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राहतभरा कदम

रेपो दरों में कमी से आर्थिकी को गति
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कुछ ही समय पहले संसद में पेश सालाना बजट में सरकार ने आयकर को लेकर राहत की घोषणा की थी। अब एक हफ्ते बाद रिजर्व बैंक ने रेपो रेट कम करके आम आदमी को राहत देने की एक और कोशिश की है। आरबीआई गवर्नर संजय मल्होत्रा ने तीन दिवसीय मौद्रिक नीति समिति की बैठक के बाद रेपो रेट में 25 बेसिस प्वाइंट की कटौती की घोषणा की है। इस तरह अब रेपो रेट 6.5 प्रतिशत से घटकर 6.25 रह गया है। सही मायनों में भारतीय अर्थव्यवस्था की चुनौतियों और बदलते अंतर्राष्ट्रीय परिदृश्य के मद्देनजर केंद्रीय बैंक ने आखिरकार बहुप्रतीक्षित दर में कमी की दिशा में कदम बढ़ाया है। यह पिछले पांच वर्षों में कटौती की दिशा में उठाया गया पहला कदम है। जो आर्थिक विकास और मुद्रास्फीति को संतुलित करने की दिशा में केंद्रीय बैंक के दृष्टिकोण में आए बदलाव का संकेत भी देता है। निश्चित रूप से यह निर्णय ऐसे समय में सामने आया है जब देश की आर्थिक गति धीमी नजर आ रही है। वित्तीय वर्ष 2025-26 के लिये सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि दर का 6.7 फीसदी रहने का अनुमान लगाया जा रहा है। निश्चय ही यह वर्ष 2023-24 में हासिल की गई 8.2 प्रतिशत दर से काफी कम है। अब तक केंद्रीय बैंक मुद्रास्फीति पर अंकुश लगाने के मकसद से रेपो दर में कटौती से बचता रहा है। दरअसल, राजनीतिक नफा-नुकसान की दृष्टि से महंगाई का मुद्दा बेहद संवेदनशील होता है। विपक्ष महंगाई बढ़ने को सतारूढ़ दल की विफलता के रूप में दर्शाने की ताक में रहता है। हालांकि, अभी भी मुद्रास्फीति केंद्रीय बैंक के चार फीसदी के लक्षित मानक स्तर से ऊपर बनी हुई है। लेकिन धीमी पड़ती विकास दर की चुनौती को देखते हुए विकास व मुद्रास्फीति में संतुलन बनाने की कवायद की गई है। हालांकि, आरबीआई के गवर्नर संजय मल्होत्रा ने अपनी पहली नीतिगत समीक्षा में लंबे समय तक दर कटौती चक्र की अटकलों को खारिज किया है।

बहरहाल, देश के उद्योग जगत की हस्तियों ने रेपो दर में कटौती का स्वागत किया है। इसके बावजूद ऋण लेने की लागत पर इसके प्रभाव को लेकर अनिश्चितता बनी हुई है। हालांकि, कुछ आर्थिक मामलों के जानकार मानते हैं कि रेपो दर में कटौती बेहद कम है और इसका लाभ देर से मिलेगा। इसकी मूल वजह यह भी है कि बैंक, पहले से ही नकदी तरलता की कमी का सामना कर रहे हैं। संभव है कि बैंक लोन लेने वालों को तुरंत लाभ न दें। वैसे रेपो दर में कटौती के बाद उपभोक्ताओं के ऋण की ईएमआई कम होने की उम्मीद तो जगी है। इसके अलावा केंद्रीय बैंक ने मौद्रिक नीति से परे वित्तीय लेनदेन में साइबर सुरक्षा बढ़ाने के उपाय भी किए हैं। जिसमें बैंकों व गैर बैंकिंग वित्तीय संस्थानों के लिये अलग डोमेन की जरूरत को महसूस किया गया है। दरअसल,इसका मकसद डिजिटल धोखाधड़ी पर अंकुश लगाने और ऑनलाइन बैंकिंग में उपभोक्ताओं का विश्वास बढ़ाना है। निश्चित ही लगातार बढ़ते साइबर अपराधों को देखते हुए यह अतिरिक्त सुरक्षा उपाय स्वागत योग्य ही है। इसके अलावा आरबीआई गवर्नर संजय मल्होत्रा ने एक अप्रैल से लागू होने वाले प्रस्तावित कड़े बैंकिंग मानदंडों को स्थगित करने की बात कही है। जो उनके पूर्ववर्ती की तुलना में अधिक लचीले नियामक रुख का संकेत भी है। निश्चय ही यह कदम बैंकों के ऋण प्रवाह को बाधित किए बिना तरलता और पूंजी आवश्यकताओं के अनुकूलन के लिये अधिक समय प्रदान करता है। आज पूरी दुनिया आर्थिक अनिश्चितताओं के दौर से गुजर रही है। जिसके मूल में अस्थिर ऊर्जा कीमतें और ट्रंप के सत्ता में आने के बाद अमेरिका की आक्रामक मौद्रिक नीतियां हैं, जो नये जोखिम पैदा करती हैं। फिलहाल आरबीआई का सतर्क बदलाव वित्तीय स्थिरता को मुश्किल में डाले बिना विकास को गति देने के प्रयास को ही दर्शाता है। वहीं दूसरी ओर आम आदमी की आकांक्षा है कि उसे सस्ता होम व कार लोन मिले। जो ऋण लिया गया है उसकी ईएमआई कम हो तथा ऋण मुक्ति की अवधि कम हो सके। बहरहाल, मध्यवर्ग क्लास फील गुड की मनोदशा में है।

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