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वे साथ-साथ हैं,पर साथ नहीं रहते

लिविंग अपार्ट टुगेदर
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पारंपरिक विवाह की अवधारणा धीरे-धीरे बदल रही है जब पति-पत्नी एक ही छत के नीचे रहते-सोते थे। कई वर्किंग कपल के लिए यह व्यवस्था पुरानी पड़ रही है। नई व्यवस्था उभर रही है जिसे ‘लिविंग अपार्ट टुगेदर’ (एलएटी) कहा जाता है। इसमें कपल भावनात्मक रूप से प्रतिबद्ध होते हैं, लेकिन अलग-अलग घरों में रहते हैं। यह उन जोड़ों के लिए फायदेमंद है जो पर्सनल स्पेस चाहते हैं और अपने पैरेंट्स की केयर करना चाहते हैं।

बुआ जी आज चार वर्षों बाद मुंबई आई थीं। फ्लैट में आकर बैठीं तो उनके पैर छूकर अभिनव ने ही पानी का गिलास पकड़ाया। बुआ जी ने पूछा, ‘लगता है हमारी बहू मीता मायके गई है।’ अभिनव ने कहा, ‘नहीं, मीता अपने घर में है। अभी आ जाएगी।’ बुआ जी ने कहा, ‘अरे, अपने रूम में होगी। मैं ही मिल लेती हूं उससे।’ अभिनव ने समझाते हुए कहा, ‘नहीं , बुआ जी वह बगल वाली बिल्डिंग में अपने मम्मी-पापा के साथ रहती है। गांव से उन्हें यहीं बुला लिया क्योंकि वहां उनकी देखभाल करने वाला कोई नहीं था। मैं यहां मम्मी-पापा के साथ रहता हूं। वे अभी उज्जैन गए हैं। मैंने मीता को फोन कर दिया। वो आती ही होगी।’ बुआ जी को कुछ समझ नहीं आया, उन्हें लगा तलाक हो गया। तब तक मीता आ भी गई। उसने बुआ जी के पैर छुए और बोली , ‘बुआ जी आप आराम कर लो, मैं खाना बना देती हूं।’ बुआ जी बोलीं, ‘बेटा, मुझे समझ में नहीं आ रहा है कि तू और अभिनव अपने-अपने मम्मी-पापा के साथ अलग-अलग रहते हो तो क्या तुम्हारी शादी टूट गई? मीता हंसकर बोली, ‘नहीं बुआ जी, हम साथ-साथ ही हैं, पर साथ-साथ रहते नहीं हैं। हम दोनों पक्के वाले पति-पत्नी हैं। आजकल ऐसे एडजस्टमेंट जरूरी हो गए हैं। वीकेंड पर हम सब साथ ही रहेंगे।’

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आधुनिक समाज में लगता है जैसे पारंपरिक विवाह की अवधारणा धीरे-धीरे आउटडेटेड हो रही है जब पति-पत्नी साथ-साथ एक ही छत के नीचे रहते, खाते-पीते और सोते थे। अब कई वर्किंग कपल के लिए यह व्यवस्था पुरानी पड़ रही है। एक नई व्यवस्था उभर रही है, जैसे मीता और अभिनव की। इसे ‘लिविंग अपार्ट टुगेदर’ (एलएटी) कहा जाता है। यह एक ऐसा संबंध है जिसमें जोड़े भावनात्मक रूप से प्रतिबद्ध होते हैं, लेकिन अलग-अलग घरों में रहते हैं। पिछले दो दशकों में, अलग-अलग रहने वाले जोड़ों की संख्या में खासी वृद्धि हुई। अब कपल प्रैक्टिकल हो रहे हैं और वैवाहिक रिश्तों को बचाने के लिए रहने की व्यवस्था में बदलाव कर रहे हैं।

सुविधाजनक वैकल्पिक व्यवस्था

लिविंग अपार्ट टुगेदर की अवधारणा लॉन्ग डिस्टेंस रिलेशनशिप से अलग है। दूसरे वाली परिस्थितिजन्य व्यवस्था है जबकि लिविंग अपार्ट टुगेदर स्थाई और नियमित व्यवस्था है जो समझ-बूझकर चुनी गई वैकल्पिक जीवनशैली है। इसमें पति-पत्नी नियमित मिलते हैं, छुट्टियां साथ बिताते हैं लेकिन अपने दैनिक जीवन की जिम्मेदारियां अलग-अलग संभालते हैं। ऐसे कपल एक ही बिल्डिंग के दो अलग फ्लैटों में या एक ही शहर अथवा दूसरे शहर में भी रह सकते हैं। यह व्यवस्था उन जोड़ों के लिए फायदेमंद है जो पर्सनल स्पेस को महत्व देते हैं, वित्तीय आजादी चाहते हैं और अपने पैरेंट्स की केयर करना चाहते हैं। ऐसी व्यवस्था में सास-बहू की खिच खिच, पति-पत्नी के रोज झगड़े से बचा जा सकता है।

