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हमें बहुत महंगी पड़ेगी एआई की ये प्यास

जलवायु परिवर्तन के कारण दुनिया जल संकट से जूझ रही है। वहीं इंटरनेट कंपनियों और अन्य शिक्षण संस्थानों के शोध अध्ययनों के मुताबिक, एआई के कारण पानी का फुटप्रिंट (इस्तेमाल) विस्फोटक ढंग से बढ़ रहा है। डिजिटल कंपनियां कृत्रिम बुद्धिमत्ता...

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जलवायु परिवर्तन के कारण दुनिया जल संकट से जूझ रही है। वहीं इंटरनेट कंपनियों और अन्य शिक्षण संस्थानों के शोध अध्ययनों के मुताबिक, एआई के कारण पानी का फुटप्रिंट (इस्तेमाल) विस्फोटक ढंग से बढ़ रहा है। डिजिटल कंपनियां कृत्रिम बुद्धिमत्ता को सक्रिय रखने के लिए जिन सर्वरों से अपनी सूचनाओं को गुजारती हैं, उन्हें ठंडा रखने के लिए सालाना अरबों गैलन पानी खर्च हो रहा है। मसलन, चैटजीपीटी से एक सवाल करने पर परोक्ष रूप से आधा लीटर पानी खर्च होता है। ऐसे में पानी का भयावह संकट पैदा हो सकता है।

कृत्रिम बुद्धिमत्ता हमारे ग्रह का पानी सोख रही है और हमें इसका अहसास तक नहीं हो रहा है।... यह चेतावनी एकदम नई नहीं है। बिटकॉइन जैसी क्रिप्टो करेंसी के विश्वव्यापी सृजन की हलचलों और कंप्यूटर के चौतरफा इस्तेमाल के साथ ऐसी आशंकाएं बीते दो-दशकों से हमारी चिंताओं में शामिल रही हैं। लेकिन एआई का जिस तेजी से वैश्विक इस्तेमाल बढ़ रहा है, चैटजीपीटी के अस्तित्व में आने के तीन साल के अंदर ही रोजगारों के स्वाह होने और हमारी अपनी बुद्धि के चौपट हो जाने जैसी तमाम चेतावनियों के साथ पानी का संकट सर्वव्यापी होने का खतरा वास्तविकता में मंडराता दिखाई देने लगा है। ऐसे मौके पर भविष्यदर्शी कवि-विचारक रहीमजी याद आते हैं, जिन्होंने कभी कहा था-

रहिमन पानी राखिये, बिन पानी सब सून।

पानी गये न ऊबरे, मोती, मानुस, चून।।

श्लेष अलंकार के प्रयोग वाले और जल और विनम्रता के महत्व पर बल देने वाले रहीमजी के इस दोहे में भले ही तकनीकी संदर्भ से पानी के विलोपन का कोई संकेत नहीं मिलता है। लेकिन यदि इसकी गंभीरता को एआई और अन्य तकनीकों के कारण पानी के सामने पैदा हो रहे संकट से जोड़ें, तो लगता है कि सच में चौतरफा पानी से घिरे पृथ्वी नामक हमारे ग्रह पर एक नई आपदा आने वाली है।

