सुपरफिट बनाने के नाम पर मालामाल सुपरफूड का बाजार
सुपरफूड के नाम पर इन दिनों सेहत के बाजार में सब्जबाग दिखाये जा रहे हैं। वेट कंट्रोल या फिर बॉडी बनाने के विज्ञापनों के प्रभाव में आम लोग, विशेषकर युवा सुपरफूड्स को जादुई औषधि समझ बैठते हैं। अगर वह विदेशी हो, तो कहना ही क्या। वहीं विशेषज्ञ मानते हैं कि सुपरफूड जैसा कोई खाद्य पदार्थ नहीं होता। तथाकथित सुपरफूड्स में उतनी ही पौष्टिकता होती है, जितनी आलू, चने, दलिया या टमाटर वाले भोजन में ।
इन दिनों सोशल मीडिया से लेकर टीवी और अखबारों तक पर अकसर आपकी नजर कुछ इस तरह के विज्ञापनों पर जरूर पड़ी होगी- वजन घटाने का जादुई तरीका बस रोजाना चिया सीड्स लो और वजन देखते ही देखते पिघल जायेगा। सुपरफूड करें शरीर के टॉक्सिंस की जड़ से सफाई। लाइफस्टाइल बीमारियों का रामबाण इलाज, ग्रीन कॉफी। एवोकाडो से पाएं सुपरफूड के सारे फायदे।
Advertisementसेहत के बाजार में सब्जबाग
दरअसल सुपरफूड के नाम पर इन दिनों सेहत के बाजार में सब्जबाग दिखाये जा रहे हैं। इन विज्ञापनों का ही कमाल है कि आम आदमी, विशेषकर युवा सुपरफूड्स को जादुई औषधि समझ बैठते हैं और अगर वह सुपरफूड कहीं विदेशों का हुआ, तब तो कहना ही क्या। जबकि सच्चाई यह है कि ये सब मार्केटिंग और कंज्यूमर साइकोलॉजी का फंडा है, नहीं तो सुपरफूड अपने आपमें कतई जादुई पोषण नहीं देते। दरअसल ‘सुपरफूड’ शब्द मार्केटिंग रणनीति द्वारा गढ़ा हुआ शब्द है। पोषण विशेषज्ञ मानते हैं कि सुपरफूड जैसा कोई खाद्य पदार्थ नहीं होता। इन तथाकथित सुपरफूड्स में उतनी ही पौष्टिकता होती है, जितनी आलू, चने, दलिया या टमाटर में होती है।
जल्दी सुपरफिट होने की होड़
मगर सवाल है आखिर भारत जैसे देश में ये सुपरफूड इस कदर जादुई क्यों माने जाते हैं? दरअसल इसके पीछे यूथ की तथाकथित हेल्थ कांशसनेस और सोशल मीडिया में पैदा अनगिनत हेल्थ ब्लॉग और फिटनेस इंफ्लूएंसर ने इस कदर युवाओं का ब्रेनवॉश किया है कि उन्हें लगता है कि इन तथाकथित सुपरफूड्स के जरिये वो रातोंरात बॉडी बिल्डिंग कर लेंगे। जिन सुपरफूड्स को ऐसे चमत्कार का जरिया माना जा रहा है, उनमें विदेशी ज्यादा हैं जैसे- चिया सीड्स, क्विनोआ और एवोकाडो। इन सुपरफूड्स पर रिच-न्यूट्रियंट्स का टैग लगा हुआ है। जल्दी से जल्दी रिजल्ट पाने के लिए युवा हेल्थ को फैशन और स्टेटस के रूप में लेते हैं और किसी भी कीमत पर सुपरफिट होना चाहते हैं। जबकि पोषण विशेषज्ञ बताते हैं कि सुपरफूड पूरक होते हैं, कभी भी मुख्य भोजन का विकल्प नहीं होते। पोषण विशेषज्ञों के मुताबिक सुपरफूड अगर गाहे-बगाहे किसी के शरीर में चमत्कार जैसा कोई प्रभाव दिखाते भी हैं, तो वह तभी संभव है, जब वह व्यक्ति अपना दैनिक खाना संतुलित खाता हो।
मार्केटिंग का फंडा
तथाकथित सुपरफूड को लेकर उपभोक्ता कंपनियां जिन पोषण संबंधी फैक्ट्स को बढ़ा-चढ़ाकर बताती हैं, वो दरअसल चूहों आदि पर किये गये बहुत मामूली किस्म के शोध होते हैं। वास्तव में सुपरफूड एक खास किस्म की मार्केटिंग का फंडा है। विशेषज्ञों के मुताबिक कुछ खाद्यों में जरूर पोषण लाभ होते हैं, लेकिन इनकी ब्रांडेड छवि और सेलिब्रिटी के जरिये इनका किया गया प्रचार इनकी खूबी को कई गुना बढ़ा-चढ़ाकर दिखाते हैं। महज संयोग नहीं कि भारत में साल 2024 में सुपरफूड का जो