बेहद जटिल सामाजिक परिस्थितियों वाले देश के बड़े राज्य बिहार का महासंग्राम आखिरकार राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन ने जीत ही लिया। एनडीए ने बिहार में विपक्ष के महागठबंधन को करारी शिकस्त दी है। यह जीत पिछले साल महाराष्ट्र में भाजपा के नेतृत्व वाली महायुति गठबंधन द्वारा महाविकास अघाड़ी को करारी शिकस्त देने जैसी ही है। चौंकाने वाली बात यह है कि बिहार में भारतीय जनता पार्टी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी है और उसने उस राज्य में अपनी स्थिति मजबूत की है, जहां अभी तक उसका अपना मुख्यमंत्री नहीं रहा है। बिहार के सबसे लंबे समय तक मुख्यमंत्री रहे नीतीश कुमार के नेतृत्व वाली जनता दल यूनाइटेड यानी जदयू ने तमाम मुश्किलों को पार करते हुए सम्मानजनक दूसरा स्थान हासिल किया है। चुनाव से पहले नीतीश कुमार महागठबंधन के नेताओं के निशाने पर थे। उन्हें थका हुआ, बीमार और रिटायर होने वाला राजनेता बताया जा रहा था। कहा जा रहा था कि भाजपा ने नीतीश कुमार को पार्टी के मुख्यमंत्री के चेहरे के रूप में पेश नहीं किया। नीतीश कुमार के जो आलोचक उनकी विदाई लेख लिखने की जल्दी में थे, उन्हें चुनाव परिणामों के बाद मुंह की खानी पड़ रही है। जनता के फैसले ने बीते 2020 के विधानसभा चुनाव मे सबसे ज्यादा सीटें जीतने वाले राष्ट्रीय जनता दल यानी राजद को इस बार तीसरे स्थान पर पहुंचा दिया है। बहरहाल, इस विधानसभा चुनाव के एकतरफा नतीजों का एक निष्कर्ष यह भी है कि सत्ता के लिये भाजपा व जदयू को एक साथ ही रहना होगा। जैसे कि नीतीश के पाला बदलने के चलते उन्हें पलटू राम की संज्ञा दी जाती थी, उसकी संभावना अब नजर नहीं आती। यानी नीतीश कुमार अब पलटू राम वाले अंदाज में नहीं चल सकते। उन्हें इस बात की तसल्ली मिल सकती है कि भारतीय जनता पार्टी, जिसके पास लोकसभा में पूर्ण रूप से बहुमत नहीं है, वह केंद्र में सरकार बचाने के लिये भविष्य में जदयू पर निर्भर रहेगी।
दरअसल, राजनीतिक पंडित कयास लगाते रहे हैं कि नीतीश कुमार को किनारा करने की भगवा पार्टी की कोई भी कोशिश सत्तारूढ़ गठबंधन के लिये मुश्किल खड़ी कर सकती है। वहीं कहा जाता रहा है कि चिराग पासवान एनडीए की कमजोरियों का फायदा उठाने से नहीं हिचकिचाएंगे। हालांकि, भाजपा नीतीश कुमार को बाहर करने के प्रलोभन का ज्यादा देर विरोध नहीं कर पाएगी, जैसा उसने महाराष्ट्र में शिवसेना के एकनाथ शिंदे के साथ किया था। बहरहाल, एक बात तो तय है कि राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन की जीत ने महागठबंधन को तार-तार कर दिया है। साथ ही पदयात्रा व अपने बयानों से सुर्खियों में रहने वाले प्रशांत किशोर की नई सुबह की उम्मीदों पर पानी फेर दिया है। बिहार चुनाव में पस्त हुए महागठबंधन के दलों के सामने अगले साल विपक्ष शासित राज्य पश्चिम बंगाल, केरल और तमिलनाडु में होने वाले विधानसभा चुनावों से पहले फिर से संगठित होने की एक बड़ी चुनौती होगी। ये वे तीन विपक्षी दुर्ग हैं जिनमें सत्ता हासिल करने के लिये भारतीय जनता पार्टी कोई कसर नहीं छोड़ेगी। बहरहाल, एक बात तो माननी पड़ेगी बिहार में राजग की अप्रत्याशित जीत सारथी नरेंद्र मोदी की छवि, गृहमंत्री अमित शाह की नीति-कूटनीति, भाजपा के मजबूत संगठन, नीतीश कुमार की सामाजिक कल्याण की नीतियों की देन है। वहीं ऐन चुनाव से पहले एकजुट हुए महागठबंधन की विसंगतियां ही उसके पराभाव का कारक बनी। बहरहाल, राजग की महिलाओं को आर्थिक संबल की घोषणाओं, नीतीश की शराबबंदी आदि नीतियां महिला मतदाताओं को रिझाने में कामयाब रही हैं। यही वजह है कि महिला मतदाताओं ने इस विधानसभा चुनाव में बढ़-चढ़कर मतदान किया। यह प्रतिशत बिहार के मतदान इतिहास में रिक़ॉर्ड बनाने वाला था और चुनाव परिणाम भी उतने ही अप्रत्याशित रहे। बहरहाल, एक बार फिर जनतंत्र की भूमि ने अप्रत्याशित चुनाव परिणामों से देश को चौंकाया है। चुनाव परिणाम सामने आने के बाद दिल्ली स्थित भाजपा कार्यालय में कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए कहा नरेंद्र मोदी ने कहा भी कि जिस एमवाई समीकरण को विपक्ष ने संकीर्णताओं के साथ पेश किया था, भाजपा ने उस एमवाई समीकरण को सकारात्मक दृष्टि से महिला व युवा गठजोड़ में तब्दील कर दिया।