वैसे पानी के अपने संकट पहले से ही कई हैं। पानी का अतिशय दोहन, उसमें मिलाया जाने वाला रासायनिक प्रदूषण और जलवायु परिवर्तन की समस्या के कारण उसके स्रोतों का विलोपन और विचलन लगातार बढ़ रहा है। क्रिप्टो करेंसी और अन्य तकनीकी समाधानों में पानी और बिजली के भारी इस्तेमाल ने कम से कम वैज्ञानिक समुदाय को इस बाबत चिंता में डाला ही हुआ था कि अगर इन पर अंकुश नहीं लगा तो राम जाने क्या होगा। इस पर और अधिक विकट स्थिति तब पैदा हो गई, जब इस धरा पर 30 नवंबर 2022 को चैटजीपीटी नामक विधा ने जन्म ले लिया। बीते तीन सालों में चैटजीपीटी सरीखे सैकड़ों एआई प्रबंध अस्तित्व में आ चुके हैं और छात्रों के गृह कार्य, शोध प्रबंध और साधारण ईमेल लिखने, चित्र-वीडियो बनाने से लेकर तमाम जटिल तकनीकी कार्यों का संपादन कर रहे हैं। इन सब कार्यों में इंटरनेट डाटा और बिजली के खर्च से जुड़ी बातें तो लोगों के दिमाग में कौंधती रही हैं, लेकिन जिन डाटा सेंटरों से होकर इंटरनेट और एआई की समस्त सूचनाओं का प्रवाह होता है, एक छिपी लागत के रूप में पानी की कुर्बानी हमें देनी पड़ती है। एआई तकनीक के विश्वव्यापी उछाल ने डिजिटल कंपनियों को पानी निगलने वाले विशाल दैत्यों में बदल दिया है क्योंकि वे कृत्रिम बुद्धिमत्ता को सक्रिय रखने के लिए जिन सर्वरों से अपनी सूचनाओं को गुजारते हैं, उन्हें ठंडा रखने के लिए सालाना अरबों गैलन पानी खर्च हो रहा है।

एक सवाल के लिए आधा लीटर पानी

एआई के लिए पानी की यह प्यास कितनी बड़ी है, इसका अंदाजा कुछ तथ्यों से हो सकता है। जैसे, चैटजीपीटी से एक सवाल के रूप में उठाई गई जिज्ञासा परोक्ष रूप से आधा लीटर पानी गटक जाती है। चैटजीपीटी, ग्रोक, जेमनाई, परप्लेक्सिटी से लेकर सोरा, रनवे, मिडजर्नी जैसे सैकड़ों एआई टूल्स के जरिए रोजाना हो रहे अरबों सवालों-जवाबों से इसका गुणा करें, तो पानी की खपत का आंकड़ा हमारी कल्पनाओं से भी ज्यादा हो सकता है। खुद इंटरनेट कंपनियों, जैसे कि माइक्रोसॉफ्ट की स्टैबिलिटी रिपोर्ट, गूगल के पर्यावरणीय खुलासे और कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय- रिवरसाइड (यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया- रिवरसाइडः यूसीआर) जैसे संस्थानों के शोध अध्ययनों से मिले तथ्य और आंकड़े कह रहे हैं कि एआई के कारण पानी का फुटप्रिंट (इस्तेमाल) विस्फोटक ढंग से बढ़ रहा है। ऐसे में वह दुनिया, जो जलवायु परिवर्तन के कारण सूखे के संकट से लगातार जूझ रही है, पानी की ऐसी कमी की ओर तेजी से बढ़ रही है जो शायद अचानक पैदा होने वाली अनहोनी के रूप में आ सकती है।

डाटा सेंटर का कूलैंट है पानी

यहां सवाल है कि आखिर एआई की दुनिया इतनी प्यासी क्यों है। वजह है एआई के इस्तेमाल का फैलता दायरा जो उसके टूल्स से जुड़ी हर पूछताछ में कंप्यूटरीकृत प्रक्रियाओं को तेज कर देता है। मसलन, चैटजीपीटी जैसे भाषा मॉडल को प्रशिक्षित करने के लिए ही डाटा सेंटरों में मौजूद हजारों ग्राफिक्स प्रोसेसिंट यूनिट्स (जीपीयू) पर खरबों प्रक्रियाएं करनी पड़ती हैं। जीपीयू एक विशेष इलेक्ट्रॉनिक सर्किट होता है जो कंप्यूटर, स्मार्टफ़ोन और गेमिंग कंसोल जैसे उपकरणों पर छवियों और 3D ग्राफिक्स को प्रोसेस करता है। यह सूचनाओँ और आंकड़ों की समानांतर प्रोसेसिंग में माहिर होता है, एक साथ कई गणनाएं कर सकता है। जीपीयू पर जब असंख्य गणनाएं एक साथ होती हैं, तो एक अकेला जीपीयू ही एक छोटे शहर के बराबर ऊर्जा (गर्मी) पैदा करता है। चूंकि डाटा सेंटर इन प्रक्रियाओं के तंत्रिका केंद्र हैं, वे उत्पन्न होने वाली ऐसी गर्मी से पिघल ही न जाएं, तो इसके लिए उन्हें कूलिंग सिस्टम पर निर्भर होना पड़ता है। इस वक्त पानी ही सबसे सस्ता और सबसे कुशल कूलेंट है। गूगल, माइक्रोसॉफ्ट, अमेज़न वेब सर्विसेज (एडब्ल्युएस), और मेटा जैसे तकनीकी दिग्गजों द्वारा संचालित दुनिया के ज्यादातर विशाल डाटा सेंटर गर्मी को संभालने के लिए पानी पर निर्भर वाष्पीकरण कूलिंग टावरों का प्रयोग करते हैं। इनमें मौजूद गर्म कॉइलों पर लगातार पानी छिड़का जाता है। यह एक प्रभावी उपाय है, लेकिन इससे पानी की सुनिश्चित बर्बादी होती है।

