अपनों पर बमबारी
पाक सत्ता के कुशासन व भेदभाव से त्रस्त उसके कई राज्यों के नागरिक दमन के खिलाफ मुखर विरोध जताते रहे हैं। जिसमें पाकिस्तान के अशांत उत्तर-पश्चिमी प्रांत, खैबर पख्तूनख्वा के लोग भी शामिल हैं। गरीबी-महंगाई और हाल के हफ्तों में भारी बाढ़ की तबाही झेल रहे खैबर के असहाय लोग अब एक क्रूर सैन्य अभियान का भी दंश झेल रहे हैं। कहने को तो पाक सेना के इशारे पर मुहिम चला रही सरकार का कहना है कि खैबर पख्तूनख्वा में प्रतिबंधित तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान के आतंकवादियों का सफाया करने के लिये यह अभियान चलाया जा रहा है। बताया जाता है कि तिराह घाटी में पाकिस्तानी वायु सेना के विमानों द्वारा किए गए बम विस्फोटों में महिलाओं-बच्चों समेत करीब तीस नागरिकों की जान चली गई है। इस घटना के बाद पाकिस्तान के मानवाधिकार आयोग ने अफगानिस्तान सीमा के पास हुए हवाई हमलों की जांच की मांग की है। हमेशा की तरह की झूठी कहानी गढ़ने में मशहूर पाकिस्तानी पुलिस की दलील है कि इन मौतों के लिये उस परिसर में हुए विस्फोट जिम्मेदार हैं, जहां टीटीपी ने विस्फोटक सामग्री जमा कर रखी थी। दरअसल, भारत ने अंतर्राष्ट्रीय मंचों के द्वारा पाकिस्तान के आतंकवाद फैलाने के मंसूबों को बेनकाब किया है। जिसके जवाब में पाकिस्तान सेना के फील्ड मार्शल असीम मुनीर यह दिखावा करने पर तुले हुए हैं कि उनका देश आंतकवाद का पोषक नहीं बल्कि इससे पीड़ित देश है। दरअसल, पहलगाम आतंकी हमले के बाद भी पाकिस्तान में यह चाल खूब चली है क्योंकि अंतर्राष्ट्रीय समुदाय भारतीय धरती पर हुए इस भयावह नरसंहार के लिये पाकिस्तान को दोषी ठहराने से कतरा रहा है, भले ही इसके स्पष्ट संकेत हों। दरअसल, कथित रूप से आतंकवाद से निपटने के बहाने, पाकिस्तान का सैन्य और राजनीतिक नेतृत्व खैबर पख्तूनख्वा में पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ यानी पीटीआई सरकार को कमजोर करने की भरसक कोशिश कर रहा है। वास्तव में पाक हुकमरान अतीत में भी सेना के इशारे पर विपक्षी राजनीतिक दलों के दमन के लिये अभियान चलाते रहे हैं।
उल्लेखनीय है कि पाकिस्तान की मुख्य विपक्षी पार्टी पीटीआई अपने संस्थापक, पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान के दो साल से जेल में बंद होने के विरोध में पहले ही संघर्ष जारी रखे हुए है। पूरे देश में पीटीआई कार्यकर्ताओं को जेलों में डाला जा रहा है। दरअसल, पाकिस्तान की सत्ता में काबिज वर्ग विशेष के खिलाफ प्रतिरोध का स्वर मुखर करने वाले प्रांतों में लोगों के सफाये के लिये सुनियोजित अभियान चलाये जाते रहे हैं। खैबर पख्तूनख्वा में लंबे समय से मानवाधिकारों के हनन और लोगों के जबरन विस्थापन के खिलाफ लगातार विरोध के स्वर उभरते रहे हैं। अब इस हवाई हमले ने पाकिस्तान सरकार के नापाक मंसूबों को सारी दुनिया के सामने उजागर कर दिया है, जो अपने सोते हुए नागरिकों पर बम बरसाकर खतरनाक इरादों को अंजाम दे रही है। विडंबना यह है कि जो पाकिस्तान भारत के खिलाफ दशकों तक सीमा पार से आतंकवाद का प्रायोजक रहा है, अब यह चाहता है कि तालिबान सरकार सुनिश्चित करे कि अफगानिस्तान की धरती का इस्तेमाल आतंकवादी गतिविधियों के लिये न हो। इसमें दो राय नहीं कि पाकिस्तान सेना प्रमुख असीम मुनीर के दुस्साहस के चलते ही अफगानिस्तान के साथ उसके देश के संबंधों को नुकसान पहुंचा है। पाकिस्तान के इस टकराव के रवैये के कारण पाकिस्तान व अफगानिस्तान के रिश्ते सबसे खराब दौर में पहुंच गए हैं। निस्संदेह, इससे क्षेत्रीय शांति और स्थिरता खतरे में पड़ गई है। सही मायनों में खैबर पख्तूनख्वाह में मची तबाही पर भारत को पाक पर आंख बंद करके विश्वास करने वाले चीन, अमेरिका और तुर्की जैसे देशों को इस हकीकत से अवगत कराना चाहिए। पाकिस्तान द्वारा अपने ही नागरिकों पर किए जा रहे अत्याचारों पर आंख मूंद लेने के लिए भारत को इन देशों को आड़े हाथ लेना चाहिए। समय-समय पर भारत व पाकिस्तान को लेकर दोहरे मापदंड अपनाने वाले इन देशों को हकीकत से अवगत होना जरूरी भी है। उन्हें याद रखना चाहिए कि वे भारत व पाकिस्तान को एक तराजू में रखकर नहीं तोल सकते हैं।