Tribune
PT
Subscribe To Print Edition About the Dainik Tribune Code Of Ethics Advertise with us Classifieds Download App
search-icon-img
Advertisement

स्क्रीन के सैलाब में संस्कारों का एंटीवायरस बने शिक्षक

शिक्षक दिवस 2025

  • fb
  • twitter
  • whatsapp
  • whatsapp
featured-img featured-img
चित्रांकन संदीप जोशी
Advertisement

आज की डिजिटल दुनिया में बेशक पढ़ाई के तौर-तरीके बदले हैं लेकिन शिक्षक की भूमिका व दायित्व पूर्ववत हैं। एक तरफ स्क्रीन पर ज्ञान का अथाह सागर है, और दूसरी तरफ कम होते संस्कार। सवाल है, शिक्षक इन दोनों के बीच पुल कैसे बनाएंगे? तकनीक हमें दुनिया से जोड़ती है, लेकिन भावनात्मक रूप से अलग-थलग भी कर सकती है। ऐसे में विद्यार्थियों से शिक्षक का भावनात्मक जुड़ाव और भी महत्वपूर्ण हो जाता है। शिक्षक ज्ञान के संचार के अलावा अपने छात्रों की भावनाएं समझें, समस्याएं सुनें और सही रास्ता दिखाएं।

पांच सितंबर यानी शिक्षक दिवस- यह पावन अवसर पर है हम सब के लिए उस शिक्षा के स्वरूप पर विचार करने का जो हमारी अगली पीढ़ी को ‘ज्ञान’ के साथ-साथ ‘जीवन’ की सही दिशा भी दे सके। इस संदर्भ में गुरु-शिष्य परंपरा से जुड़ा हमारे शास्त्रों में वर्णित एक विचार प्रासंगिक है कि ‘ज्ञानमभारः क्रियां विना’। जिसका अर्थ है, ‘क्रिया के बिना ज्ञान बोझ है’। यह बात आज के डिजिटल युग में और भी सत्य है। आज का शिक्षक सिर्फ़ ब्लैकबोर्ड पर लिखने वाला नहीं, बल्कि संस्कार और स्क्रीन के बीच एक संवेदनशील सेतु है। यह वो समय है जब हर शिक्षक को सोचना होगा कि क्या वे सिर्फ़ सूचना दे रहे हैं, या एक ऐसा भविष्य गढ़ रहे हैं जहां मानवीयता तकनीकी प्रगति से आगे खड़ी हो। दरअसल, आजकल बच्चे ‘स्क्रीन टाइम’ में इतने डूबे हैं कि सामाजिक कौशल, धैर्य और सहानुभूति जैसे बुनियादी मानवीय मूल्य कहीं पीछे छूट रहे हैं।

शिक्षक का भावनात्मक जुड़ाव जरूरी

तो एक सवाल हर शिक्षक के मन में कुलबुला रहा होगा ː ‘क्या अब बच्चों को पढ़ाना उतना ही आसान है, जितना उन्हें ‘फॉरवर्ड’ करना सिखाना?’ एक तरफ ज्ञान का अथाह सागर है जो स्क्रीन पर तैर रहा है, और दूसरी तरफ संस्कारों की नदियां हैं जो सूखती जा रही हैं। सवाल है, शिक्षक इन दोनों के बीच पुल कैसे बनाएंगे? तकनीक हमें दुनिया से जोड़ती है, लेकिन यह हमें भावनात्मक रूप से अलग-थलग भी कर सकती है। यही कारण है कि शिक्षक का भावनात्मक जुड़ाव और भी महत्वपूर्ण हो जाता है। शिक्षक केवल ज्ञान का संचार करने वाला ही नहीं, बल्कि ऐसा व्यक्ति हो जो अपने छात्रों की भावनाओं को समझता हो, उनकी चुनौतियों को सुनता हो और सही रास्ता दिखाता हो। ऐसे में शिक्षक को ‘संस्कारों का एंटीवायरस’ बनना होगा।