इस्तेमाल पानी के आंकड़े

नम और ठंडे इलाकों में मौजूद डाटा सेंटरों पर वाष्पीकृत हुआ पानी बारिश की शक्ल में कुछ अंशों में जमीन पर लौट आता है। लेकिन शुष्क इलाकों में वाष्पीकृत पानी गायब ही हो जाता है । यूसीआर के शोधकर्ताओं द्वारा जर्नल- नेचर में वर्ष 2023 में प्रकाशित अध्ययन बताता है कि वैश्विक डाटा सेंटरों में वर्ष 2021 में करीब 550 अरब लीटर पानी का इस्तेमाल किया था, जो अब एआई के बढ़ते इस्तेमाल के कारण 2027 में 1.2 ट्रिलयन लीटर तक पहुंच सकता है। चूंकि एआई मॉडल लाखों-करोड़ों लोगों को रोजाना कई सूचनाएं मुहैया करा रहे हैं और उनके काम कर रहे हैं, ऐसे में पानी की बर्बादी के अनुमानों के सच में बदल जाने में कोई शंका शेष नहीं।

माइक्रोसॉफ्ट की 2024 स्टैबिलिटी रिपोर्ट ने पानी की बर्बादी में साल-दर-साल 22 फीसदी बढ़ोतरी का खुलासा किया, जो वैश्विक रूप से 6.4 अरब क्यूबिक मीटर तक पहुंच गया है। इसके लिए रिपोर्ट ने एआई टूल्स को मुख्य रूप से जिम्मेदार बताया है। बताते हैं कि माइक्रोसॉफ्ट के डाटा सेंटर एज्यूरे (Azure) की जब चैटजीपीटी की कंपनी ओपनएआई के साथ साझेदारी हुई, तो वहां वाष्पीकरण संबंधी कूलिंग गतिविधियों में 34 फीसदी इजाफा हो गया। गूगल की 2024 की पर्यावरण रिपोर्ट ने 2022 के बाद पानी के उपभोग में 20 प्रतिशत की वृद्धि दिखाई है, जो 2024 में 75 अरब लीटर पानी की बर्बादी तक पहुंच गई। उल्लेखनीय है कि खुद गूगल के डीपमाइंड और बार्ड (अब जेमिनाई) जैसे एआई मॉडल्स को उन्नत कूलिंग की जरूरत पड़ रही है। इस कारण ऑरेगॉन प्रांत में द डेल्स स्थित सूखा-प्रभावित इलाके में मौजूद डाटा सेंटरों ने 2022 के मुकाबले 2023 में 29 फीसदी ज्यादा पानी सोखा। इसका स्थानीय स्तर पर विरोध भी हुआ।

