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अडानी की मुश्किलें

मामले की पारदर्शी जांच की जरूरत
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एक बार फिर अडानी समूह की विश्वसनीयता को लेकर सवाल खड़े हुए हैं। हालांकि, समूह ने हिंडनबर्ग के तीखे हमलों का मुकाबला बखूबी किया था, लेकिन इस बार उसे जटिल विषम परिस्थितियों का सामना करना पड़ रहा है। अमेरिकी अभियोजकों द्वारा दुनिया के सबसे अमीर लोगों में शुमार गौतम अडानी पर कारोबारी हितों के लिये रिश्वत देने के आरोप लगाये गए हैं। जिसके चलते समूह की कंपनियों के शेयरों में गिरावट देखी गई है। हालांकि, कारोबारी समूह ने रिश्वतखोरी और धोखाधड़ी के आरोपों को निराधार कहकर खारिज किया है। लेकिन अब अडानी समूह के पास लंबी कानूनी लड़ाई लड़ने के लिये खुद को तैयार करने के अलावा कोई विकल्प नजर नहीं आता। पहले से ही विपक्ष के निशाने पर रहने वाले गौतम अडानी और केंद्र सरकार के मुखिया के चर्चित रिश्तों को लेकर इस विवाद ने विपक्ष को एक नया हथियार दे दिया है। बहुत संभव है संसद के शीतकालीन सत्र में इस मुद्दे पर जमकर हंगामा हो। वहीं बचाव में उतरी भाजपा ने विपक्षी दलों के शासित राज्यों में अधिकारियों की बड़ी रिश्वतखोरी के मामलों की याद दिलायी। जबकि यह मामला भारत में रिश्वत देने से जुड़ा है तो इसकी तह तक जाने के लिये सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में जांच वक्त की जरूरत है। निस्संदेह ऐसी किसी जांच के लिये न केवल केंद्र और राज्यों के बीच बल्कि भारत व अमेरिकी अधिकारियों के बीच बेहतर तालमेल की जरूरत होगी। उल्लेखनीय है कि अडानी समूह द्वारा कथित रूप से स्टॉक बाजार में हेराफेरी के कथित आरोपों की भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड यानी सेबी द्वारा जांच की जा रही है। लेकिन सेबी की विश्वसनीयता को लेकर भी तब सवाल उठने लगे थे, जब हिंडनबर्ग द्वारा खुलासा किया गया था कि सेबी अध्यक्ष व उनके पति की विदेशों में कर वंचना के लिये चलायी जा रही अडानी समूह की ऑफशोर कंपनियों में हिस्सेदारी है। ऐसे में इस मामले में सेबी द्वारा निष्पक्ष और पारदर्शी जांच की उम्मीद पर भी सवाल उठेंगे।

इसके अलावा तमाम तरह के सवाल अमेरिकी अदालत द्वारा उठाये मुद्दों को लेकर सामने हैं। निस्संदेह, भारत सरकार को भी इस मामले में स्थिति स्पष्ट करने की जरूरत है। ऐसे में सवाल उठना स्वाभाविक है कि अमेरिका में लगे आरोपों का अडानी समूह के अंतर्राष्ट्रीय निवेश पर कितना प्रभाव पड़ेगा। निश्चित रूप से अमेरिका में आपराधिक आरोप तय होना समूह के लिये एक बड़ा झटका है। लेकिन सवाल यह भी है कि भारत में दूसरे नंबर के अमीर व्यक्ति अडानी अमेरिका की नियामक कंपनियों व अदालत के निशाने पर क्यों हैं। निश्चित रूप से पिछले दशक में गौतम अडानी समूह ने अंतर्राष्ट्रीय बंदरगाहों से लेकर पावर सेक्टर तक में तेजी से अपना कारोबार बढ़ाया है। वहीं दूसरी ओर गुरुवार को अडानी समूह ने इन आरोपों का खंडन किया कि अडानी ग्रीन एनर्जी ने सोलर एनर्जी कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया से आंध्र प्रदेश में आठ गीगावॉट सोलर पावर सप्लाई करने के टेंडर हासिल करने के लिये अधिकारियों को मोटी रिश्वत दी थी। बहरहाल, इस प्रकरण से अडानी समूह की वैश्विक महत्वाकांक्षा को झटका लग सकता है। रेटिंग एजेंसी मूडीज के मुताबिक भी, अडानी समूह के चेयरमैन व सीनियर अधिकारियों के खिलाफ धोखाधड़ी के आरोप तय होने के बाद समूह की कंपनियों की रेटिंग पर नकारात्मक प्रभाव होगा। हाल ही में अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में डोनाल्ड ट्रंप को बधाई देते हुए गौतम अडानी ने अमेरिका के ऊर्जा व इन्फ्रास्ट्रक्चर सेक्टर में दस अरब डॉलर के निवेश की प्रतिबद्धता जतायी थी। जिसके अब खटाई में पड़ने की आशंका है। निश्चित रूप से भारत के रूस से गहरे होते रिश्तों व चीन से सुधरते संबंधों के बीच अमेरिका व कनाडा समेत पश्चिमी देशों में भारत को लेकर वक्र दृष्टि देखी जा रही है। अडानी प्रकरण को भी अमेरिका व भारत के बीच तल्खी के आलोक में देखा जा रहा है। अमेरिका ने इससे पहले आरोप लगाया था कि भारत सरकार के एक कर्मचारी ने न्यूयॉर्क में एक अमेरिकी नागरिक व सिख अलगाववादी नेता गुरपतवंत सिंह पन्नू को मारने की साजिश रची थी। बहरहाल, अब देखना होगा कि ट्रंप की ताजपोशी के बाद दोनों देशों के रिश्ते कैसे रहते हैं।

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