हार से सीख व दूसरों में गुण खोजने का ज्ञान

महान विचारक और अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन ने एक बार अपने बेटे के शिक्षक को पत्र लिखते हुए कहा था, ‘उसे सिखाना कि हर दुश्मन में एक दोस्त छिपा हो सकता है... उसे किताबों के चमत्कार के बारे में बताना... उसे सिखाना कि अगर वह हारता है तो यह ठीक है... उसे सिखाना कि सफलता का आनंद कैसे लिया जाए... लेकिन सबसे महत्वपूर्ण, उसे यह सिखाना कि कैसे मुस्कुराना है जब वह दुखी हो।’ लिंकन की यह बात आज के दौर में और भी प्रासंगिक है। कृत्रिम बुद्धिमत्ता हमें तथ्यों से भर सकता है, लेकिन मुस्कुराना, हार से सीखना, और दूसरों में अच्छाई खोजना - ये बातें केवल शिक्षक ही सिखा सकता है, जो भावनाओं और अनुभवों के माध्यम से संवाद करता है। एक बार स्वामी विवेकानंद से उनके गुरु रामकृष्ण परमहंस ने पूछा, ‘तुमने क्या सीखा?’ विवेकानंद ने शास्त्रों का ढेर गिना दिया। रामकृष्ण मुस्कुराए और बोले, ‘तुमने ज्ञान इकट्ठा किया है, सीखा नहीं। सीखा तो तब होता, जब तुम इसका उपयोग कर दूसरों के दुख दूर करते।’

सीखने का आनंद

हाल ही में, लेखक को एक अनोखा उदाहरण देखने को मिला। बेंगलुरु के एक स्कूल में, ‘कृत्रिम बुद्धिमत्ता और एथिक्स’ पर सत्र के दौरान एक छात्र ने पूछा, ‘अगर कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) मेरा सारा होमवर्क कर दे, तो मुझे क्या मिलेगा?’ शिक्षक मुस्कुराईं। उन्होंने कहा, ‘तुम्हें होमवर्क से मुक्ति मिलेगी, लेकिन सीखने का आनंद नहीं मिलेगा। एआई तुम्हें उत्तर दे देगी, लेकिन उस उत्तर तक पहुंचने की सोच, संघर्ष और समझ नहीं देगी। यही वो जगह है जहां तुम्हारी आत्मा का विकास होता है, जो कृत्रिम बुद्धिमत्ता कभी नहीं कर सकती।’ यह एक साधारण सा संवाद था, पर इसमें आधुनिक शिक्षा की गहरी फिलॉसफी छुपी थी।

ताकि स्क्रीन पर ही चुनें सही जानकारी

आज की पीढ़ी डिजिटल नेटिव है। उनके लिए किताबें नहीं बल्कि स्क्रीन ज्ञान का पहला स्रोत है। हमें उन्हें स्क्रीन से दूर भगाने के बजाय स्क्रीन पर सही जानकारी को चुनना सिखाना होगा, और उसके पीछे के मानवीय मूल्यों को समझाना होगा। एक शिक्षक को यह समझना होगा कि छात्र अब केवल ब्लैकबोर्ड से नहीं, बल्कि वीडियो, पॉडकास्ट और इंटरेक्टिव ऐप्स से भी सीखते हैं। आज की पीढ़ी के लिए ‘स्क्रीन’ (मोबाइल, लैपटॉप, टैबलेट) सिर्फ एक गैजेट नहीं, बल्कि उनकी दुनिया का एक अभिन्न हिस्सा बन चुकी है। यह एक ऐसा माध्यम है जिसके जरिए वे जानकारी प्राप्त करते हैं, संवाद करते हैं और मनोरंजन करते हैं। इस स्थिति में, पारंपरिक शिक्षा पद्धति को पूरी तरह से नकारना बुद्धिमानी नहीं होगी, बल्कि हमें संस्कारों को तकनीक के साथ सही से मिलाना होगा।

