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बॉलीवुड में कमतर नहीं बिहार की प्रतिभाएं

फिल्म जगत में पिछले बीते कई बरस से बिहार से सैकड़ों युवक आये। मगर इनमें शत्रुघ्न सिन्हा,सुशांत सिंह राजपूत,शेखर सुमन,अखिलेंद्र मिश्र,मनोज बाजपेयी,पंकज त्रिपाठी,संजय मिश्रा आदि ही पहचान बना पाए। लेखन-निर्देशन में प्रकाश झा,इम्तियाज अली ने खूब नाम कमाया। शारदा सिन्हा...

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फिल्म जगत में पिछले बीते कई बरस से बिहार से सैकड़ों युवक आये। मगर इनमें शत्रुघ्न सिन्हा,सुशांत सिंह राजपूत,शेखर सुमन,अखिलेंद्र मिश्र,मनोज बाजपेयी,पंकज त्रिपाठी,संजय मिश्रा आदि ही पहचान बना पाए। लेखन-निर्देशन में प्रकाश झा,इम्तियाज अली ने खूब नाम कमाया। शारदा सिन्हा का नाम कई हिट गानों के साथ जुड़ा। उदित नारायण भी लोकप्रिय हैं। फिल्म निर्माण के क्षेत्र में भी बिहार के लोग सक्रिय हैं।

देश की प्रगति में बिहार का योगदान किसी भी क्षेत्र में कमतर नहीं रहा है। इससे बॉलीवुड भी अछूता नहीं। फिल्म जगत में पिछले कई बरस से बिहार से सैकड़ों युवक आये। मगर इनमें शत्रुघ्न सिन्हा,सुशांत सिंह राजपूत,शेखर सुमन,अखिलेंद्र मिश्र,मनोज बाजपेयी,पंकज त्रिपाठी,संजय मिश्रा, मनोज तिवारी आदि ही अपनी सशक्त पहचान बना पाए। शॉटगन शत्रुघ्न सिन्हा ने अपनी धाकड़ पहचान बनाई थी। यश चोपड़ा से लेकर सुभाष घई तक हर दिग्गज डायरेक्टर के साथ उन्होंने काम किया। हृषिकेश मुखर्जी,गुलजार जैसे कई लेखक-निर्देशक की फिल्मों में काम किया। इसके बाद बिहार से आए कई अभिनेता आगे बढ़ते दिखाई पड़े। अभिनेता शेखर सुमन ने भी धाक जमानी चाही,पर उनकी पारी छोटे परदे तक ही सिमट कर रह गई। दूसरी ओर अखिलेंद्र मिश्र,मनोज बाजपेयी,पंकज त्रिपाठी,संजय मिश्रा की भाव प्रवणता ने सबका मन मोह लिया। मनोज और पंकज की स्टारडम के गलियारे में चर्चा होती है। सुशांत सिंह राजपूत ने अपना अलग रास्ता बनाना शुरू ही किया था कि गंदी राजनीति के शिकार हो गए। इस प्रतिभावान अभिनेता को सिने प्रेमी याद करते हैं।

पीछे रह गई लड़कियां

यूं तो बिहार से आई नीतू चंद्रा,तनुश्री दत्ता,नेहा शर्मा,श्रीति झा,अक्षरा सिंह आदि की एक लंबी सूची है। लेकिन बिहार से आई कोई भी नई तारिका वहां के अभिनेताओं के मुकाबले बॉलीवुड में कोई पहचान नहीं बना पाई। जबकि अभिनेत्री नीतू चंद्रा ने हिंदी,भोजपुरी और साउथ की दो दर्जन फिल्मों में काम किया। बेशक कभी गॉसिप के मामले में वह किसी भी अभिनेत्री से कमतर नहीं थी। कुछ यही हाल तनुश्री दत्ता और नेहा शर्मा के साथ भी हुआ।

