कृत्रिम बुद्धिमत्ता और बायोटेक्नॉलोजी क्षेत्र में अभूतपूर्व तरक्की के बावजूद अंगदान का कोई विकल्प मौजूद नहीं है। अंग प्रत्यारोपण की तकनीक तेजी से विकसित हुई लेकिन कृत्रिम अंगों की विश्वसनीयता नहीं हासिल हो सकी। भारत समेत ज्यादातर देशों में अंगदान की गति बहुत धीमी है। ऐसे में लोगों को अंगदान को लेकर जागरूक करना बेहद जरूरी है।
निश्चित रूप से यह समय हर दिन चमत्कार की तरह सामने आने वाले एआई की संभावनाओं और ताकत का दौर है। साथ ही इस दौर को चिकित्सकीय दृष्टि से क्रांति का दौर भी कहा जाता है। पिछले एक दशक में बायो क्षेत्र में जितनी तकनीकी प्रगति हुई है, उतनी शायद ही किसी दूसरे दौर में हुई हो। बावजूद इसके जीवन रक्षा के लिए आज भी तकनीक से ज्यादा जरूरी अंगदान ही हैं। क्योंकि अंग प्रत्यारोपण की तकनीक तो बहुत तेजी से विकसित हुई है, लेकिन अभी भी कृत्रिम अंगों की वह विश्वसनीयता नहीं हासिल हो सकी, जो आज भी मानवीय अंगों को है। कृत्रिम अंगों के विकास की दर अभी भी बहुत शुरुआती दौर में है और उसे अभी दशकों परखने के लिए वक्त चाहिए।
जरूरत के मुकाबले गति धीमी
सवाल है इस बीच में लोगों का जीवन बचाने और बेहतर बनाने का उपाय क्या हो सकता है? तो इस सवाल का सबसे आसान जवाब है- अंगदान। लेकिन सामाजिक जागरूकता और नीति प्रक्रिया की स्थिति कुछ ऐसी है कि सिर्फ भारत में ही नहीं, दुनिया के ज्यादातर देशों में अंगदान की गति बहुत धीमी है। जितने अंग लोगों के जीवन को बचाने और उसे बेहतर बनाने के लिए जरूरी हैं, उतने अंगदान द्वारा हासिल नहीं हो रहे। इसलिए अंगदान जैसे दिवसों का पहले के मुकाबले आज कहीं ज्यादा महत्व है। क्योंकि इसी बहाने लोगों को अंगदान को लेकर जागरूक किया जा सकता है।
चिकित्सकीय प्रक्रिया व मानव सेवा का जरिया
अंगदान केवल एक चिकित्सकीय प्रक्रियाभर नहीं है। यह समाज में करुणा, परोपकारिता, जीवन-मान्यता और मृत्यु के बाद भी मानव सेवा की परंपरा को जीवित रखने का जरिया है। जब इन मूल्यों को आमजन स्तर पर बढ़ावा मिलेगा, तभी यह सुचारु रूप से संभव होगा। दुनिया के ज्यादा से ज्यादा लोगों को इस बारे में प्रेरित और प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। अगर यह परंपरा विकसित और मजबूत नहीं होती, तो भविष्य में जिन लोगों के पास महंगी कृत्रिम अंगों को खरीद पाने की क्षमता नहीं होगी, उन्हें अंग प्रत्यारोपण जैसी किसी तकनीक का कोई लाभ नहीं मिलेगा। इसलिए बायो क्रांति के दौर में भी अंगदान के प्रति लोगों को प्रोत्साहित किये जाने की जरूरत है।
इंसानी मूल्यों पर दारोमदार
भले आज हर क्षेत्र में एआई कमाल कर रहा हो लेकिन अंगदान प्रत्यारोपण की पूरी व्यवस्था अभी भी इंसान की उदारता, करुणा और मानवता जैसे विचारों पर ही टिकी हुई है। आज भी शरीर का कोई भी अंग पूरी तरह से कृत्रिम नहीं बनाया जा सका, जो सौ फीसदी कारगर हो। आज भी 99.99 फीसदी अंग प्रत्यारोपण जीवित या मृत लोगों के द्वारा दिये गये अंगों के दान पर ही निर्भर है। यही कारण है कि अंग प्रत्यारोपण दिवस पर पूरी दुनिया में अनेक मेडिकल संस्थाएं और एजेंसियां अंगदान संबंधी कार्यक्रमों के जरिये लोगों को इसके लिए प्रोत्साहित करती हैं।
असमय मृत्यु से बचाव
