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शांति के लिये समझौता

ईमानदारी से हो गाजा में युद्धविराम का पालन
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यह सुखद ही कि करीब डेढ़ वर्ष से जारी इस्राइल-हमास संघर्ष खत्म करने के लिये युद्धविराम पर सहमति बन गई है। भले ही इस समझौते के लिये अमेरिका में सत्ता परिवर्तन के बीच संघर्ष समाप्ति का श्रेय लेने की होड़ हो, लेकिन गाजा के लोग जिस मानवीय त्रासदी से जूझ रहे थे, उन्हें जरूर इससे कुछ राहत मिलेगी। संयुक्त राष्ट्र के तमाम प्रयासों व मध्यपूर्व के इस्लामिक देशों की बार-बार की गई पहल के बावजूद अब तक शांति वार्ता सिरे न चढ़ सकी थी। जिसकी कीमत करीब पचास हजार लोगों ने अपनी जान देकर चुकायी। इस युद्ध से गाजा के विभिन्न क्षेत्रों में जो तबाही हुई है, उससे उबरने में दशकों लग सकते हैं। निस्संदेह, इस्राइल व हमास के बीच युद्ध विराम पर सहमति होना महत्वपूर्ण है, लेकिन जब तक समझौता यथार्थ में लागू होता न नजर आए, तब कुछ भी कहना जल्दीबाजी होगी। हालांकि, अक्तूबर, तेईस में हमास के हमले से आहत इस्राइल कई मोर्चों पर लगातार युद्ध से थक चुका है, लेकिन अभी अरब जगत उसकी विश्वसनीयता पर सवाल उठा रहा है। ऐसी आशंका इसीलिए भी है कि कई बार बातचीत अंतिम दौर पर पहुंचते-पहुंचते पटरी से उतरती गई है। बात और घात लगातार चलते रहे हैं। अब भविष्य में देखना होगा कि दोनों पक्ष समझौते के अमल के प्रति कितनी ईमानदारी से प्रतिबद्ध नजर आते हैं। हालांकि, अपने बंधकों की जल्द रिहाई को लेकर इस्राइल के विपक्षी राजनीतिक दलों व मंत्रिमंडल में भी मतभेद उभर रहे हैं, लेकिन इतनी लंबी लड़ाई के बाद थक चुकी इस्राइली सेना को भी राहत देने की मांग की जाती रही है। बहरहाल, युद्ध विराम के प्रश्न पर इस्राइल व हमास के बीच सहमति से शांति की उम्मीदें प्रबल हुई हैं। जहां एक ओर अमेरिका में वर्तमान राष्ट्रपति जो बाइडेन व नव निर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप समझौते के लिए श्रेय ले रहे हैं, वहीं ईरान इसे फलस्तीनी प्रतिरोध की जीत बता रहा है।

दरअसल, हालिया समझौते में इस्राइली सेना की गाजा से वापसी, चरणबद्ध तरीके से इस्राइली बंधकों व फलस्तीनी कैदियों की रिहाई और गाजा में पुनर्निर्माण पर सहमति बनी है। इसके साथ ही गाजा के विस्थापितों को वापस लौटने की अनुमति भी दी जाएगी। अभी गाजा में मानवीय सहायता पहुंचाने के मार्ग में आने वाली बाधाओं को भी दूर किया जाना है। दरअसल, सात अक्तूबर 2023 को हमास के क्रूर हमलों में इस्राइल के बारह सौ लोग मारे गए थे और करीब ढाई सौ लोगों को हमास के लड़ाके सौदेबाजी के लिये बंधक बनाकर ले गए थे। साफ था कि इस अपमानजक घटना का इस्राइल प्रतिशोध लेगा,लेकिन संघर्ष करीब डेढ़ वर्ष तक चलेगा, इसकी उम्मीद किसी को नहीं थी। हालांकि, कुछ इस्राइली बंधक रिहा किए गए, कुछ युद्ध के बीच मारे गए, लेकिन बचे बंधकों की रिहाई का भारी दबाव नेतन्याहू सरकार पर लगातार बना रहा। हमास संचालित स्वास्थ्य मंत्रालय दावा कर रहा है कि इस्राइली हमलों में अब तक पचास हजार लोग मारे गए हैं। संघर्ष में वास्तव में हमास के कितने लड़ाके मारे गए यह कहना कठिन है, लेकिन बड़ी संख्या में बच्चों-महिलाओं ने युद्ध में जान गवांई। एक अनुमान के अनुसार गाजा संघर्ष में उपजी मानवीय त्रासदी में करीब बीस लाख लोग विस्थापित हुए हैं। इस्राइली हमलों में अस्पताल-स्कूल भी निशाना बने, जिन्हें शरणार्थियों की सुरक्षित पनाहगाह माना जाता है। इस्राइल पर अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय में युद्ध अपराध तक के आरोप लगाए गए। बहरहाल, जब लंबे समय के बाद शांति की स्थितियां बन रही हैं तो अंतर्राष्ट्रीय बिरादरी व संयुक्त राष्ट्र का दायित्व बनता है कि समझौते के क्रियान्वयन की निगरानी की जाए। ताकि मध्यपूर्व में स्थायी शांति की राह मजबूत हो सके। निश्चित रूप से युद्ध शांति का विकल्प नहीं हो सकता। इस संघर्ष की शुरुआत भले हमास ने की हो, लेकिन इसकी सबसे बड़ी कीमत उन लोगों ने चुकाई, जो इसके लिये जिम्मेदार नहीं थे। हालांकि, इस बात को लेकर शंकाएं व्यक्त की जा रही हैं कि इस समझौते से फलस्तीनी संकट का स्थायी समाधान हो सकेगा। बहरहाल,युद्ध की त्रासदी व मौसम की मार झेल रहे फलस्तीनियों को को कुछ राहत जरूर मिलेगी।

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