जोखिमभरी शांति
अब भले ही अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप अपने दंभी तेवरों की तर्ज पर लाख दावे करते रहें कि गाजा युद्ध समाप्त हो गया है। मगर हकीकत है कि एक छोटी सी चिंगारी भी युद्ध को भड़का सकती है। एक हकीकत है कि दो साल से जारी युद्ध में जहां एक ओर भले ही गाजा पूरा तबाह हो गया हो, लेकिन इसके बावजूद हमास के लड़ाके पीछे हटने को तैयार नहीं दिखे। उनके पास ट्रंप के भारी दबाव व परिस्थितियों के चलते शांति समझौते को स्वीकार करने के अलावा कोई विकल्प बचा ही नहीं था। वहीं दो साल तक युद्ध लड़ते-लड़ते इस्राइली सेना में भी थकान देखी गई थी, साथ ही आतंरिक दबाव युद्ध रोकने के लिये प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू पर भी बराबर बना हुआ था। ट्रंप के बड़बोले दावों को पश्चिमी एशिया और शेष दुनिया बेशक गंभीरता से न लेती रही हो, लेकिन अब एक हकीकत सामने है कि उनके हस्तक्षेप ने गाजा में फिलहाल तोपों को शांत किया है। डोनाल्ड ट्रंप का सोमवार को इस्राइल में एक नायक जैसा स्वागत किया गया। अमेरिकी मध्यस्थता वाले युद्धविराम समझौते के बाद हमास ने आखिरकार शेष जीवित बचे बीस इस्राइली बंधकों को रिहा कर दिया। जिसके बाद इस्राइल में किसी बड़े उत्सव जैसा जश्न दिखा। बहरहाल, इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है कि अभी भी इस्राइल-हमास युद्धविराम समझौता नाजुक बना हुआ है। इसकी वास्तविक परीक्षा आने वाले दिनों में, बहुत संभव है कुछ हफ्तों में हो। इस संघर्षरत क्षेत्र में स्थायी शांति सुनिश्चित करने के लिये जरूरी है कि प्रमुख हितधारकों की ओर से गंभीर प्रयास लगातार होते रहें। वर्तमान समय में सबसे बड़ी चुनौती भूतहा खण्डहर में तब्दील हो चुके गाजा के पुनर्निर्माण की होगी। दो साल से लगातार जारी युद्ध के चलते यह इलाका मलबे के ढेर में तब्दील हो चुका है। कहना मुश्किल है कि आने वाले वक्त में इस्राइल की निरंकुशता पर किसी हद तक अंकुश लग पाता है, ताकि गाजा के लोग फिर से सामान्य जीवन की कोशिश में किसी हद तक सफल हो सकें।
दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति यह है कि इस्राइल और हमास के संघर्ष ने करीब बाइस लाख से अधिक लोगों को बेघर करके भुखमरी के कगार पर पहुंचा दिया है। ऐसे में दोनों पक्षों के लिये समझौते के पहले चरण को पूरी तरह से लागू करना बेहद जरूरी होगा। जिसमें बंधकों व कैदियों की रिहाई, गाजा में मानवीय सहायता को अनवरत जारी रखना और इस्राइली सेनाओं की गाजा के मुख्य शहरों से आंशिक वापसी सुनिश्चित करना भी शामिल है। यदि सब कुछ ठीक-ठाक रहा तो इसके बाद ही दूसरे चरण की बातचीत की प्रक्रिया शुरू हो सकती है। यह बेहद मुश्किल चुनौतियों वाला चरण होगा। इस दौरान कई संवेदनशील मुद्दे सामने होंगे। सवाल यह भी रहेगा कि लड़ाई खत्म होना एक स्थायी प्रक्रिया बन सकेगी। युद्ध समाप्ति के बाद घनी अाबादी वाले इलाके में शासन कैसे चलेगा? क्या समझौते के अनुरूप हमास की भूमिका प्रशासन में खत्म हो जाएगी? क्या वास्तव में हमास हथियार डाल देगा? हालांकि, तालियों की गड़गड़ाहट के बीच इस्राइली संसद में ट्रंप ने दावा किया है कि हमास उनकी निशस्त्रीकरण योजना के प्रावधानों का पालन करेगा। लेकिन इस चरमपंथी समूह ने फ़लस्तीन को राज्य का दर्जा मिलने से पहले इस संभावना से इनकार किया है। बताया जा रहा है कि ट्रंप एक अंतर्राष्ट्रीय निकाय का नेतृत्व करने वाले हैं, जो गाजा के शासन के लिये एक अस्थायी गैर-राजनीतिक समिति के कामकाज की देखरेख करेगा। निस्संदेह, इस भावनात्मक मुद्दे को राजनीतिक रूप से कुशलता पूर्वक संभालने की जरूरत है। निर्विवाद रूप से इस विवाद के पटाक्षेप के लिये दो-राज्य समाधान के लिये स्पष्ट समय-सीमा का अभाव एक कसक के रूप में महसूस किया जाता रहेगा। अमेरिकी राष्ट्रपति अपनी पीठ थपथपा सकते हैं, लेकिन देर-सवेर उन्हें अहसास हो सकता है कि उन्होंने इस बेहद जटिल मुद्दे के समाधान की कोशिशों में अपनी क्षमता से अधिक काम ले लिया है। दशकों से इस्राइल और फलस्तीनियों के संघर्ष की जड़ें गहरी हैं। जिसका स्थायी समाधान एक कल्पित प्रश्न जैसा ही है।