कलात्मक सक्रियता के जरिये खुश रहने की आदत
पुरानी पीढ़ी के लोग विपरीत परिस्थितियों का सामना खुश रहकर करना जानते थे। इसके पीछे उनका रचनात्मक रूप से व्यस्त रहना भी एक पहलू था। रचनात्मक गतिविधि मन-मस्तिष्क को सहज रखती है। कामकाजी आपाधापी से दूर घर संभाल रही...
पुरानी पीढ़ी के लोग विपरीत परिस्थितियों का सामना खुश रहकर करना जानते थे। इसके पीछे उनका रचनात्मक रूप से व्यस्त रहना भी एक पहलू था। रचनात्मक गतिविधि मन-मस्तिष्क को सहज रखती है। कामकाजी आपाधापी से दूर घर संभाल रही महिलाएं भी आज तनाव के घेरे में हैं। ऐसे में सिलाई,बुनाई, पेंटिंग व बेकिंग जैसे शौक उपयोगी साबित हो सकते हैं।
आज के समय में मानसिक स्वास्थ्य की चिंता करते हुए यह सहजता से जोड़ दिया जाता है कि हमारी दादी-नानी संघर्ष भरी परिस्थितियों के बीच भी मन से स्वस्थ हुआ करती थीं। दुःख के दौर में संयत रहना जानती थीं। खुशियों के मौके पर खिलखिलाना नहीं भूलतीं थीं। असल में हमारी बड़ी पीढ़ी टूटने-बिखरने के बजाय खुद को थामना जानती थी। हर हाल में अपने आप को संभाल लेने की कोशिशों के पीछे उनका रचनात्मक रूप से व्यस्त रहना भी एक अहम पहलू था। घरेलू काम के अलावा मन का कुछ करने की व्यस्तता उनके दिलो-दिमाग की सेहत संभालने के पीछे रही है। ब्रिटेन में 7,000 से अधिक लोगों पर किए गए एक शोध में सामने आया है कि आर्ट और क्राफ्ट जैसे रचनात्मक कामों में लगे रहना मन को खुशी देता है। ऐसे लोग ज्यादा खुश, संतुष्ट और सकारात्मकता महसूस करते हैं। अध्ययन के मुताबिक आर्ट और क्राफ्ट, जैसे-सिलाई, बुनाई, क्रोशिया जैसे काम मनोरंजक तो हैं ही, ये मानसिक स्वास्थ्य को भी बेहतर बनाते हैं। देखने में आ रहा है कि अब महिलाएं इस कलात्मक व्यस्तता से दूर हुई हैं।
क्रिएटिव व्यस्तता आवश्यक
मानसिक स्वास्थ्य को भी बेहतर बनाने में जीवनशैली की भूमिका बहुत अहम होती है। ज्यादा भागदौड़ ही नहीं, खाली समय भी मन का मौसम बिगाड़ता है। ऐसे में कुछ रचनात्मक गतिविधि करना मन-मस्तिष्क को सहज और सक्रिय रखता है। जैसे किसी खाली कैनवस पर रंग उकेरना मन की व्यथा को रंगों में ढाल सकता है। परेशानी से फोकस हटाकर क्रिएटिविटी पर ध्यान केन्द्रित करने का रास्ता खोलता है। विशेषज्ञ बताते हैं कि अपनी पसंद की कलात्मक गतिविधियां मेडिटेशन से कम नहीं होतीं। शांत मन से आप कुछ करने में जुट जाएं तो बहुत सुकून महसूस होता है। असल में देखा जाए तो क्रिएटिव होना अपनी भावनाओं को व्यक्त करने जैसा ही तो है। फिर चाहे कैनवस पर बिखरते रंग हों या सलाइयों संग घूमते ऊन के धागे। भोजन बनाते-परोसते हुए की गई क्रिएटिविटी हो या स्वयं की साज-संवार में कुछ नयापन लाना- सभी बातें एक विशेष तरह की संतुष्टि देती हैं। दिल और दिमाग दोनों को एक अच्छी सी अनुभूति होती है। अध्ययन बताते हैं कि रचनात्मक कार्यों से रक्तचाप और हृदय गति सकारात्मक रूप से प्रभावित होती है। हृदय पर पड़ने वाले तनाव को कम करती है। ऐसे में खाली समय में क्रिएटिवली व्यस्त रहना बहुत आवश्यक है।
अच्छी सेहत की सौगात
कामकाजी आपाधापी से दूर घर संभाल रही महिलाएं भी आज तनाव के घेरे में हैं। इसकी एक वजह बंधा-बंधाया रूटीन भी है। एक समय के बाद उनकी दिनचर्या में कुछ भी नयापन नहीं रहता। ऐसे में रचनात्मक कार्य बड़ा बदलाव ला सकते हैं। बागवानी हो या सिलाई बुनाई, जो भी पसंद हो, फुर्सत के समय काम को करना शुरू कर दें। ब्रिटेन में हुए इस अध्ययन में भी 74 प्रतिशत महिलाओं ने बताया कि आर्ट और क्राफ्ट से जुड़ी गतिविधियां उनके लिए तनाव और चिंता को कम करने में सहायक रहीं। पहले हमारे यहां