाये जाने के बाद नूंह में सांप्रदायिक हिंसा भड़क उठी थी। कालांतर हिंसा ने आसपास के इलाके को भी अपनी चपेट में ले लिया था। जिसमें गुरुग्राम भी शामिल था। दरअसल, पिछले कुछ दिनों में अधिकारियों द्वारा कुछ झुग्गियों और दुकानों सहित कथित रूप से अवैध रूप से बनी संरचनाओं को ढहा दिया था। प्रशासनिक अधिकारियों का कहना था कि इनमें से कुछ आवास व प्रतिष्ठान दंगाइयों के थे। प्रशासन का दावा था कि इनके मालिकों को पहले नोटिस भी जारी किये गये थे।

बहरहाल, प्रशासन के दावे के बावजूद अतिक्रमण हटाने व तोड़फोड़ की कार्रवाई के समय और पूरी प्रक्रिया में चयन को लेकर सवाल खड़े हुए हैं। आरोप लगे कि हिंसा में कथित भूमिका की पूरी तरह जांच किये बिना ही अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों को तत्काल सजा दी जा रही थी। दरअसल, बीते वर्षों में कुछ राज्यों खासकर भाजपा शासित राज्यों उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश में ‘बुल्डोजर न्याय’ प्रशासन की कार्यशैली का विशेष अंग बन गया है। पिछले साल जून में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री के एक सलाहकार ने बुल्डोजर से एक इमारत ध्वस्त करने की तसवीर सोशल मीडिया पर जारी करते हुए चेतावनी दी थी कि कानून विरोधी कार्य करने वालों को ऐसा सबक सिखाया जायेगा। निस्संदेह, कानून की उचित प्रक्रिया की अवहेलना और बदले की भावना से राजकीय मशीनरी का काम करना न्याय क्रियान्वयन प्रणाली को कमजोर ही करता है। इसमें दो राय नहीं कि अतिक्रमणकारियों के विरुद्ध कार्रवाई होनी चाहिए, लेकिन जरूरी है कि स्थापित प्रक्रिया के अनुरूप ही कार्रवाई हो। ऐसा नहीं होना चाहिए जिससे संदेश जाये कि यह कार्रवाई राजनीतिक या सांप्रदायिक सोच से प्रभावित होकर की गई है। पंजाब व हरियाणा उच्च न्यायालय की तल्ख टिप्पणी को इसी संदर्भ में देखा जाना चाहिए। शासन-प्रशासन की विश्वसनीयता के लिये जरूरी है कि उसके फैसलों में नीर-क्षीर विवेक नजर आये। ऐसा उसे अपने विवेक से ही करना चाहिए और बार-बार अदालत को यह याद कराने की जरूरत नहीं पड़नी चाहिए। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि हम एक धर्मनिरपेक्ष देश में रहते हैं। निस्संदेह, कानून को अपने हाथ में लेने वाले बख्शे नहीं जाना चाहिए, लेकिन कार्रवाई के दौरान यह संदेश कदापि नहीं जाना चाहिए कि संप्रदाय विशेष को निशाना बनाया जा रहा है। वहीं सभी संप्रदायों के लोगों की भी जिम्मेदारी है कि हिंसा का सहारा लेने वालों को अलग-थलग करके कानून की मदद करें। सांप्रदायिक सोच के चलते ऐसे तत्वों का संरक्षण भी पुलिस-प्रशासन को ऐसे कदम उठाने को बाध्य करता है, जिसकी चपेट में निर्दोष लोग भी आ सकते हैं।

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