‘वंदे मातरम्’ के ओज से दर्शकों को भी लुभाया फिल्म निर्माताओं ने
अभी तक कालजयी फिल्मों के किस्से ही आम रहे, पर कोई गीत भी कालजयी हो सकता है- यह सच पहली बार सामने आया। डेढ़ सौ साल पहले रचे गए गीत ‘वंदे मातरम’ ने अपनी यात्रा में कई पड़ाव देखे। आजादी से पहले इसे क्रांति के उद्घोष के रूप में पहचान मिली, तो आजादी के बाद राष्ट्रभक्ति का प्रमाण माना गया। इसके बाद भी वंदे मातरम की यात्रा रुकी नहीं। इसे फिल्मों में अलग-अलग संदर्भों में प्रयोग किया। ज्यादातर दुश्मन देश के खिलाफ जंग वाली फिल्मों में ये जवानों को जोश दिलाने के काम आया। लेकिन, संगीतकार एआर रहमान ने एक एल्बम में जिस तरह वंदे मातरम गाया, वो अलग ही रूप में सामने आया।
हिंदी फिल्म जगत की खासियत है, कि वो हर उस प्रसंग में अपने आपको शामिल कर लेता है, जिसमें लोकप्रियता मिलने की संभावना नजर आती है। ऐसा ही एक मौका है राष्ट्रगीत वंदे मातरम का, जिसकी रचना को डेढ़ सौ साल पूरे हो गए हैं। यह ऐसा गीत है, जो सुनने वाले के दिल में राष्ट्रभक्ति की अलख जगाता है। जब देश अंग्रेजों का गुलाम था, तब इस गीत ने लोगों में विद्रोह की भावना जगाने का काम किया और आजाद होने के बाद यही गीत देश प्रेम का प्रतीक बना। फिल्मकारों ने भी वंदे मातरम को अलग-अलग संदर्भों में कई बार प्रयोग किया। फिल्मों में इस गीत ने देशभक्ति को दर्शकों की भावनात्मक गहराई से जोड़ने का काम किया। साल 1952 में आई फिल्म ‘आनंद मठ’ में इसे लता मंगेशकर ने गाया था। इसके बाद ‘एबीसीडी-2’ (2015) और ‘फाइटर’ (2024) जैसी ताजा दौर की फिल्मों में इसे डांस और एक्शन थीम के साथ जोड़ा गया। यानी एक चर्चित गीत का कई बदले प्रसंगों में उपयोग हुआ। जबकि, इस राष्ट्रगीत की रचना बंकिमचंद्र चटर्जी ने 7 नवंबर 1875 को अक्षय नवमी के अवसर पर की थी। देश की गुलामी के समय देशभक्ति वाली फिल्मों या देशभक्ति वाले दृश्यों को फिल्माते वक्त राष्ट्र गीत ‘वंदे मातरम’ को बैकग्राउंड में बजाया जाता रहा।
Advertisementधुन में आता गया बदलाव...
बंकिम चंद्र चटर्जी ने वंदे मातरम को लिखा जरूर, पर इसके बाद इसके प्रसंग और धुन में बदलाव आता गया। यह फिल्म जगत में भी समय के साथ दिखाई दिया। पहली बार ‘वंदे मातरम’ गीत को 1952 में फिल्म ‘आनंद मठ’ के लिए लता मंगेशकर ने गाया, जिसे संगीतकार और गायक हेमंत कुमार ने धुन में पिरोया था। दरअसल, ‘वंदे मातरम’ की उत्पत्ति 1882 में लिखे उपन्यास ‘आनंदमठ’ से जुड़ी है, जो संन्यासी विद्रोह की पृष्ठभूमि पर था। इस गीत को आजादी की जंग के दौर में रवींद्रनाथ टैगोर ने 1896 में कांग्रेस अधिवेशन में गाया था, तब यह राष्ट्र प्रेम का प्रतीक बना। हिंदी सिनेमा में तो इसका प्रवेश 1952 की फिल्म ‘आनंदमठ’ से ही हुआ, जिसका निर्देशन हेमेन गुप्ता ने किया था। इस फिल्म में वंदे मातरम दो बार उपयोग हुआ - लता मंगेशकर का स्त्री स्वर में और हेमंत कुमार का पुरुष स्वर। प्रदीप कुमार, गीता बाली और पृथ्वीराज कपूर जैसे सितारों के अभिनय के बीच यह गीत दर्शकों के दिलों में उतर गया था। हेमंत कुमार की धुन ने मूल संस्कृतनिष्ठ बंगाली गीत को हिंदी फिल्म के परदे पर अमर बना दिया, जो आज भी खास अवसरों पर गूंजता है।
आजादी के समय आकाशवाणी पर गूंजा
इसके बाद इस गीत को कई फिल्मों में नई धुन में सुना गया। वंदे मातरम हमारे देश का राष्ट्रीय गीत है, जिसे कई नामी गायकों ने गाया। आजादी के समय 15 अगस्त 1947 को पंडित ओंकारनाथ ठाकुर ने आकाशवाणी पर इसे गाया था। इससे पहले 1896 में रवींद्रनाथ टैगोर ने इसे पहली बार स्वरबद्ध कर गाया था। इसके बाद इसे कई गायकों ने स्वरबद्ध किया।
एआर रहमान के एल्बम में राष्ट्रगीत का जादू