एआई से काम पर खर्च पानी

एआई के महारथियों ने यह कहकर चौंकाया है कि किसी एआई टूल के जरिए कोई काम पूरा होने से पहले और बाद में अगर हम हैलो या थैंक्यू जैसे शब्द भी लिखते हैं, तो यह गतिविधि भी कुछ मात्रा में पानी को भाप में बदलती है। एआई से लिखवाया गया हरेक ईमेल आधे से एक लीटर पानी के खर्च के बराबर ठहरता है। इसका कारण प्रति ईमेल निर्माण में लगने वाली 0.3 वाट प्रति घंटा की ऊर्जा या गर्मी है, जिसे कूलिंग की जरूरत पड़ती है। हालांकि आंकड़ों में कुछ ऊंच-नीच भी है। जैसे, एक रिपोर्ट दावा करती है कि ओपनएआई के चैटजीपीटी के माध्यम से 20-50 पूछताछ की जाती हैं, तो इसमें संलग्न होने वाले माइक्रोसॉफ्ट के डाटा सेंटर – एज्यूरे में करीब 500 मिलीलीटर पानी खर्च होता है। लेकिन यह खर्च बेहद साधारण पूछताछ का है। इसकी बजाय ऑटोमेटेड कस्टमर सर्विस या सोशल मीडिया से जुड़े कार्य यदि एआई टूल को सौंपे जाते हैं, तो भाप में बदलने वाले पानी की मात्रा कई टैंकरों के बराबर हो जाती है। कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय के अध्ययन में अंदाजा लगाया गया है कि यदि डाल-ई (DALL-E) नामक एआई टूल को सौ एआई तस्वीरें बनाने का काम दिया जाए, तो इसमें करीब 20-30 लीटर पानी की खपत होती है। हालांकि शब्दों (टेक्स्ट) को गढ़ने वाली प्रक्रिया एआई तस्वीरों और वीडियो को बनाने के मुकाबले कम ऊर्जा पैदा करती है, लेकिन संख्या के मामले में यह बहुत विशाल होती है। हर सेकेंड दुनिया में करोड़ों टेक्स्ट्स आधारित कामकाज एआई टूल्स को सौंपे जा रहे हैं। इससे आने वाले वक्त में समुद्र भी कम पड़ते नजर आ रहे हैं।

शाओलेई रेन के नेतृत्व में यूसीआर में जो अध्ययन हुआ, उसमें कुछ गणनाएं की गई हैं जो इस प्रकार हैं- * चैटजीपीटी प्रति पूछताछः 500 मिलीलीटर पानी (2.9 वाट प्रति घंटा ऊर्जा पैदा होने के कारण। इस खपत का आकलन, आयोवा की नम और ठंडी जलवायु के मुताबिक किया गया जो गर्म इलाके में और बढ़ जाती है)। * एआईजनित ईमेल ड्राफ्टिंग: एक लीटर (सर्वर पर पड़ने वाले बोझ के कारण। * वीडियो जनरेशन (जैसे मिडजर्नरी या सोरा पर): प्रति मिनट वीडियो बनाने में 10 लीटर तक। ये आंकड़े तस्वीर का सिर्फ एक पहलू दर्शाते हैं। इस बारे में लॉरेंस बर्कले नेशनल लेबोरेटरी (एलएनएल) की 2024 रिपोर्ट ने दावा किया है कि वर्ष 2030 तक दुनिया के प्रमुख डाटा सेंटर वैश्विक मीठे पानी के चार से छह फीसदी हिस्से की खपत करने लगेंगे। इस बारे में वर्ल्ड रिसोर्सेस इंस्टीट्यूट (डब्ल्यूआरआई) का आकलन बताता है कि एआई तकनीकों को उपयोग 2022 से 2025 के बीच दोगुने से ज्यादा हो गया है। ऐसे में, पानी के खर्च का अंदाजा लगाया जा सकता है।