भी दादी-नानी घर के काम के अलावा कुछ न कुछ रचनात्मक करती रहती थीं। वे बहुत सी समस्याओं के बीच भी सहज रहा करती थीं। असल में रचनात्मक कार्यों से मिलने वाली खुशी भावनात्मक मोर्चे पर गहराई से प्रभावित करती है। इन एक्टिविटीज़ से मिलने वाले सुकून से शरीर में प्रो-इंफ्लेमेटरी साइटोकिन्स नामक प्रोटीन का स्तर तक कम हो जाता है। गौरतलब है कि यह प्रोटीन सूजन और हृदय रोग जैसी बीमारियों से जुड़े होते हैं। कुछ साल पहले द जर्नल ऑफ पॉजिटिव साइकोलॉजी में छपे एक अध्ययन के मुताबिक रचनात्मक कामों में समय बिताना स्तरीय सकारात्मकता दे सकता है। यह पॉजिटिव अनुभूति भीतरी खुशी, आशावाद, गर्व, कृतज्ञता जैसे भाव जगाती है। 2019 में हुए एक अध्ययन में सामने आया है कि हर दिन केवल 10 मिनट चित्रकारी करने से भी मनोदशा में सुधार हो सकता है। यही वजह है कि अपने घर-आंगन में किये गए रचनात्मक काम ना तो केवल टाइम बिताने का जरिया हैं और ना ही मात्र मनोरंजन। ऐसी सहज व्यस्तता का असर जीवन के हर पहलू पर पड़ता है। ऐसी क्रिएटिविटी से अनगिनत फायदे मिलते हैं। अच्छी सेहत की सौगात इन्हीं में से एक है।
साथ-संवाद को बल
हम उम्र के एक पड़ाव को पार कर चुकीं अपनी दादी-नानी को आज भी उनकी अच्छी सेहत और खुशमिजाजी के लिए याद करते हैं। जबकि जिम्मेदारियां और भागदौड़ उनके हिस्से ज्यादा रहा करती थीं। इसका कारण सामाजिक मेलजोल भी था और पारिवारिक जुड़ाव भी। असल में सिलाई-बुनाई-कढ़ाई या दूसरे कलात्मक काम करते हुए उनका संवाद भी खूब होता था। किसी एक आंगन में आस-पड़ोस की स्त्रियां साथ बैठकर आर्ट और क्राफ्ट के ऐसे काम किया करती थीं। यह रचनात्मकता एक दूजे से हंसने-बोलने का माध्यम बनती थी। धागे हों या रंग, कल्पना से बनने वाले सुंदर पैटर्न जीवन की रूपरेखा भी बदलते थे। साल 2021 में पर्सपेक्ट पब्लिक हेल्थ में प्रकाशित अध्ययन में क्रोशिया को ‘एक अपेक्षाकृत कम लागत वाली, पोर्टेबल गतिविधि के रूप में बताया गया। इस गतिविधि को ‘सामान्य आबादी में सकारात्मक बेहतरी को बढ़ावा देने वाली माना गया।’ असल में बीते जमाने में एक-दूसरे से कुछ नया सीखना, काम को सराहना भी आपसी संवाद का कारण हुआ करता था। ऐसी रचनात्मक दिनचर्या से जाने-अनजाने बहुत चुनौतियों से जूझने का बल मिलता था। जबकि आज सुख-सुविधाओं से भरे जीवन में भी महिलाओं में तनाव और अवसाद के आंकड़े डराने वाले हैं। ऐसे में कलात्मक कार्यों से जुड़ना जरूरी है। अपनी भुला दी गई रुचि को रिवाइव करना है। शुरुआत चाहे बच्चों को कहानी सुनाने, आचार बनाने या कुकिंग-बेकिंग की एक्टिविटी से ही करें, करें जरूर। यह खुद को रिचार्ज करने की राह है। पुरानी जीवनशैली के रंग-ढंग आपके जीवन में नयापन ला सकते हैं। असल में रचनात्मक व्यस्तता तो विश्राम का सबसे सुंदर तरीका है। हमारी पुरखिनों यानी दादी–नानी के जीवन से मिली इन व्यावहारिक लाइफ स्किल्स को याद रखना आज और जरूरी हो चला है।
दादी-नानी के शौक फिर ट्रेंड में
वैश्विक स्तर पर दादी-नानी के शौक अब फिर अपनाये जा रहे हैं। बागवानी, बुनाई, कढ़ाई, सिलाई और बेकिंग को खूब पसंद किया जा रहा है। रचनात्मक चीजों की इस थाती को ‘ग्रैंडमाकोर’ कहा जाता है। रोजमर्रा के दबावों से दूर रखने वाले इन कामों को मन की शांति, रचनात्मक संतुष्टि और तनाव से दूर रखने वाले काम माना जा रहा है। हालिया वर्षों में बड़ी पीढ़ी की ये गतिविधियां सोशल मीडिया में ट्रेंड कर रही हैं। सुखद है कि हमारे देश के हर हिस्से में बड़ी पीढ़ी ने कला-कौशल की अतुलनीय थाती छोड़ी है। क्यों न इसे याद भर करने के बजाय हम अपने जीवन में उतारें?

