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ब्रह्म ही तो है अन्न

आपराधिक बर्बादी रोकने की तय हो जवाबदेही

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भारतीय जीवन दर्शन में अन्न को प्रसाद मानकर सम्मान देने की परंपरा में उसे ब्रह्म की संज्ञा दी गई है। आज भी जिम्मेदार पीढ़ी के लोग खाने से पहले भोजन को प्रणाम करते तथा पहला कौर जीव-जंतुओं के लिये निकालते हैं। मकसद अन्न के महत्व को गरिमा देना और उसका उचित इस्तेमाल ही होता है। ऐसे में संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम यानी यूएनईपी की वह रिपोर्ट एक काले सच को उजागर करती है कि पूरी दुनिया में 19 फीसदी भोजन बर्बाद कर दिया जाता है। एक भयावह सच्चाई यह भी है कि दुनिया में करीब 78.3 करोड़ लोग लंबे समय से भूख से जूझ रहे हैं। युद्धरत गाजा में इस भूख के संकट की भयावह स्थिति जब-तब उजागर होती रहती है। संयुक्त राष्ट्र की यह हालिया रिपोर्ट एक कठोर हकीकत से रूबरू भी कराती है कि पर्याप्त संसाधनों के बावजूद खाद्यान्न का न्यायसंगत वितरण नहीं हो पा रहा है। दूसरे शब्दों में यह एक नैतिक संकट भी है। दरअसल, भोजन की बर्बादी एक तरह से हमारे पर्यावरण को भी अस्थिर करती है। निश्चित रूप से यह संकट भारत में भी विद्यमान है। खाद्य सुरक्षा के नजरिये से भोजन की बर्बादी एक बड़ी चुनौती बनी हुई है। भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण के अनुसार भारत में कुल भोजन का एक-तिहाई हिस्सा उपभोग से पहले खराब हो जाता है। एक अनुमान के अनुसार भोजन की यह बर्बादी एक साल में प्रतिव्यक्ति पचास किलो होने की आशंका है।

दरअसल, संयुक्त राष्ट्र की एक अन्य रिपोर्ट भारत में कुपोषण से जुड़े संकट को भी उजागर करती है। जिसमें बताया गया है कि देश की 74 फीसदी आबादी स्वस्थ आहार का खर्च वहन नहीं कर सकती। ऐसे में भोजन का एक-तिहाई हिस्सा बर्बाद होना नैतिक अपराध ही है। वहीं दुनिया के अन्य देशों की तरह भारत में भी खाद्य उत्पादन और अपशिष्ट से जुड़े ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन पर्यावरण पर प्रतिकूल असर डाल रहा है। दरअसल, कचरे के ढेरों में खराब खाद्यान्नों के अंश विघटित होने से ग्लोबल वार्मिंग के वाहक मीथेन गैस का उत्सर्जन करते हैं। वैश्विक संगठनों का आग्रह है कि दुनिया में खाद्य प्रणालियों में पूर्ण बदलाव लाएं। साथ ही समान वितरण को प्राथमिकता देने को प्रेरित किया जाना चाहिए। ऐसे में जब देश में लाखों लोग रोटी के लिये संघर्ष कर रहे हों, भोजन की बर्बादी नैतिक दृष्टि से अपराध ही है। इस संकट से उबरने के लिये राष्ट्रीय स्तर पर व्यापक रणनीति की जरूरत है। जिसके लिये जागरूकता अभियान चलाने, नीतिगत उपायों में बदलाव लाने तथा समुदाय संचालित पहलों को एकीकृत प्रयासों से मूर्त रूप देने का प्रयास होना चाहिए। वहीं सरकारी हस्तक्षेप से अपशिष्ट को कम करने के लिये नियम बनाने की भी जरूरत है। समाज के स्तर पर भोजन को बर्बाद होने से रोकने के लिये दीर्घकालीन प्रयासों को प्रोत्साहित करना होगा। ऐसी व्यवस्था बनाएं, जिसमें सरकारी एजेंसियों, स्वयंसेवी संगठनों व निजी उद्यमों के मध्य बेहतर तालमेल से बचे भोजन के पुनर्वितरण की कुशल व्यवस्था बन पाये।

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