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आस्था का अनूठा संगम

डिजिटल तकनीक से लैस पहला महाकुंभ
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प्रयागराज के संगम पर आयोजित होने वाला दुनिया का सबसे बड़ा धार्मिक समागम आज मकर संक्रांति पर पहले शाही स्नान से परवान चढ़ेगा। विराट आस्था का प्रतीक यह महापर्व सदियों से पूरी दुनिया के लिये कौतुक का विषय रहा है। ह्वेनसांग से लेकर दुनिया के चोटी के पत्रकारों ने आस्था के इस सैलाब को अवर्णनीय बताया है। पूरी दुनिया हैरत में रहती है कि कैसे बिना चिट्ठी-तार के करोड़ों लोग महाकुंभ में जुटते हैं। संतों के अखाड़े और श्रद्धालुओं का सैलाब महाकुंभ को विशिष्ट बनाता है। देश के कोने-कोने से जुटे कल्पवासी गंगा,जमुना और अदृश्य सरस्वती के संगम पर मोक्ष की आकांक्षा से जुटते हैं। अनुमान है कि इस बार 40 से 45 करोड़ लोग डेढ़ माह तक चलने वाले महाकुंभ में जुटेंगे। यूं तो पूर्णकुंभ व अर्धकुंभ का आयोजन होता है लेकिन महाकुंभ का आयोजन सिर्फ प्रयागराज में ही आयोजित होता है, जिसके लिये उ.प्र. सरकार ने इस बार सात हजार करोड़ रुपये का बजट रखा है। सही मायनों में ये शासन की प्रशासन क्षमता की भी परीक्षा है कि कैसे 25 सेक्टरों में बंटे इस आयोजन को विघ्न-बाधाओं से मुक्त बनाया जाता है। राजयोग स्नान को शाही स्नान कहा जाता है। पहला शाही स्नान आज मकर संक्रांति को, दूसरा 29 जनवरी को मौनी अमावस्या और तीसरा शाही स्नान तीन फरवरी को बसंत पंचमी को आयोजित होगा। 14वीं से 16वीं सदी के बीच आम लोगों व संतों के बीच टकराव टालने के लिये शाही स्नान की परंपरा शुरू हुई थी। कालांतर संतों व अखाड़ों को विशिष्ट सम्मान देने के लिये हाथी, घोड़ों व रथों पर पेशवाई निकाली जानी शुरू हुई, जिसे शाही स्नान की संज्ञा दी गई। सोमवार से शुरू होकर 26 फरवरी तक चलने वाले इस महाकुंभ स्थल पर हर तरफ तंबुओं में बसा एक शहर नजर आ रहा है। जिसकी आबादी दुनिया के कई देशों से अधिक होगी। आस्था के इस संगम पर उत्तर प्रदेश सरकार की प्रशासन क्षमता की भी अगले कुछ सप्ताहों में परीक्षा होने वाली है।

यूं तो महाकुंभ के सुचारू संचालन के लिये चप्पे-चप्पे पर बैरिकेडिंग है, सुरक्षा बलों का जमावड़ा है, वज्रवाहन, ड्रोन, बम निरोधक दस्तों के साथ ही एनएसजी के सदस्य मौजूद हैं। लेकिन पहली बार महाकुंभ की सबसे बड़ी खासियत इसका डिजिटल तकनीक से संचालन है। इसीलिए इस महाकुंभ को डिजिटल महाकुंभ भी कहा जा रहा है। जिसके लिये महाकुंभ मेला ऐप, एआई चैटबॉट और क्यूआर कोड का सहारा लिया जा रहा है ताकि श्रद्धालुओं को परेशानी का सामना न करना पड़े। नई तकनीक के माध्यम से खोये लोगों को तलाशने की व्यवस्था की गई है। प्रशासन ने विभिन्न राज्यों से आने वाले श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए बारह भाषाओं वाला महाकुंभ मेला ऐप उपलब्ध कराया है। यह ऐप यात्रियों को अपनी योजना को बेहतर ढंग से संचालित करने में मदद करेगा। जिसमें टेंट सिटी की जानकारी, गूगल नेविगेशन, पर्यटकों की मार्गदर्शिका, आपातकालीन सेवाओं की जानकारी श्रद्धालुओं को दी जा सकेगी। इसमें रोज के अपडेट्स भी शामिल होंगे। उम्मीद है कि इस बार बनाये गए दस डिजिटल खोया-पाया केंद्र बिछुड़ने वालों को परिवार से मिलाने में मददगार होंगे। जिसकी जानकारी मेला क्षेत्र के कोने-कोने मे लगी एलसीडी पर उपलब्ध रहेगी। साथ ही इस कार्य में सोशल मीडिया में फोटो व वीडियो डालकर भी मदद की जाएगी। वहीं यात्रियों की मदद के लिये कई तरह के क्यूआर कोड बनाए गए हैं। जिसमें हरे रंग के क्यूआर कोड के जरिये पुलिस,प्रशासन व अन्य आपातकालीन सेवाओं के सभी नंबरों को पाया जा सकेगा। इतना ही नहीं, मेला क्षेत्र में मैपिंग के लिये उत्तर प्रदेश सरकार ने गूगल से भी समझौता किया है। जिससे श्रद्धालु विभिन्न घाटों व मंदिरों तक आसानी से पहुंच सकेंगे। जिसमें सैकड़ों एआई संचालित कैमरे खासे मददगार होंगे। वहीं दूसरी ओर मेले क्षेत्र की निगरानी में एआई तकनीक की मदद ली जा रही है। सुरक्षा के लिये एंटी ड्रोन तकनीक का भी उपयोग होगा। इस दौरान तेरह हजार विशेष ट्रेनों के संचालन और सात हजार बसों के जरिये श्रद्धालुओं की यात्रा सुगम बनायी जा रही है। उम्मीद है महाकुंभ का आयोजन निर्विघ्न संपन्न हो सकेगा।

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