फिल्म निर्माण में भी सक्रिय

निस्संदेह बॉलीवुड के क्रिएटिव क्षेत्र में बिहार से आए कई युवक सक्रिय हैं। लेकिन लेखन-निर्देशन में बिहार में जन्मी प्रतिभाओं ने न के बराबर परचम फैलाया। इस सूची में प्रकाश झा,इम्तियाज अली,मणीष झा,राजकुमार गुप्ता, कबीर कौशिक,ब्रह्मानंद सिंह जैसे कई नाम हैं,पर इनमें प्रकाश झा,इम्तियाज अली और राजकुमार गुप्ता ही अलग पहचान बना सके। इसमें निर्देशन के क्षेत्र में प्रकाश झा का नाम काबिलेतारीफ रहा है। ‘परिणति’ जैसी कला फिल्म से लेकर ‘आश्रम’ जैसी वेब सीरीज बनाकर वह सक्रिय रहे। इसी तरह से इम्तियाज अली ने ‘लव आज कल’, ‘सोचा न था’ जैसी फिल्मों से अपनी धाक जमाई थी,पर एक अरसे से कोई खास पसंदीदा सृजन नहीं।

संगीत जगत में सक्रियता

बिहार के संदर्भ में भोजपुरी गानों की लोकप्रियता का भी अलग पैमाना रहा है। शारदा सिन्हा जैसी चर्चित गायिकाओं का नाम कई बॉलीवुड हिट गानों के साथ जुड़ा। खास तौर से फिल्म ‘कयामत से कयामत तक’ की लोकप्रियता के साथ गायक उदित नारायण ने खूब नाम कमाया। आज भी वे लोकप्रिय हैं। पर नये दौर के कई संगीतकार उनसे विमुख हैं। उदित को इसका कोई अफसोस नहीं है। वे भावुक होकर बताते है ,‘ईश्वर ने मुझे जो कुछ भी दिया ,उससे संतुष्ट हूं। अप-डाउन चलता रहता है। मैं हिंदी फिल्मों के लिए कम सही, पर क्षेत्रीय फिल्मों के लिए लगातार गा रहा हूं। मैं उन कुछ बिहारी युवकों में से हूं ,जिन्होंने संघर्ष कर अपनी पहचान बनायी।’

हम भी हैं जोश में

बिहार से हर रोज सैकड़ों लोग मुंबई आते हैं। इनमें से बहुत सारे अपनी कलात्मक प्रतिभा को नया रंग देने के लिए फिल्म वर्ल्ड की तरफ मुड़ते हैं। शेखर सुमन बताते हैं ,‘जो मेरी तरह यहां ठोकरें खाकर टिका रहता है ,उसे कुछ न कुछ जरूर हासिल होता है।’ कुछ रचनात्मक करने की यह ललक ही सासाराम या पूर्णिया के युवक को मुंबई ला पटकती है। मगर मुंबई के संघर्ष की जमीन बहुत पथरीली है। डेढ़ दर्जन से ज्यादा फिल्मों के छायाकार असीम मिश्रा कहते हैं,‘ अन्य राज्यों के युवाओं की ही तरह बिहारी युवक में भी संघर्ष करने की अद्भुत क्षमता होती है। दृढ इच्छाशक्ति होने पर आप अपने आपको देर-सबेर साबित कर ही सकते हैं। अब मुझे ही देख लीजिए ,फिल्मों में छायाकार बनना है ,यह मैंने शुरू से सोच रखा था। फोटोग्राफी का प्रशिक्षण लिया, कई साल सहायक के तौर पर काम किया। फिर जाकर कहीं रास्ता मिला।’ निर्देशक प्रकाश झा कहते हैं ,‘ वह दौर बीत चुका,जब सिर्फ रेणु के ‘तीसरी कसम’ की वजह से बिहार को याद किया जाता था ,आज तो फिल्म निर्माण के हर क्षेत्र में बिहार अपना दावा पेश कर रहा है। अब बिहार की पृष्ठभूमि में फिल्मों का निर्माण खुद बिहार के लोग कर रहे हैं।’ जाहिर है हिंदी फिल्मों के निर्माण में भी बिहार अपने योगदान को निरंतर बढ़ा रहा है।

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