लता मंगेशकर ने वंदे मातरम पहली बार गाया। इसके बाद साधना सरगम, मधुरी मधुकर, मनोज मिश्रा, देबासिस और सुखविंदर सिंह ने भी स्वर दिया। लेकिन, 1997 में संगीतकार एआर रहमान ने ‘मां तुझे सलाम’ एल्बम के लिए वंदे मातरम को खुद ही संगीतबद्ध कर गाया भी। यह गीत रात 2 बजे विशेष परिस्थितियों में रिकॉर्ड किया गया और फिर यह आइकॉनिक बन गया। साल 1951 से लेकर 2012 तक इसकी धुनों पर फिल्म जगत के कई गायकों का जादू चला। इसमें सोनू निगम, सुनिधि चौहान और शंकर महादेवन का नाम भी शामिल है। लेकिन, जब भी ‘वंदे मातरम्’ का जिक्र आया तो जहन में सबसे पहले एआर रहमान का ‘मां तुझे सलाम’ का ही नाम गूंजा। क्योंकि, एआर रहमान पेशे से संगीतकार है, लेकिन उनकी आवाज के जादू ने ‘मां तुझे सलाम गाने’ में अपना ऐसा जलवा बिखेरा कि लोग आज भी इस गाने को सुनते हैं तो उनमें देशभक्ति जाग जाती है।
फैमिली फिल्म में भी सुना गया
फिल्म इतिहास के पन्नों को पलटा जाए, तो शाहरुख खान, ऋतिक रोशन, काजोल, करीना कपूर, अमिताभ बच्चन, जया बच्चन, रानी मुखर्जी अभिनीत ‘कभी खुशी कभी गम’ में भी ‘वंदे मातरम’ गीत सुनाई दिया। जबकि, यह एक फैमिली ड्रामा फिल्म है। यह गाना फिल्म में ऐसे प्रसंग पर सुनने को मिला, कि दर्शक न सिर्फ भावुक हुए, बल्कि उनमें देशभक्ति की भावना भी उमड़ पड़ी। फिल्म में इसे उषा उत्थुप और कविता कृष्णमूर्ति ने गाया था। साल 2015 में आई इस फिल्म में ‘वंदे मातरम’ को इसके साउंडट्रैक में शामिल किया गया। इसे काफी अलग, लेकिन दिलचस्प अंदाज में पेश किया गया है। इसी साल (2015) में आई फिल्म ‘एबीसीडी-2’ के लिए इसे दलेर मेहंदी और बादशाह ने गाया। इसमें संगीत था सचिन-जिगर का।
फिल्मों में गायन के विभिन्न अंदाज
साल 2019 में आई फिल्म ‘इंडियाज मोस्ट वांटेड’ में भी राष्ट्रगीत बजा। पापोन, अल्तमश फरीदी और अमित त्रिवेदी द्वारा गाए इस गीत का नया वर्जन शामिल किया गया था। मानुषी छिल्लर और वरुण तेज अभिनीत ‘ऑपरेशन वैलेंटाइन’ साल 2024 में रिलीज हुई। इसमें सुखविंदर सिंह का गाया ‘वंदे मातरम’ गीत सुनने को मिला। 2024 में ऋतिक रोशन, अनिल कपूर और दीपिका पादुकोण अभिनीत फिल्म ‘फाइटर’ में भी ‘द फाइटर एंथम’ के रूप में वंदे मातरम सुनाई दिया। यह देशभक्ति वाली एक्शन फिल्म है। साल 2025 की जासूसी फिल्म ‘सलाकार’ में भी ‘वंदे मातरम’ काफी अलग लेकिन रोचक अंदाज में सुनने को मिला। सूर्य शर्मा, नवीन कस्तुरिया और मौनी रॉय अभिनीत यह फिल्म अगस्त में रिलीज हुई थी।
सिनेमा में देशभक्ति का मजबूत धागा
‘वंदे मातरम’ ने हिंदी सिनेमा को देशभक्ति का मजबूत धागा दिया। यह गीत न केवल स्वतंत्रता संग्राम की याद दिलाता है, बल्कि आधुनिक फिल्मों में एकता और बलिदान का भी प्रतीक भी बन गया। फिल्मों से पहले 1905 में हीरालाल जैन के बनाए भारत के पहले राजकीय चित्रपट में ‘वंदे मातरम’ में भी इसका उपयोग हुआ था। लेकिन, तब यह हिंदी में नहीं था। आजादी के ठीक बाद 1948 में मराठी फिल्म ‘वंदे मातरम’ रिलीज हुई, जिसका निर्देशन राम गबाले ने किया और संगीत सुधीर फडके ने दिया। इसमें पुल देशपांडे और सुनीता देशपांडे ने मुख्य भूमिकाएं निभाईं थी तथा गीत गदी माडगूळकर ने लिखे। फिल्म के ‘वेद मंत्राहून वंद्य’ जैसे गाने लोकप्रिय हुए, लेकिन मूल ‘वंदे मातरम’ का स्पष्ट उल्लेख नहीं था। 1985 में इसी नाम पर एक तेलुगु फिल्म भी बनाई गई। टी कृष्णा के निर्देशन में बनी इस फिल्म में विजयशांति और डॉ राजशेखर लीड रोल में दिखाई दिए। आश्चर्य की बात यह कि अभी तक किसी हिंदी फिल्मकार ने इस लोकप्रिय टाइटल का उपयोग करके हिंदी फिल्म नहीं बनाई। जबकि, इस गीत को ऐतिहासिक संदर्भों में देखा जाए तो आजादी से पहले ‘वंदे मातरम’ आजादी के आंदोलन का प्रमुख जयघोष था। पर, ब्रिटिश सेंसरशिप के कारण फिल्मों में इसका सीधा उपयोग सीमित ही रहा। पहली बार 1952 में ‘आनंदमठ’ ने इसे हिंदी परदे पर स्थापित किया। आज भी जब ‘वंदे मातरम’ कानों में सुनाई देता है, तो दिल में एक अलग ही देशभक्ति का उन्माद उभरता है, यही तो इस कालजयी गीत की विशेषता भी है।