शायद इसीलिए वैश्विक स्तर पर, लिविंग अपार्ट टुगेदर की लोकप्रियता बढ़ रही है। यूरोप में करीब 10 फीसदी जोड़े यह मॉडल अपनाते हैं। भारत में भी, शहरी क्षेत्रों में यह ट्रेंड बढ़ रहा है, जहां वित्तीय क्षेत्र में महिलाओं की बढ़ती भागीदारी और माता-पिता की एकल संतानों ने इसे प्रोत्साहित किया है। जिन पैरेंट्स की सिर्फ बेटियां हैं, बुढ़ापे में उनकी देखभाल भी इसकी एक वजह है।

नया नहीं है कॉन्सेप्ट

इस अवधारणा की जड़ें 1970 के दशक में यूरोप में मिलती हैं। जब वहां प्रगतिशील विचारधारा के युवा महिला-पुरुषों ने पारंपरिक परिवार संरचना को चुनौती दी थी। इस विचार को 1982 में पिम डे ला पारा की फिल्म फ्रैंक एन ईवा के बाद अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पहचान मिली, जिसका एक संस्करण ‘लिविंग अपार्ट टुगेदर’ नाम से रिलीज़ हुआ था। आज, लिविंग अपार्ट टुगेदर का अर्थ ऐसे रोमांटिक रिश्ते से है जहां दोनों साथी अलग-अलग पते पर रहते हैं, लेकिन एक-दूसरे के साथ समय बिताते हैं।

1990 के दशक में, वैश्वीकरण के साथ यह कॉन्सेप्ट युवा जोड़ों में फैलने लगा। अमेरिका में, जहां तलाक बहुत ज्यादा होते हैं, लिविंग अपार्ट टुगेदर को विवाह की असफलता से बचने का तरीका माना जाने लगा। एक अध्ययन के अनुसार, अमेरिका में 7 फीसदी वयस्क इसी तरह की व्यवस्था में रहते हैं।

जबकि भारत में लिविंग अपार्ट टुगेदर यानी एलएटी का प्रवेश 2000 के बाद हुआ। यह वह दौर था जब आईटी बूम और महिलाओं की शिक्षा ने कैरियर-उन्मुख जीवनशैली को बढ़ावा दिया। मुंबई, बेंगलुरु और दिल्ली जैसे शहरों में, जहां कपल्स को नौकरियां अलग-अलग शहरों में मिलती हैं, लिविंग अपार्ट टुगेदर को अपनाने लगे। शहरी भारत में यह ट्रेंड तेजी से उभर रहा है। डिजिटल युग में वीडियो कॉलिंग ने दूरी कम कर दी है।

लिविंग अपार्ट टुगेदर चुनने के कारण

हर कपल के एलएटी सिस्टम को अपनाने के निजी कारण हो सकते हैं, मसलन : कैरियर : सबसे प्रमुख है कैरियर को अच्छी तरह निभाना। कई बार पति और पत्नी अलग-अलग शहरों में नौकरियां करते हैं। वे अलग रहकर प्रोफेशनल ग्रोथ पर फोकस करते हैं। पर्सनल स्पेस : पारंपरिक विवाह में, दैनिक जीवन की छोटी-छोटी बातें जैसे घरेलू कामों का बंटवारा, झगड़े पैदा कर सकती हैं। लेकिन एलएटी व्यवस्था में, प्रत्येक व्यक्ति अपनी आदतों के अनुसार जी सकता है। जैसे, अगर एक व्यक्ति सुबह जल्दी उठता है और दूसरा रात देर तक जागता है। लिविंग अपार्ट युवा जोड़ों को सास-ससुर के हस्तक्षेप से बचाता है। इसके अलावा, वृद्धावस्था में भी यह सिस्टम लोकप्रिय है, जहां विधवा या विधुर व्यक्ति नए साथी चुनते हैं लेकिन बच्चों की विरासत को प्रभावित नहीं होने देते। वित्तीय स्वतंत्रता : एलएटी सिस्टम में पति और पत्नी की अपनी-अपनी संपत्ति और खर्च अलग रहते हैं। रिश्तों में नयापन : दूरी प्यार को ताजा रखती है। चिकित्सक और लेखिका, एस्थर पेरेल, अपनी पुस्तक, ‘ मेटिंग इन कैप्टिविटी’ में बताती हैं कि हम अपने साथी को अपनी पूरी दुनिया बना लेते हैं। अपेक्षा रहती है कि वे हमारा सबसे अच्छा दोस्त, आर्थिक सहयोगी और भावनात्मक सहारे का मुख्य स्रोत बन जाएं। इससे संबंधों में खटास आने लगती है। जो कपल अलग रहते हैं, उन्हें दोबारा मिलने की उत्सुकता रहती है।

लिविंग अपार्ट टुगेदर की चुनौतियां

हमारे देश में एलएटी सिस्टम को अभी सामाजिक स्वीकृति नहीं मिली। यहां पति-पत्नी के अलग-अलग रहने को संदेह की नजर से देखा जाता है। वहीं दोनों के अलग-अलग रहने से धोखे का डर बढ़ सकता है, जिससे असुरक्षा की भावना पैदा हो सकती है। अलग-अलग रहने से पति-पत्नी में परस्पर और बच्चों के साथ उनकी इमोशनल बॉन्डिंग नहीं बन पाती। वहीं एक साथ रहने पर खर्च कम होता है जबकि अलग-अलग दो घरों में रहना काफी महंगा पड़ता है।

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