अमीर-गरीब की खाई

एआई के मामले में पानी के खर्च और इसके संकट में एकरूपता नहीं है। यह स्थान-विशेष और अमीर-गरीब के फर्क से भी निर्धारित होता है। जैसे, अमेरिका में 40 फीसदी डाटा सेंटर सूखा-प्रभावित या पानी की कमी वाले दक्षिण-पश्चिमी राज्यों में हैं। आकलन कहता है कि वर्ष 2022 में गूगल के मेसा (एरिजोना) स्थित डाटा सेंटर में 8.9 करोड़ गैलन पानी की खपत हुई, जो 270 ओलिंपिक पूलों के बराबर है। इस संबंध में एनवायरनमेंटल साइंस एंड टेक्नॉलॉजी में प्रकाशित एक शोधपत्र में दावा किया गया है कि ज्यादा गर्मी वाले इलाकों में मौजूद डाटा सेंटरों में वाष्पीकरण से की जाने वाली कूलिंग की दक्षता घट जाती है, जिससे और ज्यादा पानी का इस्तेमाल करना पड़ता है। माइक्रोसॉफ्ट के लिए काम करने वाला उरुग्वे स्थित डाटा सेंटर सालाना 50 करोड़ लीटर पानी खर्च कर रहा है जो पानी की कमी से जूझते इस देश के लिए बड़ी चुनौती है। सूखा-प्रभावित चिली में, गूगल के सैंटियागो डाटा सेंटर ने 2023 में 3.2 अरब लीटर पानी का इस्तेमाल किया, जो वहां के एक लाख घरों की जल-जरूरतों के बराबर है। इसने वाले राष्ट्रीय स्तर पर बहस छेड़ दी। कैलिफोर्निया में, जहां मेटा और एनवीडिया जैसी एआई फर्में हैं, डाटा सेंटरों की मौजूदगी ने स्थानीय बादाम की फसलों के लिए चुनौती पैदा कर दी है। पहले से ही पानी की जरूरतें वहां बढ़ी हैं। वर्ष 2023 में प्रकाशित प्रोसीडिंग्स ऑफ द नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेज के अध्ययन ने साफ किया कि यदि एआई तकनीकें अनियंत्रित ढंग से बढ़ती हैं, तो अमेरिका का कृषि उत्पादन वर्ष 2035 तक 5-10 प्रतिशत गिर सकता है क्योंकि सिंचाई के लिए पानी नहीं मिल पाएगा। एशिया में भी एआई के कारण पानी की खपत में इजाफा हो रहा है। त्सिंघुआ विश्वविद्यालय की 2025 की रिपोर्ट के अनुसार, चीन के मंगोलिया स्थित वैश्विक डाटा सेंटर में वैश्विक खपत का 30 फीसदी पानी इस्तेमाल हो रहा है जो 100 अरब लीटर है। भारत में भी तस्वीर तेजी से बदल रही है। मुंबई और इसके आसपास इलाके में मौजूद डाटा सेंटर 2030 तक पानी का 10 फीसदी इस्तेमाल करने लगेंगे। भारत की सिलिकॉन वैली कहे जाने वाले शहर फ्लिपकार्ट जैसे ई-कॉमर्स दिग्गज कंपनियों के एआई संबंधित कामकाज का बोझ संभालते हैं, वहां वर्ष 2024 में भूजल स्तर में 2 मीटर तक की गिरावट दर्ज की गई है। ये हालात शहर के करीब आधे करोड़ लोगों की पेयजल जरूरतों के लिए संकट पैदा कर सकते हैं। दिल्ली के सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च (सीपीआर) के अनुमानों के अनुसार, भारत का उभरता एआई इकोसिस्टम (जिसमें कई स्टार्टअप और वैश्विक फर्में शामिल हैं) वर्ष 2030 तक सालाना 1-2 अरब लीटर पानी की खपत कर रहा होगा। डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर पर की गई आईपीसीसी की विशेष रिपोर्ट कहती है कि भारत जैसी गर्म जलवायु वाले देशों में स्थित डाटा सेंटरों को प्रति डिग्री सेल्सियस वृद्धि पर 15-20 फीसदी ज्यादा पानी की आवश्यकता होती है। इससे संकट और गहराता है। अभी तक जिस एआई को बिजली के अतिशय खर्च और कार्बन उत्सर्जन (कार्बन फुटप्रिंट) के लिए विलेन ठहराया जा रहा था, पानी की खपत से जुड़े आंकड़े दर्शाते हैं कि आने वाले वक्त में धरती का यह अनमोल संसाधन इसकी भेंट चढ़ जाएगा।

