नयी पीढ़ी को बताएं पूर्वजों की प्रेरक कहानियां
पितृ पक्ष में श्राद्ध के लिए पितरों को जल का अर्घ्य या पिंड दान के कर्मकांड किये जाते हैं। इसके साथ ही श्राद्ध कहीं अधिक गहरा अर्थ लिए हैं। दरअसल ऐसे कर्मकांड हमारी सनातन परंपरा की आधारशिला हैं। ये हमें हमारे पूर्वजों से जोड़ते हैं व कृतज्ञता व्यक्त करने का साधन हैं। सच्चा श्राद्ध तभी पूर्ण होता है जब हम अपने पूर्वजों की कहानियों, उनके आदर्शों और संस्कारों को अपने बच्चों यानी अगली पीढ़ी की आत्मा में रोपित करें।
पिछले साल पितृ पक्ष के दिनों की बात है। मैं अपने मित्र के घर गया। शाम का समय था। उसके घर के आंगन में मिट्टी के कुछ दीपक टिमटिमा रहे थे। धूप बत्ती की भीनी-भीनी सी सुगंध वातावरण में घुली हुई थी। घर मानो मंदिर बन गया हो। मित्र के हाथों में अपनी मां की एक धुंधली सी ब्लैक एंड व्हाइट फोटो थी। वो अपने बेटे को इस तस्वीर में कैद यादों की दुनिया में ले जा रहे थे-‘ये तुम्हारी दादी थीं बेटा!’ मित्र की आवाज में गहरी श्रद्धा थी - ‘जिन्होंने जीवन भर सादगी और दया के भाव का दीपक जलाये रखा। गांव में यदि किसी गरीब के घर चूल्हा न जलता, तो वे चुपचाप अनाज व सब्जियां पहुंचा देती थीं। पड़ोस, गली-मोहल्ले के लोग तारीफ करते हुए कहते-बड़े दिल वाली है दादी मां। हर दिन दादी की रसोई का पहला ग्रास किसी भूखे के लिए आरक्षित रहता था।’
Advertisementपितृ पक्ष का वास्तविक अर्थ
मित्र लगातार अपने बेटे को उसकी दादी के प्रेम और दया भाव के किस्से सुनाए जा रहा था। बच्चा बड़ी उत्सुकता से यह सब सुन रहा था,जैसे कोई अनजानी कहानी उसके सामने जीवित हो उठी हो। मैं चुपचाप यह दृश्य देख रहा था। मेरे मन में विचार आया-क्या यही सच्चा श्राद्ध नहीं है? सच कहूं तो यह पल मेरे लिए एक सहज जागरण था। आज पितृ पक्ष का वास्तविक अर्थ मेरी समझ में आ गया था।
पूर्वजों से जोड़ते हैं ऐसे कर्मकांड
मित्र के अपने बेटे को संबोधन के दौरान मुझे लगा कि श्राद्ध सिर्फ़ जल के अर्घ्य या पिंड दान के कर्मकांड तक ही सीमित नहीं है , बल्कि यह तो उससे कहीं अधिक गहरा और सार्थक है। ऐसे कर्मकांड निश्चित रूप से हमारी सनातन परंपरा की आधारशिला हैं। ये हमें हमारे पूर्वजों से जोड़ते हैं। वहीं हमारी सामूहिक स्मृति को जीवित बनाए रखते हैं। ऐसे कर्मकांड हमें कृतज्ञता व्यक्त करने का साधन प्रदान करते हैं। परंतु सच्चा श्राद्ध तभी पूर्ण होता है जब हम अपने पूर्वजों की कहानियों, उनके आदर्शों और उनके संस्कारों को अगली पीढ़ी की आत्मा में रोपित करें। दरअसल, परिवार की कहानियों का बच्चों पर गहरा असर पड़ता है। जब हम अपने बच्चों को दादा- दादी , नाना-नानी या पूर्वजों के संघर्षों और उपलब्धियों की कहानियां सुनाते हैं तो वे गौरवान्वित महसूस करते हैं। इससे उनमें आत्मविश्वास पैदा होता है। चुनौतियों का सामना करने का आत्मबल भी बढ़ता है। वहीं ऐसे बच्चे अधिक सकारात्मक सोच के साथ आगे बढ़ते हैं।
परिवार के प्रेरक आदर्श
यह सच है कि जब परिवार के आदर्श और पूर्वजों की कहानियां बच्चों के हृदय में उतरती हैं, तब वे उनके जीवन के सबसे बड़े प्रेरणास्रोत बन जाते हैं। यही भाव एक विद्यालय की इस छोटी-सी घटना में झलकता है—एक बार एक विद्यालय के शिक्षक ने बच्चों से पूछा – ‘तुम्हारे आदर्श कौन हैं?’ किसी ने खिलाड़ी का नाम लिया, किसी ने फिल्म अभिनेता का। किसी ने किसी संत-महात्मा को अपना आदर्श बताया तो किसी ने सामाजिक कार्यकर्ता को। लेकिन एक बच्चा चुपचाप बैठा रहा। शिक्षक ने कारण पूछा तो उसने धीरे से जवाब दिया – ‘ सर मेरे आदर्श तो मेरे दादाजी हैं। वे बहुत साधारण से व्यक्ति थे, पर गांव के हर जरूरतमंद आदमी की मदद करते थे। जब भी किसी के ऊपर कोई मुसीबत आती, वे सबसे पहले वहां उसकी मदद करने पहुंच जाते। हालाकि आज वे हमारे बीच नहीं हैं, पर उनकी बातें और उनके संस्कार मेरे साथ हैं।’ शिक्षक भावुक हो गए – ‘बेटा, यह जवाब बताता है कि तुम्हारे भीतर अपने परिवार के संस्कार की कितनी गहरी जड़ें हैं। यही वह ताकत है जो तुम्हें हर परिस्थिति में मजबूत बनाए रखेगी।’
मूल्यों की विरासत
यूं तो पितृ पक्ष पूर्वजों को समर्पित श्रद्धा, भक्ति,स्मृति और कृतज्ञता का पर्व है। लेकिन हमे इस दौरान अपने बच्चों के साथ पूर्वजों की जानकारी भी साझा करनी चाहिए। श्रद्धा जहां हमे अपने पूर्वजों के प्रति कृतज्ञ बनाती है। स्मृति हमें उनकी कहानियों और मूल्यों का स्मरण कराती है। वहीं हमें बच्चों को अपने पूर्वजों की कहानियां सुनानी चाहिये ताकि अपने परिवार के संस्कारों को अगली पीढ़ी को सौंपा जा सके। इससे बच्चों में अपने परिवार और संस्कृति के प्रति गर्व और सम्मान की भावना जाग्रत होगी। बच्चे अपनी विरासत से परिचित होंगे और हमारे पूर्वजों को स्मृति अमर रहेगी।