गौरतलब है कि अंगदान के प्रति उदासीनता के कारण हर साल 25 लाख से ज्यादा लोगों की या तो दुर्घटना के चलते या असाध्य बीमारियों के तहत मौत हो जाती है और अगर पूरी दुनिया में लोग अंगदान को लेकर सहज हो जाएं, तो हर साल इतने लोगों को असमय मृत्यु से बचाया जा सकता है। दरअसल यह बहुत आसानी से संभव है अगर पूरी दुनिया में लोग यह मान लें कि ब्रेन डेथ के बाद अंगदान किसी दूसरे की जिंदगी को बचाने के लिए कर दिए जाने चाहिए। क्योंकि ब्रेन डेथ के बाद इंसान भले कुछ घंटे या कुछ दिन जीवित रहे, लेकिन अंततः उसकी मौत हो जाती है। इस समय में अगर उसके विभिन्न शारीरिक अंगों को जरुरतमंदों के लिए दान दे दिया जाए तो ब्रेन डेथ से गुजरने वाला हर व्यक्ति कम से कम 3-4 लोगों को जीवनदान देकर जा सकता है।
ब्रेन डेथ को लेकर अवरोध
लेकिन पूरी दुनिया में ब्रेन डेथ को लेकर लोगों में न सिर्फ भ्रम बल्कि इतना मोह है कि सब कुछ जानने, समझने के बावजूद लोग अंगदान के लिए राजी नहीं होते। कई समाजों में इसके लिए धर्म बहुत बड़ी बाधा है। लब्बोलुआब यह है कि पूरी दुनिया में अंगदान को लेकर इतने ज्यादा अव्यावहारिक और मनोवैज्ञानिक अवरोध हैं कि बहुत कोशिशों के बाद भी हर साल दुनिया में उतने अंगदान नहीं हो पाते, जितनों की जरूरत होती है।
जागरूकता से दूर होती झिझक
भारत में तो खास तौरपर ब्रेन डेथ मामलों में शायद ही कोई परिवार अंगदान देने के लिए तैयार होता है। यही कारण है कि आज विश्व स्वास्थ्य संगठन और चिकित्सीय क्षेत्र से जुड़े तमाम संगठन और संस्थाएं अंगदान को प्रोत्साहित करने के लिए तरह-तरह के कार्यक्रम करती हैं, जिसके चलते अब धीरे धीरे लोगों में यह झिझक खत्म हो रही है और अंगदान की प्रक्रिया थोड़ी बढ़ी है। लेकिन आज भी मांग और उपलब्धि के बीच में बहुत बड़ा अंतर है। सिर्फ गुर्दा प्रत्यारोपण हेतु ही दुनिया में कई लाख लोग हर समय प्रतीक्षारत रहते हैं और गुर्दा दान करने वाले लोगों की संख्या बेहद कम है। हालांकि पिछले कुछ सालों में पश्चिमी विकसित देशों में अंगदान की प्रक्रिया थोड़ी बेहतर हुई है और आज औसतन प्रति लाख 20 से 30 लोग अंगदान के लिए तैयार हो रहे हैं, जिसमें सबसे ज्यादा प्रति लाख 30 लोगों का आंकड़ा स्पेन का है। लेकिन आज भी अंगदान देने वालों और चाहने वालों की संख्या में बहुत फर्क है। इसलिए इस दिन की खास महत्ता है कि लोगों को अंगदान के लिए प्रोत्साहित किया जाए।
बढ़ती मांग के मुताबिक नहीं उपलब्धता
अगर हम अकेले भारत में ही देखें तो हर साल 63 हजार लोगों को गुर्दा प्रत्यारोपण यानी किडनी ट्रांसप्लांट की जरुरत होती है। लेकिन हर साल अंगदान के रूप में हासिल होने वाली किडनियों की संख्या 3000 से भी कम होती है। इससे अनुमान लगाया जा सकता है कि अंग प्रत्यारोपण की जरुरत जिस रफ्तार से बढ़ रही है, अंगदान देने वालों की संख्या उसके मुकाबले कितनी कम है। आज हर साल अकेले भारत में 22000 लोगों को लिवर ट्रांसप्लांट की जरूरत है, मगर मुश्किल से 800 से 900 लोगों को ही अंगदान के जरिये यह सुविधा प्राप्त हो पाती है। कारण यही है कि लोग अंगदान करने से आज भी बड़े पैमाने पर कतराते हैं।
भारत में प्रति 10 लाख लोगों के बीच अंगदान की दर 0.3 से 0.8 के आसपास है। जबकि दुनिया में प्रति लाख लोगों में 20 से 30 लाख लोग अंगदान के लिए तैयार हो जाते हैं। हालांकि 2024 में अकेले भारत में ही 13000 से ज्यादा लोगों को विभिन्न तरह के अंगों की इमरजेंसी में जरूरत थी। लेकिन 1000 से कम लोगों की जरूरत अंगदान के जरिये पूरी हुई। गुर्दा, फेफड़े और लिवर के प्रत्यारोपण की सबसे ज्यादा मांग है। हालांकि इस क्षेत्र में लगातार कृत्रिम अंग विकसित करने की कोशिश हो रही है। लेकिन अभी तक कोई भी कोशिश सौ फीसदी सफल नहीं हो सकी। इसलिए अंगदान के लिए लोगों को प्रोत्साहित किया जाना जरूरी है।
-इ.रि.सें.