जल बचत को लेकर क्या उम्मीदें हैं बाकी

पानी के तेज वाष्पीकरण जैसे संकट के मद्देनजर इंटरनेट और एआई कंपनियों ने खपत घटाने के प्रयास शुरू किए हैं, जो कुछ उम्मीद जगाते हैं। जैसे, माइक्रोसॉफ्ट ने 2030 तक “वाटर पॉजिटिव” स्थिति हासिल करने का लक्ष्य रखा है। इसके लिए 50 करोड़ डॉलर के निवेश से 100 फीसदी अपशिष्ट वाटर रीसाइक्लिंग जैसा लक्ष्य रखा गया है। माइक्रोसॉफ्ट की 2024 की रिपोर्ट ने बताया है कि मशीन लर्निंग एल्गोरिद्म के तकनीकी प्रबंधों में पानी के उपयोग में 15 फीसदी कमी लाई गई है। साथ ही, एआई-ऑप्टिमाइज्ड कूलिंग जैसे तकनीकी समाधान का सहारा लिया जा रहा है, जिससे कम गर्मी पैदा होगी। इसी तरह, गूगल के “क्लोज्ड-लूप” सिस्टम में रेफ्रिजरेंट्स के साथ गैर-वाष्पीकरण चिलर्स का उपयोग किया जा रहा है। दावा है कि इससे कुछ डाटा सेंटरों पर पानी खपत 90 फीसदी तक कम हो सकती है। अमेजन ने अपने डाटा सेंटरों में एयर-कूल्ड जीपीयू का इस्तेमाल करना शुरू किया है, जब फेसबुक की कंपनी मेटा ने इमर्शन कूलिंग की तकनीक अपनाई है। सर्वरों को ठंडा करने के लिए डाइइलेक्ट्रिक फ्लुइड्स में डुबोया जाता है। इससे 40 फीसदी पानी की बचत होने लगी है। मामला सिर्फ इंटरनेट कंपनियों और डाटा सेंटरों की पहलकदमी तक सीमित नहीं। इस संकट से निपटने को कानूनी पहलें भी हो रही हैं। जैसे, यूरोपीय यूनियन के डिजिटल सर्विसेज एक्ट में एआई सेवा प्रदाताओं के लिए पानी की ऑडिटिंग अनिवार्य की गई है। इसके लिए नवाचार भी सुझाए जा रहा है। कैलिफोर्निया (यूसीआई) के शोधकर्ताओं ने इसके लिए ऐसे मैट्रिक्स प्रस्तावित किए हैं, जो डाटा सेंटरों में पानी की खपत घटाने के लिए विकल्पों पर फोकस करते हैं। ऐसे विकल्पों में सौर ऊर्जा संचालित केंद्रीकृत डाटा सेंटरों के निर्माण और प्राकृतिक गैस के इस्तेमाल आदि शामिल हैं। विशेषज्ञ इस संबंध में संयुक्त राष्ट्र के माध्यम से वैश्विक संधियों और मानकों के निर्माण की मांग कर रहे हैं, । जब मामला एआई संचालन में प्रतिदिन 1.5 अरब लीटर पानी की खपत तक पहुंच गया हो, जरूरी हो जाता है कि मानव सभ्यता इस संकट का तुरंत समाधान निकाले। समाधान इसलिए भी आवश्यक है कि जलवायु परिवर्तन, जनसंख्या बढ़ोतरी और संसाधनों के बंटवारे को लेकर हो रही छीनझपट के माहौल में एआई के कारण पीने योग्य उस पानी का संकट और बढ़ा है, जो पारिस्थितिकी तंत्र के जरिए चक्रित होने वाला एक सीमित संसाधन है। पानी अनंत नहीं हैं, लेकिन उसके संकट अब जरूर अनंत हैं। -लेखक मीडिया यूनिवर्सिटी में एसोसिएट प्रोफेसर हैं।

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