कारोबार 5.9 अरब डॉलर का था, वह 2033 तक बढ़कर 12.5 अरब डॉलर तक पहुंच जायेगा ऐसा एक नहीं कई शोध अध्ययनों का ठोस अनुमान है। क्योंकि हिंदुस्तान में सुपरफूड के कारोबार में निरंतर 10 फीसदी से ज्यादा की वृद्धि जारी है। सुपरफूड पाउर्ड्स व हर्बल सप्लीमेंट्स का बाजार हिंदुस्तान में दिन दूनी, रात चौगुनी रफ्तार से बढ़ रहा है। सुपरफूड के नाम पर उपभोक्ता कंपनियों ने विशेषकर युवाओं के बीच जो भौकाल फैला रखा है, उसके कारण इनका मुनाफा रातोंरात आसमान की ऊंचाइयां छू रहा है।
विदेशी पर भारी देसी सुपरफूड्स
इन दिनों भले सुपरफूड्स के बाजार में भारतीय युवा मैक्सिको के चिया सीड्स, पेरू और बोलीविया के क्विनोआ, चीन के कोंबुचा, जापान की ब्लू, ग्रीन एलगी और अमेरिका के एवोकाडो पर बलि-बलि जा रहे हों। लेकिन पोषण विशेषज्ञ अपनी गहन पड़ताल में पाते हैं कि भारतीय सुपरफूड्स पोषक तत्वों के मामले में इन विदेशी सुपरफूड्स से किसी भी मामले में उन्नीस नहीं हैं। सदियों से इनका इस्तेमाल पारंपरिक खानों में रोजमर्रा में होता रहा है, इसलिए हम इनकी वह कीमत नहीं समझते, जो आक्रामक प्रचार के जरिये विदेशी सुपरफूड्स की कीमत बन गई हैं। नहीं, तो भारत के सुपरफूड्स मसलन आंवला, मखाना, अलसी के बीज, तिल, चना और विभिन्न तरह की दालें, बाजरा, रागी, ज्वार जैसे मोटे अनाज तथा हल्दी जैसे मसाले में जो पोषक तत्व हैं, वैसे पोषक तत्व विदेशी सुपरफूड्स में भला कहां पाये जाते हैं। भारत में 600 से 1000 रुपये किलो तक बिकने वाले चिया सीड्स में जो ओमेगा-3, फैटी एसिड, फाइबर और पाचन सुधार की क्वालिटी पायी जाती है, भारत में मिलने वाली अलसी जो कि आमतौर पर 150 से 250 रुपये किलो में मिल जाती है, उसमें चिया सीड्स से कहीं ज्यादा पौष्टिक गुण पाये जाते हैं। अलसी यानी फ्लेक्स सीड्स में ओमेगा-3, फैटी एसिड, लिग्नान नामक विशेष एंटीऑक्सीडेंट और भरपूर फाइबर पाया जाता है, जिससे ये हमारे पाचन को बेहतर बनाने, वजन को घटाने, त्वचा और बालों को चमकदार करने तथा हार्मोन बैलेंस को बेहतर बनाने में तो मददगार हैं ही, इससे हार्ट डिजीज का खतरा भी घटता है। इसी तरह भारत के सुपरफूड मोटे अनाज जिनमें रागी, ज्वार, कांगनी और कोदो जैसे अनाज शामिल हैं, वे क्विनोआ से कई गुना बेहतर हैं। भारत के मिलेट्स यानी बाजरे में कार्बोहाइड्रेट, आयरन, कैल्शियम, फाइबर और प्रोटीन पाये जाते हैं, साथ ही साथ यह ग्लूटेन फ्री का शानदार विकल्प है। इसके अलावा बाजरे में डायबिटीज और मोटापे को नियंत्रित करने की क्षमता है। हमारा सुपरफूड हल्दी करक्यूमिन, एंटीऑक्सीडेंट और एंटी इनफ्लेमेट्री गुणों से भरपूर है। हल्दी सूजन और दर्द में राहत देती है। इम्यूनिटी बूस्ट करती है, दिमाग और हृदय स्वास्थ्य को बेहतर बनाने में सहायक है तथा कैंसररोधी गुण हैं। विटामिन सी से भरपूर आंवले में एंटीऑक्सीडेंट तथा आयरन भरपूर मात्रा में पाया जाता है। भारतीय सुपरफूड सहजन या मोरिंगा भी गुणों से भरपूर है। जबकि मखाना यानी फोक्स सभी देशी-विदेशी सुपरफूड पर भारी पड़ता है। इसमें प्रोटीन, कैल्शियम, मैग्नीशियम और एंटीऑक्सीडेंट तत्व पाये जाते हैं, जिस कारण यह वजन घटाने में सहायक, हार्ट हेल्थ को नियंत्रित करने, ब्लड प्रेशर को काबू करने और डायबिटीज को सुरक्षित बनाने में सहायक होता है।
-इ.रि.सें.