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आत्मघात की जवाबदेही

छात्र जीवन संकट सिस्टम की नाकामी
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निस्संदेह, किसी छात्र की आत्महत्या हमारी शिक्षा व्यवस्था की संस्थागत विफलता ही है। यदि शिक्षा व्यवस्था सतर्क-संवेदनशील रहे तो इन संभावनाओं को असमय काल-कवलित होने से बचा सकते हैं। आंध्रप्रदेश की एक 17 वर्षीय नीट छात्रा की संदिग्ध मौत के मामले में सुनवाई करते हुए, सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस संदीप मेहता की पीठ ने छात्रों में आत्महत्या के बढ़ते मामलों पर मार्गदर्शक टिप्पणियां की हैं। छात्रों का जीवन बचाने हेतु इस सुप्रीम गाइडलाइंस में पीठ ने देशभर के स्कूल, कालेजों और कोचिंग संस्थानों के लिये गाइडलाइंस जारी की। दरअसल, न्यायाधीश वर्ष 2022 के लिए एनसीआरबी की उस रिपोर्ट से व्यथित थे, जिसमें दर्शाया गया कि इस साल आत्महत्या करने वाले 1,70,924 लोगों में 13,044 छात्र भी शामिल थे। कोर्ट ने कहा कि शिक्षा का मकसद जानकारी देना ही नहीं है, इसका उद्देश्य जीवन जीने की कला सिखाना भी है। निस्संदेह, शिक्षा का मकसद छात्रों का बौद्धिक, भावनात्मक, नैतिक तथा आध्यात्मिक उन्नति होना चाहिए। कोर्ट का मानना था कि शिक्षण संस्थाएं छात्रों के मानसिक स्वास्थ्य को अपनी प्राथमिकताएं बनाएं। यह भी कि मानसिक स्वास्थ्य, अनुच्छेद 21 के तहत मिले जीवन के अधिकार का अभिन्न अंग है। पीठ ने देश के सभी शिक्षण संस्थानों के लिये पंद्रह दिशा-निर्देश तय किए हैं, जो इस बाबत कानून बनाने तक ये गाइडलाइंस बाध्यकारी होंगी।

नि:संदेह, सुप्रीमकोर्ट पीठ के ये दिशा-निर्देश उपचारक साबित हो सकते हैं। इसमें प्रत्येक शिक्षण संस्थान को मानसिक स्वास्थ्य नीति बनाने और विशेषज्ञ नियुक्त करने के निर्देश हैं। राष्ट्रीय आत्महत्या रोकथाम नीति व कार्यक्रमों को इस नीति में शामिल करना होगा। साथ ही जहां सौ से अधिक छात्र हों, वहां मनोवैज्ञानिक व काउंसलर नियुक्त करने होंगे। छात्रों में हीन भावना न आए, इसलिये कोचिंग संस्थान शैक्षिक प्रदर्शन के आधार पर कोई बैच न बनाएं। शिक्षकों व स्टाफ को वर्ष में दो बार छात्रों में आत्महत्या के संकेत पकड़ने व मानसिक स्वास्थ्य के बाबत प्रशिक्षण देना अनिवार्य होगा। सुनिश्चित हो कि समाज के कमजोर वर्ग के छात्रों व शारीरिक अपूर्णता से जूझ रहे छात्रों के साथ किसी तरह का भेदभाव न होने पाए। शिक्षण संस्थान व कोचिंग के परिसर में रैगिंग, यौन उत्पीड़न तथा किसी तरह के भेदभाव से निपटने के लिये समिति बने। साथ ही पीड़ितों की सुरक्षा सुनिश्चित की जाए। इसके अलावा अभिभावकों को सचेत किया जाए कि वे छात्रों पर अंकों का दबाव न बनाएं और मानसिक तनाव के प्रति संवेदनशील रहें। संस्थान सालाना आधार पर मानसिक स्वास्थ्य संबंधी कार्रवाई की रिपोर्ट हर साल यूजीसी को दें। इसके साथ ही खेल, कला व व्यक्तित्व विकास पाठ्यक्रम का हिस्सा हो। सतर्कता हेतु हॉस्टलों को सुरक्षित बनाने तथा छत, बालकनी, पंखे जैसे स्थानों पर सेफ्टी डिवाइस लगाने के निर्देश दिए गए हैं। निस्संदेह, इन निर्देशों के अनुपालन से कई अनमोल जिंदगियां बचायी जा सकती हैं।

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