बतौर उपकरण एआई का उपयोग

कृत्रिम बुद्धिमत्ता एक शक्तिशाली सहायक है, जो शिक्षकों को व्यक्तिगत ध्यान देने, रचनात्मकता को बढ़ावा देने और छात्रों की समस्याओं को गहराई से समझने का समय देता है। कृत्रिम बुद्धिमत्ता आपको गणित के सूत्र समझा सकती है, लेकिन यह नहीं सिखा सकती कि जीवन में ईमानदारी क्यों ज़रूरी है। विज्ञान के नियम बता सकती है, लेकिन यह नहीं कि सहानुभूति क्यों रखनी चाहिए। शिक्षक का काम अब ‘डेटा डंप’ करना नहीं, बल्कि ‘ज्ञान का क्युरेटर’ बनना है। उन्हें छात्रों को सिखाना होगा कि डिजिटल दुनिया में झूठी खबरों को कैसे पहचानें, गोपनीयता का महत्व क्या है, और साइबर बुलिंग से कैसे बचें। उन्हें कृत्रिम बुद्धिमत्ता को एक उपकरण के रूप में प्रयोग करते हुए, छात्रों में आलोचनात्मक सोच, भावनात्मक बुद्धिमत्ता, और सामाजिक जागरूकता विकसित करनी होगी।

शिक्षक की प्रेरणादायी भूमिका

शिक्षकों को यह भी सोचना होगा कि क्या वे सिर्फ़ परीक्षा पास कराने वाले रोबोट बना रहे हैं, या ऐसे इंसान तैयार कर रहे हैं जो जीवन की हर चुनौती का सामना कर सकें। गुरु का स्थान ब्रह्मा, विष्णु, महेश से भी ऊपर माना गया है, क्योंकि वह अज्ञान के अंधकार से ज्ञान के प्रकाश की ओर ले जाते हैं। आज यह प्रकाश सिर्फ़ किताबों का नहीं, बल्कि संस्कारों का, मूल्यों का और विवेक का भी होना चाहिए। भविष्य का शिक्षक वह नहीं होगा जो सबसे अधिक जानकारी रखता हो, बल्कि वह होगा जो छात्रों को सबसे अधिक प्रेरित कर सके।

वह कृत्रिम बुद्धिमत्ता को अपने सहायक के रूप में उपयोग करेगा ताकि उसे छात्रों के साथ व्यक्तिगत रूप से जुड़ने का अधिक समय मिले। वह कक्षाओं को केवल सूचना केंद्र नहीं, बल्कि नैतिक और सामाजिक प्रयोगशालाएं बनाएगा जहां बच्चे जीवन मूल्यों को सीख सकें׀ इसलिए, इस शिक्षक दिवस पर, हर शिक्षक खुद से सवाल पूछेː- ‘क्या मैं सिर्फ़ ‘पाठ्यक्रम’ पढ़ा रहा हूं, या ‘चरित्र’ गढ़ रहा हूं, क्या मैं ‘सूचना’ दे रहा हूं, या ‘समझ’ विकसित कर रहा हूं? क्या सिर्फ़ ‘स्क्रीन’ का उपयोग कर रहा हूं, या ‘संस्कारों’ को भी रोपित कर रहा हूं?’ जब तक शिक्षक इन सवालों का जवाब ‘हां’ में नहीं देगा, तब तक शिक्षा का वास्तविक अर्थ अधूरा ही रहेगा।

शिक्षक ही है असली शिल्पकार

हम सब शिक्षक मिलकर एक ऐसे भविष्य का निर्माण करें जहां तकनीक हमें आगे बढ़ाए, लेकिन मानवीय मूल्य हमें ज़मीन से जोड़े रखें। इस अद्वितीय सेतु के सच्चे निर्माता हमारे आदरणीय शिक्षक ही होंगे। इस महान लक्ष्य को प्राप्त करने में, कृत्रिम बुद्धिमत्ता केवल एक शक्तिशाली उपकरण हो सकता है, लेकिन शिक्षक ही असली शिल्पी रहेंगे। आज के शिक्षक को सिर्फ डेटा का आदान-प्रदान नहीं करना है, बल्कि उन्हें एक ‘दीप’ जलाना है जो बच्चों के भीतर मानवीयता, नैतिकता और आध्यात्मिकता की रोशनी भरे। यही वह प्रकाश होगा जो उन्हें आधुनिक दुनिया की चुनौतियों का सामना करने और एक सार्थक जीवन जीने में मदद करेगा। क्योंकि, स्क्रीन चाहे जितनी भी चमकदार क्यों न हो, वह कभी भी आपकी आंखों की चमक, आपकी आवाज़ की गर्माहट और आपके हाथों के स्पर्श की जगह नहीं ले सकती।

                                              -लेखक कुरुक्षेत्र विवि के विधि विभाग में सहायक प्रोफेसर हैं।

Advertisement
×